उत्तर प्रदेश

uttar pradesh

ETV Bharat / state

37 साल पहले सैफ गेम्‍स में जीता था स्वर्ण, आज बिता रहे गुमनामी में दिन

1984 में नेपाल में हुए दक्षिण एशियाई खेलों (South Asian Games) में भाला से सटीक निशाना साधकर देश को सोना दिलाने वाले आगरा के रिटायर सूबेदार मेजर सरनाम सिंह गुमनामी में दिन गुजार रहे हैं. ईटीवी भारत से बातचीत में वे बोले कि, गांव में एथलीट की नई पौध तैयार कर रहा था. लेकिन, खानदान के दो भाइयों की आपसी रंजिश ने गांव ही छुड़वा दिया.

रिटायर सूबेदार मेजर सरनाम सिंह
रिटायर सूबेदार मेजर सरनाम सिंह

By

Published : Aug 14, 2021, 10:42 AM IST

आगरा: टोक्यो ओलंपिक में एथलीट नीरज चोपड़ा ने भाला फेंक प्रतिस्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतकर देश का मान बढ़ाया है. इस जीत के बाद से देश में जश्न का माहौल है. इतिहास रचने वाले नीरज चोपड़ा को जनता अपनी पलकों पर बैठा रही है. मगर, सन् 1984 में नेपाल में हुए दक्षिण एशियाई खेलों (South Asian Games) में भाला से सटीक निशाना साधकर देश को सोना दिलाने वाले आगरा के रिटायर सूबेदार मेजर सरनाम सिंह गुमनामी में दिन गुजार रहे हैं.

ईटीवी भारत से बातचीत में वे बोले कि, गांव में एथलीट की नई पौध तैयार कर रहा था. लेकिन, खानदान के दो भाइयों की आपसी रंजिश ने गांव ही छुड़वा दिया. आज मेरे और परिवार के सामने सूबेदार पानसिंह तोमर (फौजी से डकैत बने) जैसे हालात परिवार, पुलिस और प्रशासन ने पैदा कर दिए हैं. मैं परिवार के साथ धौलपुर में किराए पर रह रहा हूं. न्याय के लिए लगातार पुलिस अधिकारियों से मिला, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई. मेरी जमीन बंजर पड़ी है.

रिटायर सूबेदार मेजर सरनाम सिंह


बता दें कि, 22 जनवरी 1957 को आगरा के फतेहाबाद ब्लाक के गांव अई निवासी पहलवान दीवान सिंह के यहां पर सरनाम सिंह का जन्म हुआ. सरमान सिंह के बड़े भाई सियाराम सेना से रिटायर हैं. सरनाम सिंह ने बताया कि, मैं 20 साल की उम्र में सन 1976 में सेना की राजपूत रेजीमेंट में सिपाही पद पर भर्ती हुआ था. मेरी लंबाई छह फीट दो इंच थी. फतेहगढ ट्रेनिंग सेंटर में मेरी लंबाई देखकर रिटायर्ड ब्रिगेडियर आरएल वर्मा ने मुझे पहले बास्केटबाल खिलाड़ी बनाया. मैं डिजीवन स्तर तक सेना में बास्केटबॉल खेला. वहीं, एथलीट तत्कालीन सूबेदार रतन सिंह भदौरिया ने मुझे बास्केटबॉल छोड़कर एथलीट बनने की सलाह दी और अपनी टीम में शामिल कर लिया. सरनाम सिंह ने बताया कि, जनता इंटर कॉलेज फतेहाबाद में पढाई कर रहा था. उस समय मैंने भाला फेंक प्रतियोगिता में प्रतिभाग किया था. जहां आगरा में दूसरे नंबर पर रहा था. इसलिए मैंने बास्केटबॉल छोड़कर भाला थाम लिया. भाला फेंकने का अभ्यास शुरू किया. अपने प्रदर्शन के दम पर सन 1982 के एशियाई खेलों के लिए ट्रायल दिया. जिसमें चौथे नंबर पर रहा.


