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आगरा किला के सामने शिलापट्ट में गलत जानकारी, लिखा 'सन् 1966 में आए थे शिवाजी'

ताजनगरी आगरा में निर्माणाधीन मुगल म्यूजियम का नाम बदलकर शिवाजी म्यूजियम रखा गया है, लेकिन आगरा किला के सामने लगी शिवाजी महाराज की प्रतिमा के शिलापट्ट में गलत इतिहास लिख दिया गया है. इतिहासकारों का कहना है कि शिकायत के बाद भी इसमें कोई बदलाव नहीं किया गया.

शिवाजी के बारे में शिलापट्ट पर लिखी गलत जानकारी
शिवाजी के बारे में शिलापट्ट पर लिखी गलत जानकारी

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Published : Sep 17, 2020, 1:37 PM IST

आगरा: सीएम योगी ने बीते दिनों आगरा में निर्माणाधीन 'मुगल म्यूजियम' का नाम बदलकर 'शिवाजी म्यूजियम' कर दिया है. इससे प्रदेश में नई राजनैतिक उथल-पुथल शुरू हो गई है. 'शिवाजी म्यूजियम' नाम रखने के पीछे बीजेपी ने आगरा से जुड़े शिवाजी महाराज के इतिहास का तर्क दिया है, लेकिन आगरा किला के सामने लगी शिवाजी महाराज की प्रतिमा के शिलापट्ट में गलत इतिहास लिखा गया है. इतिहासकार की शिकायत के बाद भी इसे बदला गया है.

शिवाजी के बारे में शिलापट्ट पर लिखी गलत जानकारी
गलत लिखी जानकारीबता दें कि, आगरा किला के सामने स्थित शिवाजी महाराज की प्रतिमा का अनावरण सन् 2001 में तत्कालीन गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह और महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख के कर कमलों से हुआ था. इसका शिलापट्ट भी प्रतिमा के सामने लगा हुआ है.

शिवाजी महाराज के आगरा आने और कैद होने का इतिहास सन् 1666 का है. जबकि, शिलापट्ट पर लिखा है कि शिवाजी महाराज सन् 1966 में आए थे. इसमें तीन सदी का अंतर है. जिसके बाद शिलापट्ट पढ़कर यहां आने वाले लोग और पर्यटक भ्रमित हो रहे हैं.

शिकायत के बाद भी नहीं हुआ बदलाव
इतिहासकार राजकिशोर राजे का कहना है कि शिवाजी महाराज की प्रतिमा का एक शिलापट्ट गलत जानकारी दे रहा है. शिवाजी महाराज 11 मई 1666 को दक्षिण से चलकर आगरा आए थे. जहां औरंगजेब ने उन्हें कैद कर लिया था. अपनी चतुराई से शिवाजी महाराज यहां से अगस्त 1666 में औरंगजेब की कैद से निकलकर सकुशल अपनी राजधानी पहुंच गए थे. मगर आगरा किला के सामने प्रतिमा पर लगे शिलापट्ट हिंदी में यह जानकारी गलत दी गई है.

शिलापट्ट पर लिखा है कि, शिवाजी महाराज 12 मई 1966 को आगरा आए और अगस्त 1966 में औरंगजेब की कैद से सकुशल चतुराई से निकल कर चले गए. इतिहासकार का कहना है कि इस बात की जानकारी सीएम के साथ ही डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय के कुलपति से भी की थी, लेकिन अभी तक शिलापट्ट का इतिहास सही नहीं कराया गया. इस शिलापट्ट को पढ़कर लोग भ्रमित हो रहे हैं.

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