आगरा: यमुना का जल दिन पर दिन काला, बदबूदार और जहरीला होता जा रहा है. पहले के समय में लोग तीज-त्योहारों पर लोग यमुना में स्नान करते थे. मगर, अब यमुना का जल आचमन लायक भी नहीं बचा है. ताजनगरी में तो हालात और खराब हैं. यहां यमुना नदी अब यह एक गंदे नाले में तब्दील होती जा रही है. यहां पर यमुना में पानी ही नहीं बचा है और जितना पानी है वह गंदे नालों का है. यमुना के उद्धार को करोड़ों रुपए के एक्शन प्लान बने. नमामि गंगे प्रोजेक्ट में भी इसके लिए करोड़ों की योजनाएं बनीं, लेकिन इस समय यमुना की हालत बद से बदत्तर होती जा रही है.
कई एक्शन प्लान बने लेकिन नतीजा शून्य
यमुना की सफाई के लिए सन् 1993 और सन् 2003 में यमुना एक्शन प्लान 1 और 2 पर 1500 करोड़ रुपए खर्च हुए. इसके बाद 1174 करोड़ रुपए की योजना फिर से बनाई गई. नमामि गंगे योजना में भी यमुना की सफाई के लिए 460 करोड़ रुपए दिए गए हैं. आगरा की बात करें तो यहां पर करोड़ों रुपए खर्च होने के बाद भी छोटे-बड़े नाले अभी टेप नहीं हुए हैं. सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट काम नहीं करते हैं. आज भी शहर के 90 नालों में से सिर्फ 29 नाले टेप हैं. हर दिन 61 नालों का सैकड़ों एमएलडी गंदा पानी बिना ट्रीट हुए सीधे यमुना में गिरता है.
दलदल से ताजमहल बदरंग
यमुना में सीधे गिर रहे नालों से इसका पानी जहरीला हो गया है. पानी में बदबू आती है. यमुना में ताजमहल के पीछे दलदल है. इसी दलदल और प्रदूषित पानी में गोल्डी काइरोनोमस नामक कीड़े पनप जाते हैं. जो ताजमहल की यमुना किनारे की उत्तरी दीवार को बदरंग करते हैं. एएसआई के अधीक्षण पुरातत्वविद वसंत कुमार स्वर्णकार का कहना है कि, दलदल में पनपने वाला गोल्डी काइरोनोमस कीड़ा ताजमहल की चमक से आकर्षित होता है. कीड़े उड़कर ताजमहल पर बैठ जाते हैं और अपने साथ लाए यमुना की गंदगी को ताजमहल की दीवार पर छोड़ते हैं. जिससे ताजमहल पर हरे और काले धब्बे पड़ जाते हैं. ताजमहल की खूबसूरती को फिर से निखारने के लिए साफ सफाई करनी पड़ती है. मड पैक थेरेपी भी होती है.
बैराज से ज्यादा डी-सिल्टिंग की जरूरत
ब्रज मंडल हेरिटेज कंजर्वेशन सोसायटी के अध्यक्ष सुरेंद्र शर्मा का कहना है कि यमुना पर बैराज से ज्यादा जरूरत उसकी डी-सिल्टिंग की है. बलकेश्वर मंदिर के घाट से लेकर ताजमहल के पास स्थित दशहरा घाट तक डी-सिल्टिंग कर दी जाए. इससे यमुना के दोनों किनारों पर गंदे नालों के लिए अलग नाले बन जाएंगे. इसके बीच में यमुना का पानी बहेगा. डी-सिल्टिंग के बाद बीच-बीच में छोटे-छोटे रोके लगाए जाएं, जिससे पानी का ठहराव होगा और भूजल स्तर भी बढ़ेगा. ताजमहल के पास यमुना में पानी बढ़ने से उसकी नींव को मजबूती मिलेगी. ताजमहल की खूबसूरती को बदरंग करने वाले कीड़े भी नहीं पैदा होंगे. जिससे ताजमहल की खूबसूरती भी बनी रहेगी.