आगरा:जिले में भगवान शिव का एक ऐसा मंदिर स्थापित है, जहां शिवलिंग को बाहों में भरने से मनोकामना पूर्ण हो जाती है. मान्यता है कि मोटेश्वर महादेव (Moteshwar Mahadev) (मोटा शिवलिंग) की स्थापना सतयुग में भगवान कार्तिकेय ने की थी. मंदिर में दर्शन करने के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं. यह मंदिर सिकंदरा स्थित प्रशिद्ध कैलाश मंदिर से करीब 3 किलोमीटर अंदर घने जंगलों में स्थापित है.
इस मंदिर के बारे में कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं. ईटीवी भारत की टीम मोटेश्वर महादेव मंदिर के इतिहास को जानने पहुंची. कैलाश मंदिर के दक्षिण में घने जंगलों में विराजमान मोटेश्वर महादेव (मोटा महादेव) का रास्ता बेहद डरावना था. उबड़-खाबड़ रास्तों से गुजरते हुए ईटीवी भारत की टीम मोटेश्वर महादेव मंदिर तक पहुंची. यहां एक छोटी सी कुटिया में लाल पत्थर का एक विशाल शिवलिंग नजर आया. महंत महाकाल भारती से मंदिर की पौराणिक कथाओं के बारे में जाना. महाकाल भारती ने बताया कि मोटेश्वर महादेव की स्थापना सतयुग में भगवान शिव के बड़े पुत्र कार्तिकेय ने की थी. वे इस जगह तपस्या करने आए थे. वे अपने पिता शिव के परम भक्त थे. यह मंदिर अपने में अलौकिक है. शहर से दूर जंगलों में भगवान शिव विराजमान हैं. उनके भक्त दूर-दूर से यहां आते हैं.
महंत महाकाल भारती ने भगवान मोटेश्वर महादेव की एक अद्भुत विशेषता भी बताई. उनका कहना था कि मोटेश्वर महादेव के शिवलिंग के आकार की कोई गणना नहीं है. लोग इन्हें अपनी ज्येठ (बाहों) में भरते हैं, जिससे उनकी मनोकामना पूर्ण हो सके, लेकिन मोटेश्वर महादेव की अनुमति के अनुसार शिवलिंग उन्हीं ज्येठ (बाहों) में पूर समाता है, जिनसे भगवान शिव प्रसन्न होते हैं. वहीं, जिसकी पूजा भगवान को मंजूर नहीं होती मोटेश्वर शिवलिंग उनकी बाहों में नहीं समाता है.