आगरा:हमारी आंखों की रोशनी का गुप्त चोर ग्लूकोमा है जो बुजुर्गों की आंखों की नसों को खराब कर रहा है. नेत्र रोग विशेषज्ञों की मानें तो ग्लूकोमा यानी काला मोतिया अब बुजुर्गों के अलावा युवाओं की दुनिया में अंधेरा कर रहा है इसलिए, नेत्र रोग विशेषज्ञ ग्लूकोमा वीक में इस बीमारी के बारे में लोगों को जागरुक कर रहे हैं. ईटीवी भारत की टीम ने आगरा के एसएन मेडिकल कॉलेज के नेत्र रोग विभाग के विशेषज्ञों से खास बातचीत की. विशेषज्ञों ने बताया कि, ओपीडी में ग्लूकोमा से पीडित ऐसे बुजुर्ग आ रहे हैं. जिनकी आंखों की रोशनी अचानक कम हो गई या आंखों की रोशनी एकदम चली गई है. यह बीमारी आखों पर अंदर से तेज दबाव पड़ने से होती है. इसमें आंखो की नसें खराब (सूख) जाती हैं. फिर, इन नसों को ठीक कर पाना असंभव है. एसएनएमसी की ओपीडी में आने वाले 100 मरीज में पांच मरीज ग्लूकोमा हर दिन पहुंच रहे हैं. जिनकी उम्र 40 से 65 साल है.
क्या है ग्लूकोमा
एसएनएमसी के नेत्र रोग विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. हिमांशु यादव ने बताया कि आंख दबाव से ग्लूकोमा या काला मोतिया होता है. इसमें आंखों की ऑप्टिक नर्व खराब हो जाती हैं. इसकी समय पर जांच या इलाज होने पर आंख की दृष्टि दोष या दृष्टि हानि को बचाया जा सकता है. उन्होंने बताया कि, ग्लूकोमा के तीन प्रकार होते हैं. जिनके नाम ओपन-एंगल ग्लूकोमा, एंगल-क्लोजर ग्लूकोमा और नॉर्मल-टेंशन ग्लूकोमा हैं.
एसएनएमसी के नेत्र रोग विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. हिमांशु यादव ने बताया कि वैसे तो ग्लूकोमा आमतौर पर 60 साल से अधिक उम्र के लोगों की आंख की बीमारी है लेकिन, अब कम उम्र के लोग भी इस बीमारी की चपेट में आते हैं. इसकी वजह मधुमेह व उच्च रक्तचाप भी सामने आ रही है. ग्लूकोमा से पीड़ित मरीज जो एसएनएमसी की नेत्र रोग विभाग की ओपीडी में देरी से आते हैं. इस वजह से उनकी आंखों की रोशनी वापस नहीं आ पाती है. इस बारे में नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रीति गुप्ता बताती हैं कि, ग्लूकोमा में आंख की नसें सूख जाती हैं. जो नस एक बार सूख गई. उसे दोबारा से ठीक नहीं किया जा सकता है. इसका उपचार यही है कि, दूसरी नसों को खराब होने से बचाया जा सके.