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मौत वाली मॉक ड्रिल : जिन धाराओं में केस दर्ज, उसमें आसान नहीं है गिरफ्तारी - Shortage of oxygen

आगरा के पारस हॉस्पिटल में ऑक्सीजन सप्लाई रोके जाने का मामला सामने आया था. वायरल वीडियो में बताया गया था कि उन्होंने मौत वाली मॉक ड्रिल की थी, जिसकी वजह से 22 मरीजों की हालत बिगड़ गई थी और कुछ मरीजों की मौत हो गई थी. मामले में पुलिस ने जिन धाराओं में मुकमा दर्ज किया उनमें डॉक्टर को आसानी से गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है.

आगरा का पारस हॉस्पिटल
आगरा का पारस हॉस्पिटल

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Published : Jun 11, 2021, 7:33 PM IST

आगरा :देशभर में पारस हॉस्पिटल की 'मौत वाली मॉक ड्रिल' ने खलबली मचा दी है. सभी ने पारस हॉस्पिटल के संचालक डॉ. अरिंजय जैन का कबूलनामा भी वायरल वीडियो सुना है. जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग ने अपनी गर्दन बचाने को हॉस्पिटल संचालक डॉ. अरिंजय जैन के खिलाफ महामारी एक्ट में मुकदमा दर्ज कराकर हॉस्पिटल पर सरकारी सील तो लगवा दी, लेकिन पीड़ित परिवार हॉस्पिटल संचालक पर 'अपनों' की हत्या का आरोप लगा रहे हैं.

पीड़ित परिजन की शिकायत पर अभी एफआईआर नहीं हुई है. ईटीवी भारत ने न्यू आगरा थाना में संचालक डॉ. अरिंजय जैन के खिलाफ दर्ज मुकदमे की धाराओं को लेकर जिला शासकीय अधिवक्ता (अपराध) बसंत कुमार गुप्ता से बातचीत की. उन्होंने बताया कि जिन धाराओं में केस दर्ज किया गया. डॉ. अरिंजय जैन की गिरफ्तारी ही नहीं हो सकती है.

मॉक ड्रिल मामले में वकील ने कानूनी दांव पेच के बारे में जानकारी दी

वकील ने बताया क्या है कानूनी दांव पेच

जिला शासकीय अधिवक्ता (अपराध) बसंत कुमार गुप्ता का कहना है कि, न्यू आगरा थाना में पारस हॉस्पिटल के संचालक डॉ. अरिंजय जैन के खिलाफ जो एफआईआर हुई है, जिसमें महामारी अधिनियम की धारा 188 के उल्लंघन का आरोप है. आरोप है कि धारा 144 का उल्लंघन किया है. इसलिए धारा 188 लगाई गई है, जिसमें अधिकतम छह माह की सजा और 1000 रुपए जुर्माना है. इसमें जुर्माना और सजा दोनों ही हो सकते हैं. मगर, क्रिमिनल प्रोसीजर कोड (CrPC 1973) के पहले शेड्यूल के तहत इसमें जमानत मिल सकती है. इसके साथ ही आईपीसी की धारा 505 में तीन साल की सजा का प्रावधान है. यह गैर जमानती है. यह अफवाह और शांति भंग होने की आशंका पर लगाई जाती है.

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सेक्शन 52 और 54 में सजा

जिला शासकीय अधिवक्ता (अपराध) बसंत कुमार गुप्ता का कहना है कि यह सेक्शन डिजास्टर मैनेजमेंट का है. इसमें भी डिजास्टर मैनेजमेंट की दृष्टि से कोई अफवाह फैलाता है या स्टेटमेंट देता है, जिससे पब्लिक प्रशासन के खिलाफ हो जाती है. इस मामले में दो साल की सजा का प्रावधान है और यह जमानती है.

FIR

आपदा प्रबंधन अधिनियम का सेक्शन 3

जिला शासकीय अधिवक्ता (अपराध) बसंत कुमार गुप्ता का कहना है कि यह भी डिजास्टर मैनेजमेंट अधिनियम का सेक्शन है. इस कोरोना महामारी में कोई अफवाह फैलाने की आशंका पर इस धारा को एफआईआर में जोड़ा गया है. इसमें अधिकतम पांच साल की सजा है.

FIR

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क्यों आसान नहीं गिरफ्तारी

जिला शासकीय अधिवक्ता (अपराध) बसंत कुमार गुप्ता का कहना है कि पारस हॉस्पिटल के संचालक डॉ. अरिंजय जैन के खिलाफ न्यू आगरा थाना में दर्ज कराई गई एफआईआर की धाराओं के मुताबिक इसमें गिरफ्तारी नहीं हो सकती है. क्योंकि, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देश के मुताबिक, सात साल से कम सजा वाले अपराध में गिरफ्तारी नहीं हो सकती है. इसमें गिरफ्तारी सिर्फ केस डायरी के आधार पर बहुत जरूरी होने पर ही गिरफ्तारी हो सकती है.

हत्या का आरोप, एफआईआर नहीं

बहुचर्चित पारस हॉस्पिटल में भले ही जिला प्रशासन की ओर से 26 और 27 अप्रैल में कोरोना संक्रमितों की मौत का आंकड़ा जारी कर दिया, लेकिन अब यह फर्जी साबित हो रहा है. पीड़ित परिवार लगातार सामने आ रहे हैं. परिजनों का कहना है कि डॉ. अरिंजय जैन की 'मौत वाली मॉक ड्रिल' ने उसके अपनों को छीन लिया. न्यू आगरा थाना पर कृष्णा कालोनी निवासी अशोक चावला ने पिता और भाई की पत्नी, इटावा निवासी राजू यादव ने अपने जीजा और राजा की मंडी निवासी सौरभ अग्रवाल ने पत्नी की हत्या का आरोप लगाते हुए शिकायत दी है, लेकिन पुलिस ने अभी तक एक भी शिकायत पर एफआईआर दर्ज नहीं की हैं.

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आईपीसी की धारा 304 में मुकदमा हो

सामाजिक कार्यकर्ता नरेश पारस का कहना है कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को भेजी शिकायत में डॉ. अरिंजय जैन के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कराने की मांग की गई है. शिकायत के साथ डॉ. अरिंजय जैन का वायरल वीडियो भी भेजा हैं, जिसमें डॉ. अरिंजय जैन ने खुद कबूल किया है कि '22 लोग छट गए.' डॉक्टर 22 लोगों की मौत के जिम्मेदार हैं. उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 304 में मुकदमा दर्ज होना चाहिए.

पारस हॉस्पिटल को सील कर दिया गया है

वायरल वीडियो में क्या है?

वायरल वीडियो हॉस्पिटल के संचालक का है. वीडियो में वह कहते सुनाई दे रहे हैं कि ऑक्सीजन की किल्लत की वजह से एक एक्सपेरिमेंट करने का फैसला लिया गया. इसके तहत मॉकड्रिल के लिए 26 अप्रैल को 5 मिनट के लिए ऑक्सीजन की सप्लाई को रोक दिया गया. ऑक्सीजन की सप्लाई रुकते ही 22 मरीजों को तकलीफ होने लगी.

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