आगराः शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशां होगा... कवि जगदंबा प्रसाद की यह पंक्तियां आगरा की जमीन पर आकर बेमानी हो जाती हैं. यहां पर मेले की बात तो दूर, शहीद की प्रतिमा सम्मान तक के लिए तरस गई है. बूढ़ी मां शहीद की प्रतिमा पर रोज दीप जलाकर आंसू बहाती है. बात हो रही है आगरा जिले के बाह तहसील से सटे गांव लालपुरा की.
लालपुरा गांव के 'लाल' निर्वेश कुमार की शहादत को 11 साल हो गए हैं. सीआरपीएफ के बहादुर जवान निर्वेश कुमार ने दंतेवाडा में नक्सलियों से लोहा लिया था. 11 साल पहले दांतेवाड़ा में हुए नक्सली हमले में सीआरपीएफ के 76 जवान शहीद हुए थे. इनमें निर्वेश कुमार भी शामिल थे. मगर, निर्वेश कुमार ने अदम्य साहस का परिचय दिया. शहादत से पहले निर्वेश कुमार ने नौ नक्सलियों को ढेर किया था. बहादुर जवान निर्वेश कुमार की शहादत पर सरकार ने ढेरों वायदे किए थे मगर अब तक सभी वादे अधूरे हैं. मां-बाप और परिजन उसकी यादों को संजोए हैं. बुजुर्ग माता-पिता ने अब वादे पूरे होने की उम्मीद भी छोड़ दी है.
आपरेशन ग्रीन हंट में शामिल थे निर्वेश
जिला मुख्यालय से करीब 120 किलोमीटर दूर गांव लालपुरा निवासी निर्वेश कुमार पुत्र प्रीतम सिंह नरवरिया सीआरपीएफ में थे. छत्तीसगढ़ में भारत सरकार ने नक्सलियों के सफाए के लिए ऑपरेशन ऑफ ग्रीन हंट शुरू किया था. इसमें निर्वेश कुमार की सीआरपीएफ की बटालियन भी शामिल थी. 6 अप्रैल 2010 को छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में ताल मेटला नामक स्थान पर सीआरपीएफ जवानों पर नक्सलियों ने घात लगाकर हमला किया था. इसमें सीआरपीएफ के 76 जवान शहीद हुए. मुठभेड़ में 9 नक्सली भी ढेर हो गए. शहीदों में निर्वेश कुमार भी शामिल थे. शहीद निर्वेश कुमार का पार्थिव शरीर गांव पहुंचा तो हर आंख नम हो गई. वीर जवान की शहादत पर सरकार की ओर से तमाम वादे किए गए थे.
शहीद स्मारक भी खुद बनाया
शहीद के पिता प्रीतम सिंह का कहना है कि गृह मंत्रालय की 2011 की डायरी में शहीद के नाम पर शहीद स्मारक के निर्माण का उल्लेख था मगर, शहीद स्मारक का निर्माण नहीं कराया गया. ऐसे में वर्ष 2012 में खुद की मेहनत की कमाई से, खुद की जमीन पर ही बेटे की यादों को सहेजने के लिए स्मारक का निर्माण कराया. इसका लोकार्पण सीआरपीएफ के आईजी ने छह अप्रैल 2014 को किया था. लोक निर्माण विभाग ने शहीद स्मारक का एस्टीमेट 3.12 लाख रुपए का बनाया था. सरकार से भी लोक निर्माण विभाग से भुगतान कराने का आश्वासन मिला था. इस बारे में सीआरपीएफ अंबिकापुर छत्तीसगढ़ के कमांडेंट मैथ्यू ए जान ने डीएम आगरा को पत्र लिखा था. मगर, अभी तक स्मारक बनाने की रकम का भुगतान नहीं हुआ है. कई बार लिखित स्मरण पत्रों से अधिकारियों से संपर्क किया है. इसके बावजूद भी भुगतान नहीं हुआ है. डीएम आगरा की ओर से कोई भी संतोषजनक जवाब नहीं दिया गया. इसलिए अब थक कर बैठ गया हूं. क्योंकि, इस बारे में माननीय राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री सहित निदेशक सीआरपीएफ को भी प्रार्थना पत्र भेजें हैं. मगर, भुगतान की बात दूर जिला स्तर से कार्रवाई का जिक्र भी नहीं आया है.
