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'अटल टनल' में 1000 करोड़ का नुकसान बचाकर नायक बने रिटायर्ड ब्रिगेडियर मनोज कुमार

हिमाचल प्रदेश के मनाली में 'अटल टनल' बनकर तैयार हो गया है. इस टनल का लोकार्पण तीन अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे और उसे राष्ट्र को समर्पित करेंगे. बता दें कि यह टनल दुनियां की ऊंचाई पर बनी सबसे लंबी टनल है. 'अटल टनल' बनाने में आगरा के रिटायर्ड ब्रिगेडियर मनोज कुमार की भूमिका अहम रही.

अटल टनल बनकर तैयार
अटल टनल बनकर तैयार

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Published : Oct 1, 2020, 2:33 PM IST

आगरा: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीन अक्टूबर को 'अटल टनल' का लोकार्पण करेंगे और उसके बाद उसे राष्ट्र को समर्पित करेंगे. 4 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की कीमत से बने इस टनल का नाम पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर रखा गया है. यह टनल दुनियां की ऊंचाई पर बनी सबसे लंबी टनल है. 'अटल टनल' बनाने में आगरा के रिटायर्ड ब्रिगेडियर मनोज कुमार की भूमिका अहम रही. ब्रिगेडियर मनोज कुमार सेना के बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन (बीआरओ) में चीफ इंजीनियर रहे हैं. उनकी देखरेख में 'अटल टनल' का 90 प्रतिशत कार्य पूरा हुआ.

