आगरा: 'हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा, काल के कपाल पर लिखता मिटता हूं, गीत नया गाता हूं'. अटलजी के इरादों की इन पंक्तियों का बटेश्वर से गहरा नाता है. बटेश्वर से भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की तमाम यादें जुड़ी हैं. फिर चाहे वह बचपन की उछलकूद हो या दोस्तों संग हंसी-ठिठोली. यही नहीं आजादी की लड़ाई में अटलजी का शामिल होना भी बटेश्वर से जुड़ा है. हालांकि आज भी बटेश्वर विकास की राह देख रहा है.
केंद्र और राज्य की सत्ताधारी पार्टी के संस्थापकों में शामिल अटलजी का गांव अभी भी विकास की राह देख रहा है. आज अटलजी की द्वितीय पुण्यतिथि है. अटलजी के निधन के बाद खुद सीएम योगी ने बटेश्वर के विकास का खाका तैयार किया था. विकास का वादा भी हुआ, 10 करोड़ का बजट भी घोषित हुआ. दो साल बीत गए लेकिन अटलजी के गांव में विकास की नींव भी नहीं रखी गई. अटलजी की खंडहर पैतृक हवेली पर कंटीले बबूल की झाड़ियां खड़ी हैं. सरकार के वादे खोखले साबित हो रहे हैं.
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अपने पैतृक गांव बटेश्वर अप्रैल-1999 में आखिरी बार आए थे. उन्होंने रेलवे लाइन का शिलान्यास और पर्यटक कॉन्प्लेक्स का लोकार्पण किया था. इसके बाद फिर अटलजी का अपने पैतृक गांव बटेश्वर आना नहीं हुआ था. व्यवहार और भाषा से विपक्षियों को भी मित्र बनाने वाले अटलजी भाजपा में बेगाने हो गए हैं. बीजेपी के कई बड़े नेता मंच पर तो अटलजी को याद करते हैं लेकिन अभी भी अटलजी का पैतृक गांव विकास की राह देख रहा है.
बटेश्वर में 'भदावर की काशी'
राजनीति के अजातशत्रु अटल बिहारी वाजपेयी के बटेश्वर गांव के वैभव का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बटेश्वर सब तीर्थों का भांजा है. इसे 'भदावर की काशी' भी कहते हैं. भदावर के महाराजाओं ने यमुना किनारे यहां पर 108 शिवालयों की श्रंखला बनवाई थी. यहां पर यमुना भी उल्टी धारा में बहती हैं. बटेश्वर धाम पर देसी-विदेशी पर्यटक भी आते हैं. हर सोमवार को बटेश्वर में बड़ा मेला लगता है. यहां भक्त भगवान शिव की आराधना करने आते हैं. यमुना में स्नान करके भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं.