आगरा: जिले में एचआईवी पॉजिटिव दंपति के आंगन में 'सुरक्षित' किलकारी गूंज रही है. मां-बाप की लाइलाज बीमारी बच्चे को "कोख" में नहीं मिली. जिले में एचआईवी पॉजिटिव मां-बाप ने एक कदम नई जिंदगी की ओर बढ़ाया, जिससे उन्होंने एक सुरक्षित पीढ़ी की नींव रखी है. एचआईवी पॉजिटिव दंपति की सोच से उनकी जिंदगी में खुशियां आईं है.
एसएन मेडिकल कॉलेज और लेडी लायल हॉस्पिटल के आठ साल के आंकड़ों को देखें तो जागरूकता, सावधानी और सूझ-बूझ से एचआईवी पॉजिटिव 'कोख' से 200 से ज्यादा एचआईवी नेगेटिव बच्चे पैदा हुए हैं. इनमें आठ से दस मामले ऐसे भी हैं, जिसमें एचआईवी पॉजिटिव दंपति का बड़ा बच्चा पॉजिटिव है, लेकिन दूसरा छोटा बच्चा निगेटिव है.
काउंसलिंग करते हैं और एआरटी से जोड़ते हैं
यूपी स्टेट एड्स नियंत्रण सोसायटी की काउंसलर रितु भार्गव ने बताया कि जब कोई गर्भवती एचआईवी पॉजिटिव महिला हमारे पास आती है, तो हम उसकी काउंसलिंग करते हैं. वह महिलाओं को बताती हैं कि जब तक बच्चा पैदा नहीं होता है, तब तक आपको हमारे संपर्क में रहना पड़ेगा. जिस तरह से हम बताएंगे, उस तरह से आपको सावधानी बरतनी पड़ेगी.
रितु भार्गव ने बताया कि महिला को यह भी बताया जाता है कि उसे कब कौन सी जांच करानी है. साथ ही प्रसव भी प्रशिक्षित चिकित्सक से ही कराना है. यदि कोई दिक्कत आती है तो हमें बताएं. इसके साथ ही एआरटी से महिला की दवाई शुरू कर दी जाती है. बच्चा जब पैदा होता है तो उस बच्चे को दवा पिलाई जाती है. फिर 45 दिन, 6 महीने और 18 महीने बाद बच्चे की जांच की जाती है. बच्चा एचआईवी निगेटिव आता है तो कोई बात नहीं और यदि कोई बच्चा एचआईवी पॉजिटिव आता है तो फिर उसे एआरटी से जोड़ कर उसका उपचार शुरू कराया जाता है.
रोजगार के लिए प्रोजेक्ट कोऑर्डिनेटर प्रशिक्षण
पॉजिटिव वेलफेयर सोसायटी (आगरा) के प्रोजेक्ट कोऑर्डिनेटर रामाशंकर ने बताया कि एचआईवी पॉजिटिव महिलाएं अपने पैरों पर खड़ी हो इसके लिए हमारी संस्था की ओर से उन्हें सिलाई और कढ़ाई का काम सिखाया जा रहा है. जिले की 50 एचआईवी पॉजिटिव महिलाओं का बैच बनाया गया है, जिससे उन्हें प्रशिक्षण दिया जाएगा.