अटल टनल बनकर तैयार
रिटायर्ड ब्रिगेडियर मनोज कुमार ने न्यू आस्ट्रियन टनल मेथड का अध्ययन किया और विशेष किस्म के सीमेंट और कंक्रीट से नालों व झरनों का पानी टनल तक आने से रोका था. अब पीएम मोदी ने रिटायर्ड ब्रिगेडियर मनोज कुमार को तीन अक्टूबर के 'अटल टनल' के शुभारंभ कार्यक्रम में निमंत्रण भेजा है. ऐसे मौके पर जब रिटायर्ड ब्रिगेडियर मनोज कुमार से बात की गई तो उन्होंने 'अटल टनल' की खासियत और सुविधा पर चर्चा की. उन्होंने बताया कि ' अटल टनल' से जहां रोहतांग से होकर लेह तक 365 दिन तक सफर किया जा सकेगा. वहीं, इस टनल का फायदा स्थानीय लोगों के साथ ही सेना को मिलेगा. इस रास्ते से आसानी से सैनिकों की रसद के साथ ही सेना के साजो सामान भी सैन्य कैंप तक पहुंचाए जा सकेंगे.
दस हजार फीट की ऊंचाई पर 'अटल टनल'
रिटायर्ड ब्रिगेडियर मनोज कुमार का कहना है कि, विश्व में ऊंचाई पर स्थित सबसे लंबी टनल है. यह दस फीट की ऊंचाई पर बनाई गई टनल है, यह आधुनिक टनल है और इसमें 80 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से गाड़ी चलाई जा सकती है.
रोहतांग यानी लाशों का ढेर
रिटायर्ड ब्रिगेडियर मनोज कुमार का कहना है कि, 'अटल टनल' के बनने से दो फायदे हैं. पहला यह कि, रोहतांग से सटा जिला लाहोलस्फीती वहां की जनता के लिए जेल के समान था, क्योंकि बर्फबारी के चलते यह जिला 6 से 7 महीने तक बंद हो जाता था और रोहतांग को पार करने में कई लोग मर जाते थे. अब इस टनल के बनने से से वहां पर आवाजाही सुगम हो जाएगी और साल भर लोग आसानी से आ जा सकेंगे.
अटल टनल
टनल में एयर डक से ऑक्सीजन ऑटोमेटेकली कंट्रोल
रिटायर्ड ब्रिगेडियर मनोज कुमार का कहना है कि, 'अटल टनल' की लंबाई 9.02 किलोमीटर है. यह डबल टनल है. टनल के नीचे दूसरी टनल है. किसी भी कारण यदि मुख्य टनल बंद हो जाती है तो हर 500 मीटर पर एग्जिट है. जिससे आप रोड से नीचे निकल सकते हैं. फिर किसी ओर पर बाहर निकल सकते हैं. लंबी टनल होने की वजह से ऑक्सीजन की समस्या हो सकती है. इसे देखते हुए टनल के ऊपर एयर डक बनाए गए हैं. जहां से टनल में ऑक्सीजन भी भेजी जाती है. वहां मॉनिटर लगे हुए हैं. और ऑक्सीजन कम होता है तो उसे ऑटोमेटेकली बढ़ा दिया जाएगा. इसलिए टनल में ऑक्सीजन की कमी नहीं है.
टनल है सेंट्रली कंट्रोल
रिटायर्ड ब्रिगेडियर मनोज कुमार का कहना है कि, 'अटल टनल' में ऑटोमेटिक लाइटिंग सिस्टम है और ऑटोमेटिक फायर फाइटिंग सिस्टम है. जो टनल में आग लगने या किसी गाड़ी में आग लगने पर ऑटोमेटिक एक्टिव हो जाएगा और जो 50 मीटर के क्षेत्र को आईसोलेट कर देगा जिससे लोग खुद को सुरक्षित रख सकेंगे. टनल में लाउडस्पीकर लगे हैं. एनाउंसमेंट होती रहती है. टनल में सब कुछ सेंट्रली कंट्रोल है.
टनल बनाने आईं यह दिक्कतें
रिटायर्ड ब्रिगेडियर मनोज कुमार ने बताया कि, 'अटल टनल' बनने की शुरुआत सन् 2010 में हुई थी. इस टनल का पहले बनने का प्लान सन् 2015 था. पांच साल का यह प्लान था, लेकिन 2012 के बाद हम सेरी नाला के पास फंस गए. सेरी नाला टनल के ऊपर से बहता है. जब आगे खुदाई की तो नाले से रिसाव शुरू होने लगा. मलबे के साथ टनल में कीचड़ आने लगी. इससे टनल के आगे बनाने का काम एकदम रुक गया. सेरी नाले का करीब 6 सौ मीटर का इलाका बनाने में हमें पूरे 4 साल बर्बाद हुए. मुश्किल यह थी कि हम एक मीटर आगे बढ़ते थे, लेकिन मलबे की वजह से हमें दो मीटर पीछे हटना पड़ता था. इसके लिए वैज्ञानिक भी बुलाए गए, सेरी नाला से मलबे के साथ 110 से 120 लीटर पानी प्रति सेकंड बह रहा होता था. इस मलबे को रोकना और उसे कंट्रोल करना, यह हमारे लिए सबसे बड़ा चैलेंज था.
1000 करोड़ से ज्यादा का नुकसान बचा
रिटायर्ड ब्रिगेडियर मनोज कुमार का कहना है कि, सेरी नाला के मलबे और पानी के तेज रिसाव के बाद दूसरा सबसे बड़ा चैलेंज था कार्यदाई संस्था का हाथ खड़े कर देना. कार्यदाई संस्था ने कहा कि अब टनल को नहीं बनाया जा सकता है. हमें एक नया रास्ता चुनना होगा. इस पर हमारी टीम में कार्यदाई संस्था का विरोध किया. हमने अपनी बात डिफेंस सेक्रेट्री के सामने रखी और उनसे एक महीने का समय मांगा कहा कि हम आपको गारंटी देते हैं कि, नाले का इलाका पार कर देंगे. डिफेंस सेक्रेट्री ने हमारी बात मानी. हमने 31 दिसंबर 2015 को सेरी नाले वाला इलाका पार किया. जबकि कांट्रैक्टर चाहता था कि नया रास्ता बनाया जाए. जिससे करीब 1हजार करोड़ से ज्यादा का नुकसान हो सकता था. वह हमारी टीम की वजह से बच गया.
लेह का रास्ता सुगम, जवानों को मेंटेन करना आसान
रिटायर्ड ब्रिगेडियर मनोज कुमार का कहना है कि, ' अटल टनल ' का सेना को बहुत फायदा होगा. बर्फबारी की वजह से गलवान वैली या पंगासुलेह के पास समस्या आई थी. हम पहुंच नहीं पाते थे, एयर से पहुंचते थे. मगर, इस टनल के बनने से लेह की कनेक्टिविटी बहुत अच्छी हो गई है. हम अब लैंड मार्ग के रास्ते भी पहुंच सकते हैं. उन्होंने कहा कि यह बहुत बड़ा अचीवमेंट है. दूसरी तरफ से जो रास्ता श्रीनगर के पास जाएगा. वह टनल अभी बना नहीं है. वह टनल बन जाएगा तो किसी भी तरफ से लेह पहुंच सकेंगे.
ताजनगरी में राष्ट्रीय सुरक्षा जागरण मंच और तमाम सामाजिक संगठनों ने अपने बेहतरीन और राष्ट्रप्रेम का काम करने वाले रिटायर्ड ब्रिगेडियर मनोज कुमार का अभिनंदन किया, उनका सम्मान किया और उनके अटल टनल के निर्माण में लेकर किए गए कार्य की सराहना की. रोहतांग में बनी 'अटल टनल' का आगरा कनेक्शन बेहद दिलचस्प है. आगरा की शान पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर यह टनल है. तो वहीं ताजनगरी के रिटायर्ड ब्रिगेडियर मनोज कुमार ने इसमें अपना पसीना बहाया है. भारतीय सेना के लिए 'अटल टनल' वरदान साबित होगी. रिटायर्ड ब्रिगेडियर मनोज कुमार सन् 2014 से 2016 तक 'अटल टनल' प्रोजेक्ट से जुड़े रहे तत्कालीन रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने उन्हें शाबाशी दी थी.

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