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अकबर के नाम पर बना उत्तर भारत का पहला चर्च, बड़ा रोचक है इतिहास - अकबरी चर्च का इतिहास

उत्तर भारत का सबसे पहला चर्च आगरा में मुगल बादशाह अकबर के द्वारा बनवाया गया था. पादरी जेसुइट जेविरयर की देखरेख में इस चर्च का निर्माण हुआ था. आप भी जानें इस अनोखे चर्च का दिलचस्प इतिहास...

History of Akbari Church
History of Akbari Church

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Published : Dec 24, 2022, 4:08 PM IST

उत्तर भारत का पहला अकबरी चर्च का इतिहास

आगरा: मुगलिया सल्तनत की राजधानी रहे आगरा में ताजमहल से भी पुराना चर्च है. जिसे उत्तर भारत का पहला चर्च कहा जाता है. जो कि वजीरपुरा स्थित अकबरी चर्च है. जिसमें आज से 422 साल पहले 'जिंगल बेल' की आवाज गूंजीं थी. यह चर्च मुगल बादशाह अकबर ने सन् 1599 में बनवाया था. इसलिए, इसका नाम अकबरी चर्च है. मुगल बादशाह अकबर के बुलावे पर लाहौर से आगरा आए पादरी जेसुइट जेविरयर की देखरेख में सन् 1600 में चर्च का निर्माण कार्य पूरा हुआ था. जितना यह चर्च पुराना है. उतना ही दिलचस्प इसका इतिहास है. खास बात यह है कि, मुगलिया सल्तनत के दौरान ही कई बार चर्च तोड़ा गया. फिर, मुगल बदशाहों ने समय-समय पर इसका जीर्णोद्धार भी किया.

मुगल काल में ईसाइयों का पहला चर्च
ईसाई समाज की पुस्तकों के मुताबिक, सन् 1562 में ईसाई समाज के लोगों का आगरा में आवागमन शुरू हो गया था. मुगल बादशाह अकबर की बेगम मरियम थीं. इसलिए, अकबर ने बेगम मरियम की इबादत के लिए अकबरी चर्च का निर्माण कराया था. ताजनगरी में अभी 12 चर्च हैं. जिनमें अकबरी चर्च, सेंट मैरी चर्च, माता निष्कलंक गिरजाघर के अलावा सेंट पॉल चर्च, सेंट पैट्रिक्स चर्च कैंट, सेंट जूड चर्च देवरी रोड, सेंट जॉर्जेस चर्च, सेंट जोंस चर्च हॉस्पिटल रोड, सेंट जोंस चर्च सिकंदरा, हेवलॉक चर्च कलक्ट्रेट, बैप्टिस्ट चर्च साईं की तकिया और एत्मादपुर में मसीह विद्यापीठ अन्य गिरजाघर हैं.

इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' ने अपनी पुस्तक ' तवारीख-ए-आगरा' में लिखा है कि, मुगल बादशाह अकबर ने आगरा से ही 'दीन-ए-इलाही' धर्म की नींव रखी थी. जिसके अनुयायी ज्यादा नहीं रहे. आगरा में अकबर ने अपनी बेगम मरियम की इबादत के लिए सन् 1599 में वजीरपुरा में अकबरी चर्च बनवाया था. इसके लिए मुगल बादशाह अकबर के आग्रह पर लाहौर से फादर जुसुइट आगरा आए और उनकी देखरेख में वजीरपुरा में सन् 1599-1600 तक यह चर्च बनकर तैयार हुआ था.

बार-बार हुआ चर्च का जीर्णोद्धार
बता दें कि, यह चर्च कई बार ध्वस्त भी हुआ था. मगर, बाद में फिर इसका जीर्णोद्धार किया गया. फादर मिरिंडा बताते हैं कि, मुगल बादशाह अकबर के बेटे जहांगीर की ईसाई धर्म के प्रति आस्था थी. अकबरी चर्च को जहांगीर ने विशाल स्वरूप प्रदान किया. मुगल बादशाह जहांगीर ने चर्च के लिए अतिरिक्त धन और जमीन दी थी. लेकिन, मुगल और पुर्तगालियों से मतभेद होने पर सन् 1615 में अकबरी चर्च को तुड़वा दिया. इसके एक साल बाद चर्च में आग भी लग गई. फिर तीसरी बार जहांगीर ने पादरी जस्ट वेट से पुन: चर्च का जीर्णोद्धार कराया था. एक बार फिर सन् 1636 में शहंशाह शाहजहां ने चर्च का जीर्णोद्धार कराया. सन् 1748 में पार्सियन आक्रमणकारी अहमद शाह अब्दाली ने अकबरी चर्च को नुकसान पहुंचाया. फिर बाद में इसका जीर्णोद्धार किया गया और माता मरियम के नाम समर्पित किया गया. सबसे पुराना और उत्तर भारत का पहला चर्च होने की वजह से इसका एतिहासिक महत्व है. इसलिए, यह चर्च ईसाई समाज के लिए बेहद खास है.

422 साल पहले गूंजीं थी 'जिंगल बेल' की आवाज
फादर मिरिंडा बताते हैं कि, अकबरी चर्च के बगल में गगनचुंबी घंटी लगी हुई है. जो एक समय शहर भर में गूंजती थी. दूर-दूर तक इस घंटी की आवाज सुनाई देती थी. लेकिन, एक बादशाह ने इस घंटी को यह कहकर बंद करवाया था. कि, घंटी की वजह से बीमार और बुजुर्गों को तकलीफ होती है. तभी से ये घंटी खामोश है. अकबरी चर्च में क्रिसमस के सप्ताह भर पहले से ही यहां तैयारियां शुरू हो जाती है. पूरा चर्च को सजाया जाता है.

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