आगरा:महाकवि सूरदास की तपोस्थली रुनकता स्थित सूरकुटी के महाकवि सूरदास नेत्रहीन शिक्षण एवं प्रशिक्षण संस्थान बेनूर आंखों को राह दिखाकर उनके सभी सपनों को पूरा कर रहा है. यहां पर दिव्यांग बच्चे शिक्षा पाकर आत्मनिर्भर बन रहे हैं. सन् 1976 में विद्यालय की स्थापना हुई थी. यहां पर ब्रेल लिपि की मदद से वर्तमान में 67 छात्र शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं. विद्यालय में आठ शिक्षक हैं. दिव्यांग यहां पर पढ़ाई के साथ ही आत्मनिर्भर बनने का प्रशिक्षण भी हासिल करते हैं. इस विद्यालय की खास बात यह है कि यहां पर पढ़ने वाले छात्र और पढ़ाने वाले शिक्षकों सहित प्रधानाचार्य सभी आंखों से दिव्यांग हैं. यहां पर इंटरमीडिएट तक पढ़ाई करने के बाद दिव्यांग सूरदास ब्रजरानी महाविद्यालय और रोशन लाल महाविद्यालय में उच्च शिक्षा हासिल करते हैं. जहां पर वे सामान्य स्टूडेंटस के साथ पढ़ते हैं.
विद्यालय परिसर के चप्पे-चप्पे से वाकिफ
विद्यालय परिसर के चप्पे चप्पे से नेत्रों से दिव्यांग छात्र वाकिफ हैं. दिव्यांग हाॅस्टल, कक्षा, मेस, शौचालय, खेल के मैदान समेत अन्य स्थानों से भलीभांत वाकिफ हो गए हैं. नए दिव्यांग छात्र को सीनियर छात्र और शिक्षक एक सप्ताह तक हाथ पकड़कर विद्यालय परिसर का कोना कोना घुमाते हैं. जिससे कि बाद में वह खुद ही हर जगह आ-जा सकें.
संस्थान की शान बने 11 छात्र
विद्यालय के प्रधानाचार्य महेश कुमार का कहना है कि, हर दिव्यांग आत्मनिर्भर बन रहा है. पढाई के साथ कुर्सी बुनना, मोमबत्ती बनाना, कम्प्युटर चलाना भी सिखाया जा रहा है. जिससे यह भी आम बच्चों की तरह आत्मनिर्भर बन सकें. संस्थान के 11 छात्र आत्मनिर्भर बनकर दूसरों के लिए मिसाल बने हैं. इनमें श्रवण कुमार, नाथूराम, गोविंद सिंह, श्याम सुंदर यादव, गर्वनर सिंह, हरकेश सिंह, शिव शंकर, रामशरण, अमरीश पुरी, श्रीचंद और नरेश हैं. जो स्कूल, विश्वविद्यालय, बैंक और रेलवे में नौकरी कर रहे हैं.
खेलते हैं क्रिकेट
ईटीवी भारत की टीम जब विद्यालय पहुंची. तब वहां पर स्कूली के दिव्यांग बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे. एक छोर पर बल्लेबाज तो दूसरे छोर पर गेंदबाज था. जैसे ही गेंदबाज के हाथ से गेंद छूटी, वैसे ही क्षेत्ररक्षक और बल्लेबाज सतर्क हो गए. गेंद की आवाज पर बल्लेबाज ने शाॅटस जडा तो गेंद की आवाज सुनकर क्षेत्ररक्षक भी उसे पकड़ने के लिए दौड़ पड़े.