अलीगढ़: जनपद के ऊपरकोट की ऐतिहासिक अलीगढ़ जामा मस्जिद के गुंबदों और मीनारों के ऊपर सोना मढ़ा हुआ है. इतना सोना एशिया की किसी दूसरी मस्जिद में नहीं लगा है. मस्जिद की शानदार नक्काशी वास्तुकला देखने में बेहद अनूठी है. इसे देखकर लोगों को ताजमहल की याद आ जाती है. ऊपरकोट कोतवाली थाने के सामने बनी मुगल कालीन इस जामा मस्जिद में कई पीढ़ियों से अकीदतमंद नमाज अदा कर रहे हैं.
गुंबदो और मीनारों में मढ़ा है शुद्ध सोना:ऊपरकोट स्थित जामा मस्जिद के गुंबदों और मीनारों पर सोना चढ़ा है. एशिया की किसी दूसरी मस्जिद में ऐसा नहीं है. इस मस्जिद की वास्तुकला और नक्काशी आला दर्जे की है. जो ताजमहल की याद दिला देती है. पुरातत्व विभाग द्वारा मस्जिद का सर्वेक्षण किया जा चुका है.
मस्जिद की पहली मंजिल पर 40 और दूसरी पर सीढ़ियों की संख्या 19 है. करीब 8 से 10 फीट लंबी 3 मीनारें मुख्य गुंबद पर लगी हुई हैं. तीनों गुंबद के बराबर में बने एक-एक गुंबद पर छोटी-छोटी 3 मीनारें हैं. मस्जिद के गेट और चारों कोनों पर भी छोटी-छोटी मिनारे हैं. सभी गुंबदों और मीनारों में शुद्ध सोना मढ़ा हुआ है. गुंबद में भी कई कुंतल सोना मढ़ा है. हालांकि कितना सोना लगा है, इसका अंदाजा किसी को नहीं है. ऐसे में मस्जिद कमेटी इसका संरक्षण पुरातत्व विभाग के हवाले करना चाहती है.
मस्जिद में 17 गुंबद:मुगल शासक मोहम्मद शाह (1719- 1728) के शासनकाल में कोल के गवर्नर साबित खान ने इस जामा मस्जिद का निर्माण कराया था. मस्जिद को बनाने में 14 साल लगे थे. मस्जिद की सबसे खास बात यह है कि यह टीले पर बनी है. ऊंचाई पर बनी होने के कारण अलीगढ़ शहर के हर कोने से यह मस्जिद देखी जा सकती है.
300 साल पहले बनाई गई इस मस्जिद में 17 गुंबद के साथ 3 दरवाजे हैं. मस्जिद के हर दरवाजे पर 2-2 गुंबद हैं. यहां एक साथ 5 हजार लोग नमाज पढ़ सकते हैं. खासतौर से औरतों के लिए नमाज पढ़ने का यहां अलग से इंतजाम किया गया है. यह अलीगढ़ की सबसे पुरानी और भव्य मस्जिदों में एक है. सफेद गुंबदों की संरचना वाली इस खूबसूरत मस्जिद में मुस्लिम कला और संस्कृति की झलक साफ-साफ दिखाई देती है.