आगरा :प्रभु श्रीराम के प्रति अटूट आस्था थी. युवा खून नसों में उबाल मार रहा था. 10 दोस्तों ने 34 साल पहले कारसेवा करने के लिए अयोध्या जाने का फैसला किया. हालांकि तय समय पर सिटी स्टेशन पर सात दोस्त ही पहुंचे. वे गंगा-यमुना एक्सप्रेस (अवध एक्सप्रेस) से लखनऊ से आगे लखनपुर पहुंचे. इनमें से आगरा के कारसेवक देवेंद्र शर्मा और मोहन लाल खंडेलवाल भी थे. वे पैदल, बैलगाड़ी और वाहनों से सफर कर अयोध्या पहुंचे. दोनों कारसेवक बताते हैं कि 2 नवंबर 1990 को निहत्थे और राम संकीर्तन करते हुए आगे बढ़ रहे कारसेवकों पर लाठीचार्ज और गोलियां चलाई गईं. आंखों के सामने ही रामभक्त कोठरी बंधु लहूलुहान पड़े थे. वो पल बेहद बेरहम था.
ईटीवी भारत से आगरा के रामभक्त कारसेवक देवेंद्र शर्मा और मोहन लाल खंडेलवाल ने राम मंदिर आंदोलन के कई यादों को साझा किया. कहा कि हमारी आंखों ने प्रभु श्रीराम को टेंट में देखा. अब उनके भव्य मंदिर को भी बनते देखा. अब 22 जनवरी को प्रभु श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा देखेंगे. यह दिन इतिहास में दर्ज होगा. करोड़ों रामभक्त की कारसेवा से ये दिन आया है. लिहाजा इस दिन दीपावली मनाएंगे. जल्दी बच्चों को लेकर अयोध्या जाएंगे. तब हम कहां-कहां रुके थे? यह सब बच्चों को दिखाएंगे. उस समय सरकार ने कार सेवकों पर जुल्म ढाया था.
एक साथ अयोध्या पहुंचे थे सात दोस्त :भैरों बाजार स्थित भैरों मंदिर के पास के रहने वाले कारसेवक देवेंद्र शर्मा और संघ से जुड़े कारसेवक मोहन लाल खंडेलवाल ने बताया कि जिस दिन श्रीराम मंदिर बनाने की घोषणा हुई थी, उसी दिन हमने दीपावली मनाई थी. बात 34 साल पुरानी है. 21 अक्टूबर 1990 को भैरों मंदिर के पास हम 10 दोस्त बैठे थे. तभी तय हुआ कि अयोध्या चलते हैं. सभी ने हामी भर दी. तय हुआ कि 22 अक्टूबर को सिटी स्टेशन पर मिलेंगे. मगर, उस दिन सिटी स्टेशन पर देवेंद्र शर्मा, शैलेन्द्र बंसल, मोहन लाल खंडेलवाल, सुभाष शर्मा, पंकज कुमार उर्फ राजा, राकेश सिंह उर्फ लाला और अजीत कुमार गोयल पहुंचे. शैलेन्द्र बंसल ने सभी की टिकट ली. फिर, सभी सात साथी गंगा-यमुना एक्सप्रेस (अवध एक्सप्रेस) में सवार हो गए.
23 साल की उम्र में लिया बड़ा फैसला, घर से बिना बताए निकला :मूल निवासी भैरों बाजार और हाल कमलानगर निवासी मोहन लाल खंडेलवाल बताते हैं कि मेरा परिवार राष्ट्रीय सेवक संघ से जुड़ा था. दादा जी संघ से जुड़े थे. परिवार के अन्य लोगों ने संघ में सेवा की. तब मैं 23 साल का था. कार सेवा करने की दिली इच्छा थी. इसलिए, घर से बिना बताए एक बैग लेकर निकल गया. 23 अक्टूबर 1990 को लखनऊ से आगे जगदीशपुर पहुंचे. तब तक सभी साथी साथ थे. वहां से ट्रेन आगे कैंसिल कर दी गई थी. रास्ते में भी ट्रेन में चैकिंग हुई.
जयश्री राम था कोड वर्ड :मोहन लाल खंडेलवाल बताते हैं कि जगदीशपुर में संघ से जुड़े लोगों ने जयश्री राम कोड वर्ड से मुलाकात की. वहां से आदेश मिला कि आगे के सफर के लिए आगे बैलगाड़ी है. इसी से जाना है. इसके बाद संघ के जयश्री राम कोड वर्ड से सफर चल रहा था. रास्ते में किसी गांव में पड़ाव होता तो ग्राम प्रधान खाने और ठहरने की व्यवस्था करते थे. सैकड़ों किलोमीटर पैदल चले. फिर 28 अक्टूबर 1990 को अयोध्या की सीमा में पहुंचे. कर्फ्यू क्षेत्र में पहुंचने गुप्तार घाट के पास सभी सात दोस्तों की अन्य कारसेवकों के साथ गिरफ्तारी हुई. हमें पुलिस और प्रशासन ने खपरा डीह के कॉलेज में बनाई अस्थाई जेल में रखा.
जो सोच कर आए हो, वो करो, यहां बैठो नहीं :भैरों बाजार स्थित भैरों मंदिर के पास के रहने वाले रामभक्त कारसेवक देवेंद्र शर्मा बताते हैं कि आगरा से कारसेवा करने गए थे. जोश था. कॉलेज में बनी अस्थाई जेल में ही संघ की शाखा लगाई गई. इसमें मैंने कहा कि, जो सोच कर आए हो, वो करो यहां बैठो नहीं. हिंदुत्व की लड़ाई है. तब तय हुआ कि जिस काम के लिए आए हैं, वो करेंगे. जेल की दीवार फांदकर भागेंगे. इस पर मैं और मोहन लाल शर्मा वहां से भागने में 31 अक्टूबर-1990 को सफल हो गए. बाकी के पांच साथी वहीं रह गए. तब एक नवंबर-1990 की धर्म सभा में तय हुआ कि, 2 नबंवर-1990 को तीन रास्ते से रामभक्त कारसेवक बाबरी के लिए कूच करेंगे. हम दोनों दिगंबर अखाड़े के पास एक मंदिर में रुके. 2 नवंबर-1990 की सुबह धरना देने के लिए कूच किया.