आगरा:सीएम योगी ने जिले में निर्माणाधीन मुगल म्यूजियम का नाम बदलकर छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम पर रख दिया. इस ऐलान के बाद से राजनीतिक हलकों में इसकी चर्चा शुरू हो गई. 2015 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मुगल म्यूजियम की मंजूरी दी थी. इसके बाद 5 जनवरी 2016 को अखिलेश यादव ने इसकी आधारशिला रखी थी. ऐसे में योगी सरकार के इस फैसले से सपा खासा नाराज है. सपा समेत प्रदेश के तमाम संगठनों ओर पार्टियों के नेताओं ने सीएम के इस फैसले पर गहरी नाराजगी जताई है. नेताओं ने अपनी प्रतिक्रिया दी है.
अचानक क्यों बदला गया म्यूजियम का नाम
इस बदलाव के पीछे की कहानी 5 साल पुरानी है. 2015 में तत्कालीन सीएम अखिलेश यादव ने मुगल म्यूजियम की घोषणा की थी, तभी इसके नाम पर आगरा के इतिहासकार राजकिशोर राजे ने औपचारिक तौर पर सबसे पहले अपनी आपत्तियां लगाई थीं. ईटीवी भारत से बातचीत में राजे ने बताया कि 28 मई 2015 को अखिलेश यादव और प्रधानमंत्री मोदी को उन्होंने इस संदर्भ में ऐतिहासिक दस्तावेज भी भेजे थे. राजे ने इसका नाम अग्रवन म्यूजियम या आगरा म्यूजियम रखने का प्रस्ताव भेजा था. बाद में उन्होंने छत्रपति शिवाजी के नाम पर म्यूजियम का नाम रखने की मांग रख दी. इसके अलावा कई प्रबुद्ध लोगों ने भी इसके नाम पर आपत्ति जताई थी. 5 साल तक आपत्तियां ठंडे बस्ते में बंद रही.
मुगल म्यूजियम पर आपत्ति क्यों ?
मुगल म्यूजियम के नाम पर आपत्ति दर्ज कराने वाले इतिहासकार राजकिशोर राजे बताते हैं कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय ने सन् 1960 में बाबरनामा प्रकाशित की. इस पुस्तक के पेज नंबर 504 और 542 के अनुसार बाबर ने मुगलों की आलोचना की है. बाबरनामा के अनुसार, बाबर और हुमायूं ने खुद को मुगल मानने से इंकार कर दिया था. ऐसे में उनके वंशज मुगल कैसे हो सकते हैं. इसलिए मैंने मुगल म्यूजियम के नाम पर आपत्ति दर्ज कराई थी.
उन्होंने बताया कि बाबर पिता के पक्ष से तुर्क और मां के पक्ष से मंगोलियन है. बाबर और उनके वारिस मुगल थे ही नहीं . आगरा को बाबर और उसके वंशजों ने बसाया नहीं था, सिर्फ इसे अपनी राजधानी बनाई थी. सिकंदर लोदी ने पहली बार आगरा को अपने कब्जे में लिया था. आगरा के विकास में मुगलों का योगदान नहीं है.
खुद सीएम योगी ने बताया बदलाव का कारण
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने नाम बदलने के कारणों की जानकारी देते हुए कहा कि नए उत्तर प्रदेश में गुलामी की मानसिकता के प्रतीक चिन्हों का कोई स्थान नहीं है. हम सबके नायक शिवाजी महाराज हैं. उन्होंने अपने सरकार की विचारधारा को सामने रखते हुए बताया कि उनकी सरकार ने हमेशा राष्ट्रवादी विचारधारा का पोषण किया है. सीएम योगी का कहना है कि मुगल हमारे नायक कैसे हो सकते हैं. शिवाजी का नाम राष्ट्रवाद और आत्मसम्मान की भावना के साथ हमे गौरव महसूस कराएगा.
छत्रपति शिवाजी महाराज का ही नाम क्यों?
आर्किलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के अनुसार, 5.9 एकड़ में प्रस्तावित म्यूजियम ताजमहल से 1300 मीटर दूर है. मकराना मार्बल से बनने वाली म्यूजियम की इमारत में शिवाजी से जुड़ी क्या वस्तुएं होंगी, यह अभी तय नहीं है. मगर इस म्यूजियम में आगरा से जुड़ीं ऐतिहासिक वस्तुएं जरूर होंगी.
इस पर इतिहासकार राजकिशोर राजे का तर्क है कि छत्रपति शिवाजी महाराज को औरंगजेब ने कैद कर आगरा के किले में रखा था. मगर शिवाजी अपनी चतुराई से कैद से निकल गए और लगातार मुगलों को चुनौती देते रहे. इसलिए म्यूजियम का नाम शिवाजी के नाम पर रखा जाना सराहनीय है.
क्या महाराष्ट्र की राजनीति से भी है कनेक्शन
इन दिनों महाराष्ट्र की राजनीति में बीजेपी और शिवसेना अलग-अलग छोर पर खड़े हैं. चर्चा है कि बीजेपी के सपोर्ट के कारण कंगना लगातार शिवसेना को ललकार रही है. उद्भव और शरद पवार मराठा नेता है. ऐसे में क्या भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश से शिवाजी म्यूजियम के जरिये राजनीतिक संदेश देने की कोशिश कर रही है. जब यह सवाल हमने राजनीतिक विश्लेषक पी. एन. द्विवेदी से पूछा. ईटीवी भारत से बातचीत में पी. एन. द्विवेदी के अनुसार, म्यूजियम का नाम बदलने से महाराष्ट्र की राजनीति पर कोई असर नहीं पड़ने वाला. इससे बीजेपी को कोई फायदा मिलेगा भी नहीं और बीजेपी कोई फायदा लेना भी नहीं चाहती.