आगरा: मुगलिया सल्तनत की राजधानी रहे आगरा में ताजमहल से भी पुराना चर्च है. जिसे उत्तर भारत का पहला चर्च कहा जाता है. जो कि वजीरपुरा स्थित अकबरी चर्च है. जिसमें आज से 422 साल पहले 'जिंगल बेल' की आवाज गूंजीं थी. यह चर्च मुगल बादशाह अकबर ने सन् 1599 में बनवाया था. इसलिए, इसका नाम अकबरी चर्च है. मुगल बादशाह अकबर के बुलावे पर लाहौर से आगरा आए पादरी जेसुइट जेविरयर की देखरेख में सन् 1600 में चर्च का निर्माण कार्य पूरा हुआ था. जितना यह चर्च पुराना है. उतना ही दिलचस्प इसका इतिहास है. खास बात यह है कि, मुगलिया सल्तनत के दौरान ही कई बार चर्च तोड़ा गया. फिर, मुगल बदशाहों ने समय-समय पर इसका जीर्णोद्धार भी किया.
मुगल काल में ईसाइयों का पहला चर्च
ईसाई समाज की पुस्तकों के मुताबिक, सन् 1562 में ईसाई समाज के लोगों का आगरा में आवागमन शुरू हो गया था. मुगल बादशाह अकबर की बेगम मरियम थीं. इसलिए, अकबर ने बेगम मरियम की इबादत के लिए अकबरी चर्च का निर्माण कराया था. ताजनगरी में अभी 12 चर्च हैं. जिनमें अकबरी चर्च, सेंट मैरी चर्च, माता निष्कलंक गिरजाघर के अलावा सेंट पॉल चर्च, सेंट पैट्रिक्स चर्च कैंट, सेंट जूड चर्च देवरी रोड, सेंट जॉर्जेस चर्च, सेंट जोंस चर्च हॉस्पिटल रोड, सेंट जोंस चर्च सिकंदरा, हेवलॉक चर्च कलक्ट्रेट, बैप्टिस्ट चर्च साईं की तकिया और एत्मादपुर में मसीह विद्यापीठ अन्य गिरजाघर हैं.
इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' ने अपनी पुस्तक ' तवारीख-ए-आगरा' में लिखा है कि, मुगल बादशाह अकबर ने आगरा से ही 'दीन-ए-इलाही' धर्म की नींव रखी थी. जिसके अनुयायी ज्यादा नहीं रहे. आगरा में अकबर ने अपनी बेगम मरियम की इबादत के लिए सन् 1599 में वजीरपुरा में अकबरी चर्च बनवाया था. इसके लिए मुगल बादशाह अकबर के आग्रह पर लाहौर से फादर जुसुइट आगरा आए और उनकी देखरेख में वजीरपुरा में सन् 1599-1600 तक यह चर्च बनकर तैयार हुआ था.