आगरा:जिले में एक इंजीनियर ने कोरोना महामारी में आपदा को अवसर बना लिया. खुद को आत्मनिर्भर बनने के लिए इंजीनियर ने नया कदम उठाया है, जिससे दूसरों के लिए रोजगार का भी सृजन हुआ है. मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब कर रहे इंजीनियर प्रदीप चौधरी को लॉकडाउन में वर्क फ्रॉम होम मिल गया. घर पर रहकर उन्होंने हाईटेक और मुनाफे की खेती को लेकर आनलाइन रिसर्च किया. इसके बाद नगला परमाल (अकोला) में उन्होंने बहन के ससुर किसान नेता दिनेश चाहर के बंद मशरूम फार्म को फिर से चालू किया. यहां पर वह ऑर्गेनिक तरीके से मशरूम उगाकर जयपुर और उदयपुर भेज रहे हैं. खुद के लिए नया कमाई का जरिया बनाकर इंजीनियर ने दूसरे किसानों को प्रोत्साहन देने के साथ ही युवाओं के लिए रोजगार का सृजन किया है.
ऑर्गेनिक तरीके से मशरूम उगा रहे इंजीनियर मुनाफा देखकर दूसरे किसान उगाएं मशरूमकिसान दिनेश चाहर ने बताया कि, "पांच पहले मशरूम की खेती शुरू की थी. बीच में इसे बंद कर दिया था. अब दोबारा से मशरूम की खेती को दो वजह से शुरू की है. पहला वजह यह कि, अपना मुनाफा होगा. दूसरी वजह इस मशरूम की खेती को देख कर दूसरे लोग भी आगे आएंगे. क्योंकि दूसरी फसल का रेट घटता और बढ़ता रहता है. कोरोना महामारी के चलते जब लॉकडाउन लगा तो तमाम चीजें बहुत सस्ती हो गई. इससे किसानों की हालत खराब हो गई. पहले रिसर्च की, फिर खेती शूरू कीइंजीनियर प्रदीप का कहना है कि, "कोरोना के बाद से हर कोई इम्युनिटी बढ़ाने पर काम कर रहा है. कंपनियां भी इम्युनिटी बढ़ाने के नए-नए उत्पाद बना रही हैं. ऐसे में हमने सोचा कि, क्यों ना हम फिर से मशरूम की खेती करें? क्योंकि, मशरूम में काफी प्रोटीन होता है. इम्युनिटी बढ़ाने के तमाम प्रोटीन सप्लीमेंट में मशरूम का उपयोगकिया जाता है. मैंने रिसर्च किया, किस-किस मशरूम में ज्यादा प्रोटीन होता है? कौन से मशरूम की प्रजाति उगाने से ज्यादा मुनाफा होगा? इसके बाद हमने मशरूम की खेती शुरू की है." दिल्ली, जयपुर और उदयपुर भेज रहे मशरूमइंजीनियर प्रदीप का कहना है कि, "रिसर्च में यह जानकारी हुई कि, बटन और मिल्की मशरूम से ज्यादा ओएस्टर मशरूम में प्रोटीन होता है. इसलिए ऑस्टर मशरूम की खेती शुरू की. क्योंकि, ऑस्टर मशरूम हम आगरा से दिल्ली, जयपुर और उदयपुर भेज रहे हैं. इसका अच्छा रेट मिल रहा है. आगरा में अभी होटल नहीं खुले हैं. ऐसे में राजस्थान में मशरूम भेजने शुरू किया है, जिससे हमें मुनाफा भी मिल रहा है."80 रुपए के बैग से 9 किलोग्राम मिलता हैमशरूम उगाने वाले इंजीनियर प्रदीप ने बताया कि, "हमने 1000 बैग लगाए हैं, जिसे धीरे-धीरे और बढ़ाएंगे. एक बैग में करीब 75 से 80 रुपए का खर्च आता है. वहीं, एक बैग से हमें 9 किलोग्राम मशरूम मिलता है. जो मशरूम जयपुर और उदयपुर नहीं भेज पाते हैं. उसे सुखाकर फार्मा कंपनी को बेचते हैं, जिससे उसका प्रोटीन सप्लीमेंट बन सके. ताजा मशरूम जहां 150 रुपए किग्रा के हिसाब से बिका रहा है, वहीं सूखा मशरूम 500 रुपए किलोग्राम बिक रहा है. सूखे मशरूम को सूप और वेज सूप में भी उपयोग किया जाता है."आगरा में इंजीनियर प्रदीप ने खेती को तकनीक से जोड़कर देखा तो नए रोजगार का सृजन हुआ है. मशरूम के साथ ही प्रदीप अभी एक एकड़ से ज्यादा खेत में ड्रैगन फ्रूट के पौधे लगवा रहा है, जिससे मुनाफा तो होगा ही, दूसरे लोगों को भी रोजगार मिलेगा.