आगरा:ताजनगरी में भी गणेश पंडाल को लेकर तैयारियां चरम पर हैं. ऐसे में गणेश विर्सजन के बाद प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) की मूर्तियों की बेक्रदी से आहत दो युवाओं ने एहम पहल की है. ये युवा ईको फ्रेंडली गणेश प्रतिमा बना रहे हैं. दोनों बीते पांच साल से ताजनगरी में ईको फ्रेंडली गणेश के साथ ही मां दुर्गा और अन्य देवताओं की मूर्तियां बनाकर पर्यावरण संरक्षण का संदेश दे रहे हैं. ये दोनों युवा ईको फ्रेंडली मूर्तियां बनाने के लिए पंचगव्य का उपयोग करते हैं. ये युवा मूर्तियां बनाने में किसी प्रकार का केमिकल का इस्तेमाल नहीं करते. इनकी बनाई मूर्तियों की खासियत है कि ईको फ्रेंडली बप्पा विसर्जित करने पर दस मिनट में पानी में घुल जाते हैं. इन मूर्तियों में वो नीम, आम और जामुन के बीच भी डालते हैं, जिससे इनके विसर्जन पर यह बीज अंकुरित होकर पौधे बन जाएं. इसको ट्री गणेशा का नाम दिया है.
मूर्तियों का अनादर देखकर आया आइडिया
ईको फ्रेंडली मूर्तियां बनाने वाले लोकेश राव थोरात मूल रूप से महाराष्ट्र के रहने वाले हैं. उनके पिता रेलवे में नौकरी करते हैं. इसलिए वह पिछले 20 साल से आगरा में रह रहे हैं. लोकेश राव थोरात बताते हैं कि वे घर पर ही गणेश उत्सव के लिए मिटटी की मूर्ति बनाते थे. सन 2016 में जब हम बप्पा को बल्केश्वर में विसर्जित करने गए तो वहां पर हमने मूर्तियों का अनादर देखा. प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) और अन्य तेमिकल के कारण मूर्तियां घुल नहीं रही हैं. यमुना में यूं पडी मूर्तियों में कहीं बप्पा का हाथ टूटा हुआ है तो सिर कहीं और पडा है. लोग मूर्तियों पर खडे होकर सेल्फी ले रहे हैं. इसको देखकर हमें मिटटी की मूर्ति बनाने का आइडिया आया. इसे बडे स्तर पर करने की सोची. जिससे मूर्तियों का इस तरह से अनादर तो नहीं होगा. सन 2017 में हमने ईको फ्रेंडली गणेशा और मां दुर्गा की मूर्तियां बनाना शुरू कार दिया.
भावनगर की मिटटी में पंचगव्य मिलाकर बनाते हैं मूर्तियां
लोकेश के साथी नीलेश राव थोरात ने बताया कि मूर्ति बनाने के लिए हम गुजरात के भावनगर से मिटटी मंगवाते हैं. जो काली मिटटी होती है. हमारे यहां पर मूर्तियां बनाने के लिए महाराष्ट्र के नागपुर से मूर्तिकार आते हैं. मूर्ति बनाने के लिए मिटटी में पंचगव्य मिलाया जाता है. मूर्तियां सजाने में वॉटर कलर का इस्तेमाल किया जाता है. ताकि जब इन मूर्तियों को घर में टब या अन्य बर्तन में विसर्जित किया जाए तो पानी में मूर्ति घुल जाए. उसमें पंचगव्य मिला होने के कारण मिटटी उपजाऊ बन जाती है. जब इस मिटटी को किसी गमले या बागवानी में उपयोग करते हैं तो इसमें जो लगे बीज अंकुरित हो जाएं और एक पौध लगाई जा सके. नीलेश कहते हैं कि ये पर्यावरण के लिए भी बेहतर रहेगा.