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इस मंदिर में दिन के तीनों प्रहर बदलता है शिवलिंग का रंग, जुड़ी है विशेष कहानी - up news

पौराणिक और वैदिक मान्यताओं का समागम है सावन का मास, और इसे भगवान शिव का मास कहा जाता है. शास्त्रों में मनोरथ पूर्ति और संकट मुक्ति के लिए शिव की उपासना बताई गई है. बड़ी संख्या में भक्त अपने आराध्य शिव को पूजते हैं, उनकी कृपा और चमत्कार को अंगीकृत करते हैं. शिव की महिमा और भक्त की भक्ति के विवध रंग यहां दिख जाते हैं. सावन में शिव के दर्शन करने के लिए दूर दूर से भक्त पहुंचते हैं और उनके चमत्कार को नमन करते हैं. ऐसा ही चमत्कारी राजेश्वर महादेव मंदिर आगरा में स्थित है, जिसका इतिहास लगभग 900 साल पुराना माना जाता है. मान्यता है कि राजेश्वर मन्दिर में स्थापित शिवलिंग तीनों प्रहर रंग बदलता है. सुबह शिवलिंग का रंग दूधिया सफेद होता है जबकि दोपहर में शिवलिंग नीलकंठ समान जबकि शाम को हलका गुलाबी. तो आइए चलते हैं आगरा के राजेश्वर महादेव मंदिर और देखते हैं शिव की महिमा.

तीनों प्रहर बदलता है शिवलिंग का रंग
तीनों प्रहर बदलता है शिवलिंग का रंगतीनों प्रहर बदलता है शिवलिंग का रंग

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Published : Aug 2, 2021, 6:23 AM IST

आगरा: रविवार से सावन माह की शुरुआत हो गई. देश के विभिन्न मंदिरों पर भगवान शिव की झांकी सजाई गई है. सावन के आगमन पर बड़ी संख्या में भक्त अपने आराध्य शिव को पूजते हैं. ताज नगरी भी पीछे नहीं है. यहां सावन के चारों सोमवार खास महत्व रखते हैं, क्योंकि शहर के चारों ही कोनों पर महादेव के प्राचीन मंदिर स्थापित हैं. जहां, सावन के सोमवार पर भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है. भक्तों का मानना है कि शहर के चारों कोनों पर स्थित प्राचीन शिव मंदिर आगरा की विपत्ति से रक्षा करते हैं. कोरोना से पहले सावन के चारों सोमवार पर सभी मंदिरों पर मेला लगता था, जहां पहला मेला राजेश्वर मंदिर पर तो द्वितीय मेला बल्केश्वर, तीसरा पृथ्वीनाथ तो चौथा कैलाश मंदिर पर लगता है. लेकिन इस बार कोरोना महामारी की वजह से मेले का आयोजन नहीं हो पाया है.

तीनों प्रहर बदलता है शिवलिंग का रंग
अनोखा है मंदिर का इतिहास
आगरा के शमशाबाद रोड पर स्थित है राजेश्वर महादेव का मंदिर. इसका इतिहास लगभग 900 साल पुराना माना जाता है. मंदिर के महंत बताते हैं कि राजाखेड़ा का एक सेठ नर्मदा नदी (मध्य प्रदेश) के पास स्थित से बैलगाड़ी में शिवलिंग रख कर लेकर जा रहा था. बताया जाता है कि राजपुर चुंगी स्थान पर सेठ आराम करने के लिए रुक गया. आराम करते हुए सेठ की आंख लग गई, कि तभी स्वप्न में सेठ को शिव जी ने कहा कि शिवलिंग को इसी स्थान पर स्थापित कर दे, लेकिन सेठ नहीं माना. अगले दिन सेठ प्रस्थान के लिए चला और शिवलिंग को उठाने लगा, बहुत कोशिश की कि शिवलिंग को वहां से उठाकर ले जाए लेकिन शिवलिंग टस से मस नहीं हुए. कई लोगों को बुलाया गया. बैलगाड़ी से भी शिवलिंग को खींचने का प्रयास किया गया लेकिन शिवलिंग को हिला भी न पाए. आखिरकार शिवलिंग उसी स्थान पर स्थापित हो गए. बताया जाता है कि बाद में गांव के लोगों ने वहां पर शिवलिंग की भव्य स्थापना कर मंदिर का निर्माण कराया.
तीनों प्रहर बदलता है शिवलिंग का रंग
मान्यता है कि राजेश्वर मन्दिर में स्थापित शिवलिंग का रंग तीनों प्रहर बदलता है. मंदिर में पांच बार आरती होती है, लेकिन सुबह मंगला आरती के वक्त शिवलिंग का रंग दूधिया सफेद होता है जबकि दोपहर की आरती के वक्त शिवलिंग का रंग नीलकंठ की तरह गले पर नीला हो जाता है और शाम की आरती के वक्त शिवलिंग हल्का गुलाबी रंग का हो जाता है. भक्तों ने भी बताया कि वास्तव में शिवलिंग तीन बार रंग बदलता है.
इस बार नहीं लगा मेला
सुबह पांच बजे से भक्तों की लाइन मंदिर परिसर के बाहर लग जाती है. सावन के पहले सोमवार पर मंदिर के बाहर कई किलोमीटर तक भक्तों की लाइन देखने को मिली. प्रशासन की गाइड लाइन के अनुसार मंदिर में भक्तों को प्रवेश दिया गया. भक्तों ने भी कोरोना गाइडलाइन का पालन करते हुए मंदिर में पूजा अर्चना की. पिछले साल कोरोना काल में भी मंदिर में सन्नाटा रहा था, और इस बार भी मंदिर के उपासक ही पूजा-अर्चना कर सकेंगे. इस बार भी मेला नहीं होगा. मेला न लगने की वजह से भक्त थोड़ा मायूस नजर आए.

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