यह वादे भी अधूरे
शहीद के पिता प्रीतम सिंह का कहना है कि वीर सपूत निर्वेश कुमार की शहादत पर सरकार ने तमाम वादे किए थे. इनमें गांव की मुख्य सड़क का नाम शहीद के नाम से बनाया जाना, शहीद की स्मृति में गांव के तालाब का सौंदर्यीकरण, घर के लिए पक्की पगडंडी मार्ग, शहीद स्मारक निर्माण परिजनों को सुविधा देने का वादा किया था. मगर वादे सिर्फ कागजों तक ही सीमित रह गए हैं. वादों को लेकर ढेरों शिकायतें कीं मगर, उनके घर के लिए 60 मीटर पक्की पगडंडी भी नहीं बन सकी है. गांव की सड़क मार्ग का नाम शहीद के नाम से नहीं हुआ. स्मारक के लिए जमीन तो छोड़िए 5 मीटर जगह तक सरकार नहीं दे पाई.
मां-बाप की हो रही पेंशन से गुजर बसर
शहीद निर्वेश कुमार के पिता प्रीतम सिंह नरवरिया डाक विभाग में कार्यरत थे. वह अब रिटायर हो गए हैं. उनका बड़ा बेटा सुभाष अपने परिवार के साथ गांव में ही अलग रहता है. छोटा बेटा निर्वेश कुमार था. प्रीतम सिंह की पेंशन और खेती से कुछ रुपये आ जाते हैं. उससे ही बुजुर्ग प्रीतम और शांति देवी की गुजर बसर हो रही है.
बहू की करा दी दूसरी शादी
शहीद निर्वेश कुमार के पिता का कहना है कि बेटे की शादी शहीद होने से कुछ माह पहले हुई थी. जब बेटा शहीद हो गया तो उसकी पत्नी उदास रहने लगी. एक ओर बेटा दुनिया से चला गया. दूसरी ओर बहू का रोना उन्हें चिंतित करने लगा. उसकी तो नयी बसी दुनिया भी उजड़ गई. ऐसे में बहू के परिजनों से बातचीत की और उसका दूसरा विवाह करा दिया.
जनप्रतिनिधियों ने नहीं ली सुध
शहीद निर्वेश कुमार की शहादत पर तमाम क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों एवं शासन प्रशासन के लोग आए पर आज तक परिवार का हालचाल जानने नहीं आए. प्रीतम सिंह का कहना है कि उनके घर के सामने 60 मीटर का कच्चा रास्ता है. उसे बनवाने के लिए ग्राम प्रधान से लेकर जनप्रतिनिधियों तक गुहार लगा चुके हैं. मगर, कोई सुनवाई नहीं हुई. पास से ही अखिलेश सरकार में बनाया गया साइकिल ट्रैक गुजरा है. मगर, शहीद के घर तक रास्ता नहीं बनाया गया. आज भी परिवार एक पगडंडी से ही आता-जाता है.
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भर आई मां की आंखें
मां शांतिदेवी अपने शहीद बेटे शहीद जवान निर्वेश कुमार की यादें संजोए रहती है. सुबह और शाम बेटे के स्मारक पर दीपक जलाती हैं. जब बेटे की याद आती है तो उसकी तस्वीर गोद में रखकर देख लेती हैं. तस्वीर को अपनी साड़ी के पल्लू से साफ करती हैं. ईटीवी भारत की टीम को देखकर वह भावुक हो गईं. कहने लगीं कि, बेटे का दर्द एक मां ही जानती है. तीज त्योहार, शादी-विवाह कार्यक्रम और अन्य मौकों पर बेटे निर्वेश की बहुत याद आती है. बेटे ने देश के लिए अपनी जान कुर्बान की. दुश्मनों से लड़ते हुए शहीद हो गए. उन्हें अपने बेटे पर गर्व है.