आगरा: ताजनगरी के लोहामंडी स्थित अग्रसेन सेवा सदन में सोमवार को विख्यात कथा वाचक श्री रामस्वरूपाचार्य जी महाराज पहुंचे थे. मीडिया से बाचतीत करते हुए उन्होंने सनातन धर्म पर टिप्पणी करने वालो को दैत्य बताया. वहीं स्वामी प्रसाद मौर्य के हिंदू धर्म नाम की चीज न होने वाले बयान पर उन्हें मानसिक विक्षिप्त व्यक्ति करार दिया.
सनातन विरोधियों का हर युग मे हुआ अंत
आगरा में शहरवासियों को श्री राम कथा का श्रवण करा रहे कामदगिरि पीठाधीश्वर श्रीमद जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामस्वरूप आचार्य महाराज ने सोमवार को पत्रकारों से बातचीत की. इस दौरान उनके सवालों के जवाब देते हुए उन्होंने बताया कि विडंबना है कि आज दूसरे धर्म के नहीं बल्कि हिंदू धर्म के लोग ही सनातन का विरोध और अपमान कर रहे हैं. जो भी विपक्षी सनातन धर्म का अपमान कर रहे हैं, वह दिमागी रूप से विक्षिप्त और दैत्य मानसकिता के लोग हैं. सत युग में हिरणयाकश्यप, त्रैता युग में रावण और द्वापर युग में कंस ने विरोध किया था. उन सभी का अंत हो गया. सब का अंत श्रीप्रभु के हाथों से ही हुआ है. आज भी दैत्य प्रवृत्ति के लोग कलयुग में सनातन विरोधी अवधारणा को आगे बढ़ा रहे हैं. राजनीतिक दल सनातन का विरोध सिर्फ इस लिए कर रहे हैं कि उनके दल को सत्ता प्राप्त हो सके. उन्होंने कहा कि अगर राजनीतिक दल-तुलसीदास की रामचरितमानस को अपने से जोड़ लें,तो उनका कल्याण संभव है.
स्वामी प्रसाद मौर्य पहले अपना नाम बदल लें
श्री रामस्वरूपाचार्य महाराज ने सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य के "हिंदू धर्म नाम की कोई चीज ही नहीं है' उनके दिए गए इस बयान पर श्री रामस्वरूपाचार्य महाराज ने उन्हें कड़ा जवाब दिया है. उन्होंने कहा कि स्वामी प्रसाद मौर्य पहले अपने नाम से प्रसाद और मौर्य हटाएं. इसके बाद फिर कहें कि हिंदू कोई धर्म नहीं है. अपने पूर्वजों की सूची निकालें और पता करें कि वह किस धर्म के हैं. सनातन को जाने और बिना समझे उसके बारे में बात करना मूर्खता है. सनातन का विरोध आज से ही नहीं हो रहा है. यह सतयुग से हो रहा है, सतयुग में हिरणयाकश्यप ने विरोध किया था, त्रैतायुग में रावण और द्वापरयुग में कंस ने विरोध किया था. रावण कहां राम को मानता था, लेकिन सब मिट गए. उसके बाद भी आज सनातन का परचम लहरा रहा है. उन्होंने कहा कि देव और दैत्य दो संस्कृतियां हैं. सनातन का विरोध करने वाले दैत्य और समर्थन करने वाले देव संस्कृति के हैं.
ढोल गंवार शूद्र पशु नारी दोहे का बताया अर्थ
कथा वाचक श्री रामस्वरूपाचार्य महाराज ने "ढोल गंवार शूद्र पशु नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी" दोहे का वास्तविक अर्थ समझाते हुए कहा कि विरोध करने वाले पहले यह बताएं कि किस डिक्शनरी में ताड़न का अर्थ पीटना लिखा हैं. मात्र श्रीरामचरित मानस को देखकर या पढ़कर उसके मर्म को नहीं समझा जा सकता. ताड़न का अर्थ लालन, पालन, शिक्षा और संरक्षण से सम्बंधित हैं. मानस को समझे बिना उस पर बोलने का किसी को अधिकार नहीं है. लगभग 3 हजार श्रीरामचरितमानस की प्रतियां कथा में बांटने का उद्देश्य बताते हुए महराज ने कहा कि रम राज्य नारे लगाने से नहीं, श्रीरामचरितमानस से के पढ़ने से आएगा. हृदय परिवर्तन करने वाला यह सबका कल्याण करने वाला ग्रंथ है. अन्य ग्रंथ पढ़ने के लिए कुछ नियम हैं. परन्तु श्रीरामचरितमानस को आप कहीं भी पढ़ सकते हैं.