आगरा:देशभर के लोनधारकों को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) ने लॉकडाउन में राहत देने की घोषणा की थी. आरबीआई की घोषणा पर आगरा के गजेंद्र शर्मा ने सवाल उठाए हैं. उन्होंने 29 पेज की एक जनहित याचिका 26 अप्रैल 2020 को सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की. इस याचिका पर 17 जून को सुनवाई होनी है. सुप्रीम कोर्ट यदि फैसला गजेंद्र शर्मा के पक्ष में देता है, तो इसका फायदा देश के 20 करोड़ लोनधारकों को होगा. ईटीवी भारत ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर करने वाले गजेंद्र शर्मा से खास बातचीत की.
यह थी आरबीआई की घोषणा
27 मार्च 2020 को आरबीआई ने लॉकडाउन घोषित होने के बाद लोनधारकों को राहत देने के लिए 3 महीने तक किश्त जमा करने से मुक्त रखने का निर्णय लिया था. पहले यह निर्णय (मोरेटोरियम) 1 मार्च 2020 से 31 मई 2020 तक की समयावधि के लिए था, जिसे बाद में तीन महीने के लिए बढ़ाकर 31 अगस्त तक कर दिया गया था.
देश में 20 करोड़ और आगरा में पांच लाख लाभान्वित
देश के 20 करोड़ लोनधारकों को आरबीआई की घोषणा से राहत मिलनी थी. इसमें आगरा के 5 लाख लोनधारक शामिल हैं. आरबीआई की घोषणा और उसकी हकीकत को लेकर आगरा के गजेंद्र शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की. जिस पर सुनवाई चल रही है. यदि सुप्रीम कोर्ट का फैसला उपभोक्ताओं के पक्ष में आता है तो इसका फायदा देश के 20 करोड़ लोनधारकों को होगा.
ब्याज पर ब्याज, राहत नहीं आफत
याचिकाकर्ता गजेंद्र शर्मा ने बताया कि आरबीआई की घोषणा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जाने की वजह लोन की रकम के ब्याज पर ब्याज देना था. जिस तरह से आरबीआई ने पहले 3 महीने और फिर 3 महीने बढ़ा करके अगस्त तक लोन की किस्त देने से राहत दी थी, लेकिन बैंकों की ओर से इस किस्त की रकम को मूलधन में जोड़ दिया और इस तरह लोनधारक को ब्याज पर ब्याज देना होगा. आरबीआई की राहत की घोषणा देशभर के लोनधारकों के लिए आफत साबित हुई है.