आगरा: पैराओलंपिक में भारतीय खिलाड़ी अपना शानदार प्रदर्शन कर रहे हैं. पैराओलंपिक में अब तक भारत ने 10 पदक हासिल किए हैं. खिलाड़ी पैराओलंपिक में देश का मान बढ़ा रहे हैं. वहीं, भारत में ऐसे भी खिलाड़ी हैं जिन्हें मौका और आर्थिक सहायता मिले तो इन पदकों की संख्या और भी बढ़ सकती है, लेकिन सरकार से कोई सहायता न मिलने की वजह से और आर्थिक तंगी झेलने के कारण अधिकतर खिलाड़ी वहां तक नहीं पहुंच पाते. ऐसी ही यूपी की इकलौती महिला खिलाड़ी है जो गरीबी का दंश झेल रही है. इनके पैरों में जान नहीं, लेकिन उनके सपनों में जान है. वह भी पैराओलंपिक में खेलकर देश के लिए मेडल लाकर देश का नाम रोशन करना चाहती है.
आवल खेड़ा के महावतपुर एक छोटे से गांव की रहने वाली दिव्यांग निशा रावत ने आगरा का ही नहीं, बल्कि यूपी का भी नाम रोशन किया है. यूपी की इकलौती पैरा खिलाड़ी हैं, जिन्होंने नेशनल में पैरा कैनो कायाकिंग वाटर स्पोर्ट्स में 3 ब्रॉन्ज पदक जीते, लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि आज तक निशा को यूपी सरकार की तरफ से स्पोर्ट्स व्हीलचेयर तक नहीं मिली.
पैर के ऑपरेशन के दौरान महिला खिलाड़ी से मिली थी प्रेरणा
निशा बताती है कि वह बचपन से ही पैरों से नहीं चल सकती. बिना सहारे एक कदम नहीं बढ़ा पाती. उन्हें हमेशा अफसोस होता था कि बिना सहारे के एक कदम भी नहीं बढ़ा सकतीं. अपने पैरों को देखकर निशा हमेशा रोती थी और अफसोस करती थी कि काश वह भी कुछ करती. निशा भी औरों की तरह सपने देखती थी कि वह भी कुछ बने और कुछ करे. 2019 में निशा अपने पिता के साथ पैर का ऑपरेशन करवाने उदयपुर गई थी, जहां मध्यप्रदेश के भिंड की पैरा खिलाड़ी पूजा अहूजा से उसकी मुलाकात हुई. उन्होंने निशा को स्पोर्ट्स में आने के लिए कहा. पूजा की बात का निशा पर इतना असर हुआ कि उन्होंने पैर के ऑपरेशन के बाद घर आकर अपने पिता से जिद की कि वह भी गेम्स खेलेंगी और देश का नाम रोशन करेगी. पूजा से ही प्रेरणा लेते हुए पैरा कैनो कायाकिंग वाटर स्पोर्ट्स में हाथ आजमाया. इसके बाद निशा ने पीछे मुड़कर नहीं देखा.
मजबूरी और लाचारी के आगे बार-बार रुक जाते हैं कदम