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आगरा: पेंटिंग के माध्यम से समझाया पृथ्वी दिवस का महत्व - 22 अप्रैल को मनाया जाता है विश्व पृथ्वी दिवस

यूपी के आगरा में दिव्य योगा संस्थान के डायरेक्टर ने पेंटिंग के माध्यम से पृथ्वी दिवस का महत्व समझाया. उन्होंने कहा ग्लोबल वार्मिंग के रूप में जो परिदृश्य आज हमारे सामने है, ऐसा लगातार बना रहा तो एक दिन ऐसा आएगा, जब पृथ्वी से जीव-जंतु और वनस्पति का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा.

पेंटिंग के माध्यम से समझाया पृथ्वी दिवस का महत्व
पेंटिंग के माध्यम से समझाया पृथ्वी दिवस का महत्व

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Published : Apr 22, 2020, 9:58 AM IST

आगरा: एत्मादपुर के खंदौली रोड स्थित योगी राज क्लासेज एवं दिव्य योगा संस्थान के डायरेक्टर योगीराज धाकरे ने घर पर रहकर 'विश्व पृथ्वी दिवस' को पेंटिंग बनाकर उसके महत्व को समझाया.

विश्व पृथ्वी दिवस पर बनाई पेंटिंग.


विश्वभर में 22 अप्रैल को पर्यावरण चेतना के लिए पृथ्वी दिवस मनाया जाएगा, लेकिन अब ऐसा लगता है कि यह महज औपचारिकता से ज्यादा कुछ नहीं है. ग्लोबल वार्मिंग के रूप में जो परिदृश्य आज हमारे सामने है, ऐसा लगातार बना रहा तो एक दिन ऐसा आएगा जब पृथ्वी से जीव-जंतु और वनस्पति का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा. लोगों को पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनाने के उद्देश्य से पूरे विश्व में 22 अप्रैल 1970 को पहली बार पृथ्वी दिवस का आयोजन किया गया था.

बढ़ती जनसंख्या का दबाव
वर्तमान समय में पृथ्वी के सामने सबसे बड़ी चुनौती बढ़ती जनसंख्या है. पृथ्वी की कुल आबादी आज साढ़े सात अरब से अधिक हो चुकी है. यह प्रकृति का सिद्धांत है कि आबादी का विस्फोट उपलब्ध संसाधनों पर नकारात्मक दबाव डालता है, जिससे पृथ्वी की नैसर्गिकता प्रभावित होती है. बढ़ती जनसंख्या की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पृथ्वी के दोहन की सीमा आज चरम पर पहुंच चुकी है. जलवायु परिवर्तन के खतरे को कम से कम करना दूसरी सबसे बड़ी चुनौती है.

पेंटिंग बनाते योगीराज धाकरे.
मनुष्य ही जिम्मेदार हैपृथ्वी हमारे अस्तित्व का आधार और जीवन का केंद्र है. यह आज जिस स्थिति में पहुंच गई है, उसे वहां पहुंचाने के लिए मनुष्य ही जिम्मेदार हैं. आज सबसे बड़ी समस्या मानव का बढ़ता उपभोग है, लेकिन पृथ्वी केवल उपभोग की वस्तु नहीं है. वह मानव जीवन के साथ-साथ असंख्य वनस्पतियों, जीव-जंतुओं की आश्रयस्थली भी है.इस वर्ष की थीम 'प्रजातियों को संरक्षित करें'हमने डायनासोर, बड़े दांत वाले हाथी, गिद्ध जैसी प्रजातियों के बारे में किताबों में ही पढ़ा है, उन्हें कभी देखा नहीं. इस बात को लेकर विशेषज्ञ चिंतित हैं कि प्रकृति में हो रहे बदलाव के चलते मनुष्य की आने वाली पीढ़ियां तेजी से विलुप्ति के कगार पर खड़ी कई प्रजातियों के बारे में किताबों में पढ़कर न जानें. इसको ध्यान में रखते हुए इस बार विश्व पृथ्वी दिवस की थीम 'प्रजातियों को संरक्षित करें' रखी गई है.कीट-पतंगे संकट मेंहाल ही में आई एक रिपोर्ट के अनुसार, मधुमक्खियां, चींटियां, गुबरैले (बीटल), मकड़ी, जुगनू जैसे कीट जो हमारे जीवन का अभिन्न अंग हैं, अन्य स्तनधारी जीवों, पक्षियों और सरीसृपों की तुलना में आठ गुना तेजी से विलुप्त हो रहे हैं. कीट-पतंगों का कम होना पारिस्थितिकी तंत्र के लिए घातक है, क्योंकि पारिस्थितिकी तंत्र और खाद्य श्रृंखला के संतुलन के लिए कीट-पतंगों का होना बहुत ज़रूरी है. जलवायु परिवर्तन, वनों की कटाई, बढ़ते कंक्रीट के जंगल, शहरीकरण, अवैध शिकार और खेती-बाड़ी में कीटनाशक दवाओं का इस्तेमाल, समुद्र में व्याप्त प्लास्टिक प्रदूषण इन प्रजातियों के लुप्त होने के लिए जिम्मेदार है.

26 हजार 500 से अधिक प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा
अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) ने विलुप्त होने के कगार पर खड़े जीव-जंतुओं की जो सूची जारी की है, उसके अनुसार, 26 हजार 500 से अधिक प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा है, जिनमें 40% उभयचर, 34% शंकुधारी, 33% कोरल रीफ, 25% स्तनधारी और 14% पक्षी हैं.

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