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करवाचौथ का चांद भी नहीं बचा सका इन गांवों की महिलाओं का सिंदूर

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Published : Oct 17, 2019, 11:34 PM IST

उत्तर प्रदेश के आगरा में कई गांव की महिलाएं छोटी उम्र में ही विधवा हो रही हैं, क्योंकि यहां के पुरुष पत्थर खदान का काम करते हैं, जिससे उनको सिलिकोसिस नाम की गंभीर बीमारी हो रही है.

सिलिकोसिस से मर रहे लोग.

आगरा: करवाचौथ यानी सुहाग की लम्बी आयु के लिए निर्जला व्रत रखने का दिन, महिलाओं के सोलह श्रृंगार करने का दिन. जिले के जगनेर ब्लॉक के दस से ज्यादा गांव की महिलाएं जब शादी के बाद ससुराल आईं तो हर साल पति के दीर्घायु के लिए व्रत रखा, मन से पूजा-पाठ किया. मगर किसी को पति का साथ 5 साल मिला तो किसी की मांग में 10 और 15 साल तक सुहाग का सिंदूर सजा, फिर सिंदूर मिट गया. इन गांव की महिलाओं का सुहाग करवाचौथ का चांद भी नहीं बचा सका. इस गांव में एक हजार से अधिक महिलाओं का सिंदूर सिलिकोसिस नाम की बीमारी ने छीन लिया। आज करवाचौथ की स्पेशल रिपोर्ट में जानिए विधवाओं की दर्द भरी कहानी...

सिलिकोसिस से मर रहे लोग.

दो वक्त की रोटी देने वाले काम ने दी लाइलाज बीमारी

जिन गांव की कहानी हम आपको बताने जा रहे हैं, उनकी संख्या 10 से ज्यादा है. इन गांव की महिलाओं ने भी शादी के बाद पति की दीर्घायु के लिए करवाचौथ का व्रत रखा था, मगर जिस पत्थर की खदान और खनन के काम से उनके परिवार की दो वक्त की रोटी चलती थी, उसी काम ने परिवार का खेवनहार छीन लिया. पत्थर की खदान में काम करने वाले पति को ऐसी बीमारी लगी, जिसका नाम सिलिकोसिस है. यहां की महिलाएं इस बीमारी का नाम भी नहीं जानती हैं. वे सिलिकोसिस को टीबी समझती हैं और सभी को यही बताती भी हैं.

पुरुषों की औसत आयु 45 साल

इन गांवों में पुरुषों की औसत आयु 45 साल है. सरकार की रोक से इस गांव में पत्थर खदान का काम बंद हो गया, लेकिन यहां के लोगों को सिर्फ पत्थर के कार्य में ही महारत हासिल है, जिसके चलते ये लोग यहां से पलायन कर दूसरे स्थानों पर पत्थर खदान का काम करने जा रहे हैं. इन गांवों की बात करें, तो यहां पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की संख्या अधिक है, क्योंकि यहां पुरुष की औसत आयु महज 40 से 45 वर्ष के बीच ही है.

115 महिलाएं ले रही हैं पेंशन

इन गांवों की बात करें तो यहां शायद ही कोई ऐसा घर हो जहां विधवा न हो. अधिकतर गरीब घरों में एक या दो विधवा महिलाएं हैं. ग्राम रोजगार सेवक कल्याण सिंह ने बताया कि जगनेर ब्लॉक की बात करें, तो यहां विधवा महिलाओं की संख्या एक हजार का आंकड़ा पार करती है. उन्होंने बताया कि सिर्फ बसई ग्राम पंचायत में 115 विधवा महिलाएं पेंशन ले रही हैं. इस साल 50 और विधवाओं के लिए पेंशन प्रस्ताव भेजा हुआ है और करीब 150 और भी विधवाएं महिलाएं गांव में हैं.

छोटी उम्र में हुईं विधवा

विधवा राजो ने बताया कि पति की मृत्यु चार वर्ष पूर्व हुई थी. पति की उम्र करीब 37 वर्ष थी. वह पत्थर खदान का काम करते थे. महिला ने बताया कि उनका देवर भगत भी पत्थर खदान में काम करता था. दोनों की तबियत कई महीनों तक खराब रही. डॉक्टरों ने बताया कि टीबी हुआ है, जिसका इलाज हुआ, लेकिन वह ठीक नहीं हुए और बाद में उनकी मृत्यु हो गई.
किशनदेवी ने बताया कि उनके पति की मृत्यु शादी के 10 वर्ष बाद हो गई थी. पति पत्थर खदान में काम करते थे. उनको डॉक्टर ने टीबी की बीमारी बताई थी, लंबे इलाज के बाद उनकी मृत्यु हो गई.

सिलिकोसिस के लिए नहीं कोई बोर्ड और बजट

जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ. यू बी सिंह ने बताया कि पत्थर खदान, पत्थर कटाई और घिसाई का काम करने वाले श्रमिकों को सिलिकोसिस नाम की बीमारी होती है. जगनेर, किरावली, फतेहपुर सीकरी और राजस्थान के बॉर्डर के गांव में सिलिकोसिस के मरीज हैं. पत्थर का काम करने वालों के फेफड़ों में पत्थर के पार्टिकल काम करते समय चले जाते हैं. यह पार्टिकल्स फेफड़ों को जाम कर देते हैं, जिससे फेफड़ों में ऑक्सीजन के जाने के लिए स्पेस खत्म हो जाती है. इसमें मरीज को सांस लेने में तकलीफ और आगे होती है जो आगे चलकर मौत का कारण बन जाती है. सिलिकोसिस के मरीज को टीबी के मरीज वाली सरकारी सुविधाएं दी जाती हैं. इसके लिए कोई बोर्ड गठित नहीं है.

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