आगरा: घर से निकलते ही ठीक दहलीज पर अगर आपको किसी अपने की कब्र दिख जाया करे, तो आपको कैसा महसूस होगा. हर पल, हर बार आप उसे यादकर टूटते जाएंगे. घर के बाहर किसी अपने की कब्र, घर के आंगन में किसी अपने की कब्र, अगर हर रोज ऐसा नजारा देखने को मिले तो शायद ही कोई उस घर में रह पाएगा. दरअसल आगरा का एक ऐसा गांव कुछ ऐसी ही हकीकत बयां कर रहा है.
यहां घर में ही खोदते हैं अपनों की कब्र, क्योंकि दो गज जमीन भी मयस्सर नहीं सुपुर्द-ए-खाक के लिए
सरकारी फाइलों में इंसान की मौत के बाद दो गज जमीन के लिए जगहें तो मुकर्रर हैं, लेकिन हकीकत इससे कहीं अलग है. जब खाना खा रहा बच्चा अपनी मां की कब्र आंगन में देखता है तो हलक से खाना नहीं उतरता. जब भाई अपने भाई की कब्र देखता है तो दिल चीख पड़ता है. आज भी आगरा के छह पोखर गांव में मुस्लिम समुदाय को महज दो गज जमीन के लिए तरसना पड़ रहा है.
आगरा का छह पोखर गांव एक ऐसी जगह है जहां के मुस्लिम समुदाय के घरों के सामने और आंगन में उनके अपनों की कब्र है. अगर यहां के लोगों के घर में किसी का इंतकाल होता है, तो उसके शव को किसी कब्रिस्तान में ले जाने के बजाय अपने घर के आंगन में या फिर घर के सामने ही मैदान में दफना दिया जाता है.
दरअसल ऐसा करना इनकी मजबूरी है. यहां के लोगों का कहना है कि उन्हें शवों को दफनाने के लिए प्रशासन की तरफ से कब्रिस्तान की जमीन नहीं मुहैया कराई गई है. इसी वजह से उन्हें अपनों के शवों को इस तरह से दफन करना पड़ता है. ये लोग ईद, रमजान की नमाज की दुआओं में अपनों के लिए कब्रिस्तान की जमीन मांगते हैं. वहीं इस मामले पर लेखा एवं वित्त विभाग के अधिकारी कहते हैं कि उन्हें कब्रिस्तान की जमीन दी जा चुकी है.