बनाया था नया राष्ट्रीय रिकॉर्ड

सरनाम सिंह ने बताया कि, अभ्यास के दौरान मेरे हाथ में चोट लग गई. जिसके चलते मैं छह माह तक मैदान से बाहर रहा. मगर, अपनी लगन और मेहनत से सन् 1984 के नेपाल में आयोजित पहले दक्षिण एशियाई खेलों में भाला फेंककर स्वर्ण पदक जीता. इस स्पर्धा का रजत पदक भी भारतीय खिलाड़ी ने जीता था. इसके साथ ही सन् 1985 में 78.38 मीटर भाला फेंक कर नया राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाया. पहले राष्ट्रीय रिकॉर्ड गुरुतेज सिंह ने 76.74 मीटर भाला फेंक बनाया था.

रिटायर सूबेदार मेजर सरनाम सिंह गुमनामी में दिन गुजार रहे हैं
बीहड़ में तमाम नीरज, तराशने की जरूरत
सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी सरनाम सिंह का कहना है कि, आगरा के गांवों में तमाम ऐसे युवा हैं, जो अंतराष्ट्रीय स्पर्धाओं में सोना जीत सकते हैं. बस उनकी प्रतिभा तराशने की जरूरत है. मैंने भलोखरा गांव के माध्यमिक विद्यालय में करीब दो दर्जन बच्चों को प्रशिक्षण दिया था. इनमें हिमायूंपुर के भोला 70 मीटर तक भाला फेंकने लगा था. अगर, संसाधन उपलब्ध होने से उसका प्रदर्शन और अच्छा हो सकता था. मगर, उसके हाथ में चोट लग गई और अभ्यास छूट गया. आगरा के गांवों में मुहिम चलाकर ऐसे प्रतिभावान बच्चों को खोजकर प्रशिक्षण दिया जाए तो चंबल के बीहड़ से नीरज की तरह सोना जीतने वाले कई खिलाड़ी निकल सकते हैं.
रिटायर सूबेदार मेजर सरनाम सिंह गुमनामी में दिन गुजार रहे हैं
इन स्पर्धाओं में भी लिया हिस्सा

सरनाम सिंह ने बताया कि, मैंने सन् 1984 में मुंबई में आयोजित ओपन नेशनल गेम्स में प्रतिभाग किया. जहां पर मैं दूसरे स्थान पर रहा. सन् 1984 के नेपाल में आयोजित पहले दक्षिण एशियाई खेलों में भाला फेंककर स्वर्ण पदक जीता. इसके एक साल बाद सन् 1985 को जकार्ता में आयोजित एशियन ट्रैक एंड फील्ड प्रतियोगिता में मेरा पांचवां स्थान रहा. इसके साथ ही मैंने सन 1989 में दिल्ली में आयोजित एशियन ट्रैक एंड फील्ड प्रतियोगिता में भी हिस्सा लिया.
रिटायर सूबेदार मेजर सरनाम सिंह गुमनामी में दिन गुजार रहे हैं
सरनाम सिंह ने बताया कि, सन् 1985 में जब मैंने राष्ट्रीय रिकार्ड बनाया था. उस समय मैदान पर एक कुलपति मौजूद थे. समारोह में उत्तर प्रदेश सरकार के सचिव कृपाल सिंह से उन्होंने कहा था कि, इस लड़के ने रिकार्ड बनाया है. यह इनाम का हकदार है. एक हजार रुपये इनाम देना. मगर, ऐसा अभी तक नहीं हुआ है.

रिटायर सूबेदार मेजर सरनाम सिंह गुमनामी में दिन गुजार रहे हैं
रंजिश के चलते छोड़ना पड़ा गांव
सरनाम सिंह ने बताया कि, हमारे खानदान के दो भाइयों में जमीन को लेकर विवाद है. उनमें से एक भाई ने रंजिश के चलते मेरे भतीजे को हत्या के मामले में नामजद करा दिया. भतीजा जेल में हैं. हमें जब पुलिस ने परेशान किया तो गांव छोड़ दिया. अब रंजिश के चलते करीब एक साल से धौलपुर में किराए के मकान में रहे हैं. अब गांव लौटने का इंतजार कर रहे हैं. सरनाम सिंह का कहना था कि, अगर गांव नहीं लौटा तो धौलपुर के गांवों से बच्चों को खोजकर भाला फेंक में प्रशिक्षण दूंगा. मगर, गांव न जाने का मलाल है. जमीन बंजर पडी है. घरों पर ताले पडे़ हैं.

ABOUT THE AUTHOR

...view details