आगरा :लाॅकडाउन से प्रदूषण का स्तर कम होने और मौसम की मेहरबानी से प्रवासी परिंदे ताजनगरी पहुंच रहे हैं. आगरा-मथुरा बॉर्डर पर स्थिति जोधपुर झाल पर प्रवासी पक्षियों का खूब कलरव देखने को मिल रहा है. गुलाबी सर्दी और सूरज की तपिश कम होते ही जोधपुर झाल प्रवासी परिंदों से गुलजार हो गई है. जोधपुर झाल की प्राकृतिक शरणस्थली में साइबेरिया की पिपिट ने आशियाना बना लिया है. साइबेरिया से हजारों किलोमीटर की यात्रा करके आई पिपिट की दो प्रजातियां जोधपुर झाल की गोद में सर्दी भर प्रवास करेंगी.
दुनिया में पिपिट की 50 प्रजातियां, भारत में अकेली 11 प्रजातियां
बायोडायवर्सिटी रिसर्च एंड डवलपमेंट सोसायटी के अध्यक्ष व पक्षी वैज्ञानिक डॉ केपी सिंह ने बताया कि पिपिट पासिफ़ॉर्मस आर्डर की मोटासिलिड परिवार के जीनस ऐन्थस में वर्गीकृत है. पिपिट को फील्डलार्क या टिटलार्क भी कहते हैं. पिपिट का आकार 5 से 9 इंच का होता है. यह पतले होते हैं. पिपिट की नुकीली चोंच, नुकीली पंख और लंबे पैरों के बड़े पंजे इसकी पहचान हैं. यह खुले मैदानों में कीटों को खाती है. पिपिट जमीन पर अंडे देती हैं. इनके अंडों की संख्या 6 तक होती है. पिपिट सूखे रेगिस्तान, वर्षावन और अंटार्कटिका को छोड़ पूरी दुनिया में पाई जाती हैं. दुनिया भर में पिपिट की लगभग 50 प्रजातियां हैं. अकेले भारत में पिपिट की लगभग 11 प्रजातियां पाई जाती हैं. जिनके नाम अपलेन्ड पिपिट, रोजी पिपिट, रिचर्ड्स पिपिट, पेडीफील्ड पिपिट, ब्लिथ पिपिट, टैनी पिपिट, नीलगिरी पिपिट, लोंग बिल्ड पिपिट ओलाइव पिपिट, ट्री पिपिट और बाटर पिपिट हैं.
जोधपुर झाल की जैव विविधता का अध्ययन कर रहे बायोडायवर्सिटी रिसर्च एंड डवलपमेंट सोसायटी के सदस्यों ने जोधपुर झाल पर पिपिट की चार प्रजातियों की पहचान की है. पक्षी विशेषज्ञ डॉ केपी सिंह ने बताया कि जोधपुर झाल पर अक्टूबर माह में साइबेरिया से प्रवासी टैनी पिपिट और ट्री पिपिट सर्दियों के मौसम में प्रवास के लिए पहुंची हैं. जोधपुर झाल पर पेडीफील्ड पिपिट व लोंग बिल्ड पिपिट पहले से ही मौजूद हैं.
ट्री पिपिट