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आगरा में कैबिनेट मंत्री के वार्ड में हारी भाजपा, जिलाध्यक्ष का बेटा भी नहीं जीत पाया - कैबिनेट मंत्री योगेंद्र उपाध्याय

यूपी निकाय चुनाव में आगरा नगर निगम के 2 वार्डों में भाजपा की हार चर्चा का विषय बन गई है. एक सीट कैबिनेट मंत्री योगेन्द्र उपाध्याय और एमएलसी विजय शिवहरे का वार्ड है. जबकि दूसरी सीट भाजपा के जिलाध्यक्ष के बेटे चुनाव मैदान में थे.

कैबिनेट मंत्री
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Published : May 13, 2023, 4:41 PM IST

आगरा:यूपी निकाय चुनाव में आगरा की मतगणना के परिणाम लोगों को चौंका रहे हैं. आगरा नगर निगम में कई सीटों पर भाजपा पर बसपा भारी रही. इसके साथ ही निर्दलीय प्रत्याशी ने भी भाजपा को टक्कर दिए. आगरा नगर निगम वार्ड 76 से भाजपा प्रत्याशी की हार सुर्खियां बन गई है. क्योंकि, यह वार्ड योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री योगेन्द्र उपाध्याय का है. ऐसे में नगर निगम के वार्ड से भाजपा की हार चर्चा का विषय बन गया है.

शनिवार की सुबह से ही यूपी निकाय चुनाव की मतगणना जारी है. इस चुनाव में आगरा नगर निगम की कुछ सीटों का परिणाम चर्चा का विषय बन गया है. यहां कैबिनेट मंत्री योगेन्द्र उपाध्याय के वार्ड नंबर 76 से भाजपा प्रत्याशी की हार हुई है. इसके अलावा आगरा भाजपा जिलाध्यक्ष गिर्राज कुशवाह के बेटे अमरेश राज कुशवाह को बसपा प्रत्याशी ने हराया है. इस तरह से आगरा में कैबिनेट मंत्री और जिलाध्यक्ष भी अपना वार्ड नहीं बचा सके.

नगर निगम के वार्ड 76 से निर्दलीय प्रत्याशी श्रीराम धाकड़ ने जीत दर्ज करके भाजपा के कैबिनेट मंत्री के क्षेत्र में अपना डंका बजाया है. जिससे भाजपा के पार्षद प्रत्याशी को हार मिली है. इसी वार्ड में भाजपा के एमएलसी विजय शिवहरे भी रहते हैं. दोनों ही माननीय अपना वार्ड नहीं बचा सके. निर्दलीय प्रत्याशी श्रीराम धाकड़ ने कैबिनेट मंत्री योगेंद्र उपाध्याय के क्षेत्र वार्ड 76 से 276 मतों से जीत दर्ज की है. इससे भाजपा खेमे में चर्चा गर्म है. मतगणना स्थल पर लोग इस हार को बड़ी हार मान रहे है. क्योंकि, भाजपा से बागी होकर श्रीराम धाकड़े मैदान में उतरे थे.

आगरा नगर निगम के वार्ड 71 से भाजपा के जिलाध्यक्ष गिर्राज कुशवाह की पत्नी पार्षद थी. इस बार भाजपा ने जिलाध्यक्ष गिर्राज कुशवाह के बेटे अमरेश राज कुशवाह को टिकट दिया. जिसके विरोध में गिर्राज कुशवाह के भाई राजेंद्र कुशवाह ने चुनाव मैदान में ताल ठोंक दी थी. जिलाध्यक्ष के परिवार की रार से चुनाव मैदान में चाचा भतीजे आमने-सामने आ गए. इसके बाद परिवार की रार और बगावत का फायदा बसपा को मिल गया.



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