आगरा :देश और दुनिया में डकैत और दस्युओं की पनाहगाह के लिए मशहूर रही चंबल नदी अब संकटग्रस्त जलीय (सरीसृप) जीवों के लिए जीवनदायनी बन गई है. स्वच्छ नदी चबंल में मगरमच्छ, घड़ियाल और डॉल्फिन का कुनबा तेजी से बढ़ रहा है. बीते आठ साल में चंबल सेंचुरी में मगरमच्छ की संख्या बढ़कर दोगुनी हो गई है. इसके अलावा घड़ियाल और डॉल्फिन की संख्या में भी इजाफा हो रहा है.
1979 में चंबल को सेंचुरी घोषित किया गया :चंबल नदी मप्र, राजस्थान और यूपी में बहती है. सन 1979 में चंबल को सेंचुरी घोषित किया गया था. चंबल नदी को घड़ियाल और मगरमच्छ के संरक्षण के लिए चुना गया. सन 1981 में घड़ियाल प्रोजेक्ट की शुरुआत हुई. चंबल में मगरमच्छ की नेस्टिंग का सीजन अप्रैल और हैचिंग पीरियड जून है. चंबल सेंचुरी प्रोजेक्ट की डीएफओ आरुषि मिश्रा ने बताया कि, चंबल नदी में मगरमच्छ और घड़ियाल, बटागुर कछुआ और डाॅल्फिन का कुनबा तेजी से बढ़ रहा है. घड़ियाल की संख्या अभी 1887 है. मगरमच्छ की संख्या 878 और डाॅल्फिन की संख्या 151 है. हर साल चंबल में संकटग्रस्त जलीय जीवों की संख्या आठ से दस की संख्या तेजी से बढ़ रही है. इसके साथ ही चंबल में तमाम वन्य जीव और वन्य पक्षी भी खूब कलरव कर रहे हैं. चंबल की वादियों में इंडियन स्कीमर समेत तमाम देशी और विदेशी पक्षियों की चहचहाहट भी खूब गूंजती है.
मानव-मगरमच्छ के संघर्ष की घटनाएं हुईं कम : चंबल सेंचुरी प्रोजेक्ट की डीएफओ आरुषि मिश्रा ने बताया कि, चंबल नदी में जल्द ही मगरमच्छ की हैचिंग शुरू होगी. अप्रैल माह में नदी के बालू में मादा मगरमच्छों ने अंडे दिए. नेस्टिंग की जगह की निगरानी की जा रही है. मगरमच्छ अंडे खराब होने के डर से लोगों पर हमला कर देते हैं. इसलिए, चंबल नंदी के आसपास के गांवों के ग्रामीणों को जागरूक करने का अभियान भी चल रहा है. इससे लोग जागरूक भी हुए हैं. जन सहयोग भी बढ़ा है. इससे चंबल सेंचुरी में आगरा और इटावा जिले में मानव और मगरमच्छ के संघर्ष की घटनाएं भी कम हुईं है.