आगरा:प्रदूषण से राजधानी दिल्ली (Delhi) की हालत खराब हो गई है. ताजनगरी में भी पाल्यूशन दमघोंट रहा है. यहां पर दिनभर स्मॉग की चादर तनी रहती है. ताजनगरी में बढ़ते प्रदूषण की वजह क्या है? किन-किन लोगों की धूल और धुएं से परेशानी बढ़ी है. इस पर ईटीवी भारत ने एसएनएमसी के कई विशेषज्ञों से बातचीत की. विशेषज्ञों का कहना है कि धूल, धुआं और बढ़ते प्रदूषण ने अस्थमा, सीओपीडी के मरीज, गर्भवती, गर्भस्थ शिशु के साथ छोटे बच्चों की मुश्किल बढ़ाई है.
यूं बनता स्मॉग और ओजोन
एसएनएमसी के टीबी एंड चेस्ट विभाग के विशेषज्ञ डॉ. गजेंद्र विक्रम सिंह ने बताया कि दीपावली पर वाहनों की आवाजाही के साथ ही कॉमर्शियल एक्टिविटी बढ़ी है. वाहनों के धुएं से निकलने वाली गैस कार्बन मोनो ऑक्साइड, कार्बन डाई ऑक्साइड, सल्फर के ऑक्साइड, नाइट्रोजन के ऑक्साइड, पर्टिकुलेट मेटर, हेवी मेटल्स यह प्राइमरी पॉल्यूटेंट होते हैं. इनसे वातावरण प्रदूषित होता है. सेकेंडरी पॉल्यूटेंड वे होते हैं, जो अमूमन तौर पर प्राइमरी पॉल्यूटेंट से केमिकल रिएक्शन से बनते हैं. जब प्राइमरी पॉल्यूटेंट की जहरीली गैस अल्ट्रावाइलेट रेज के साथ किसी वॉलेटाइल कंपाउंड की प्रजेंस में रिएक्शन करती है जिससे स्मॉग बनता है. इस फॉर्मेशन में ओजोन बनती है. अभी ओजोन का ग्राउंड लेवल बढ़ा हुआ है, जो मानव स्वास्थ्य के लिए बहुत खतरनाक होता है.
यूं दिक्कत पैदा करती है ओजोन
एसएनएमसी के टीबी एंड चेस्ट विभाग के विशेषज्ञ डॉ. गजेंद्र विक्रम सिंह ने बताया कि जो लोग स्वस्थ्य हैं, वे भी जब इस प्रदूषण के मौसम में घर से बाहर निकलते हैं तो उन्हें भी परेशानी हो रही है. इससे ऐसे व्यक्तियों की आंखों में जलन, आंख से पानी आना, आंख में खुजली होना, नाक में बंद होना, नाक में खुजली होना. नजला, जुकाम हो जाता है.
यह प्रदूषित हवा जब गले में पहुंचती है तो गले में खराश, सीने में जकड़न, खांसी होती है. सबसे ज्यादा परेशानी, उन मरीजों को होती है जो रेस्पेरटी डिजीज के मरीज होते हैं. सीओपीडी और अस्थमा के मरीजों की दिक्कत बढ़ जाती है. बच्चों की मुश्किल इसलिए बढ़ जाती हैं, क्योंकि ज्यादा दिन तक प्रदूषित हवा या ओजोन के संपर्क में बच्चे रहते हैं तो उनमें अस्थमा होने की संभावना बढ़ जाती है.
गर्भवती और गर्भस्थ्य शिशु की बढ़ी मुश्किल
एसएनएमसी की गायनी की हेड डॉ. सरोज सिंह ने बताया कि प्रदूषण से सभी को परेशानी होती है. रही बात गर्भवती महिलाओं की तो गर्भधारण करने की वजह से उनकी पहले ही इन्यूनिटी कमजोर होती है. वे हाई रिस्क पर रहती हैं. जब गर्भवती महिला को सांस लेने में दिक्कत होती है तो गर्भस्थ शिशु को भी खून मिलना कम हो जाता है.
ऐसे में गर्भवती महिलाएं घर से निकलने में डरें, मास्क लगाएं. प्रदूषण और कोरोना दोनों से बचाव होगा. ऐसी गर्भवती महिलाएं, जिन्हें पहले से ही सांस की समस्या रहती है, जो इनहेलर लेती हैं, वे घर में ही रहें. जरा भी परेशानी होने पर तत्काल चिकित्सक को दिखाएं. यदि लम्बे समय तक प्रदूषण की समस्या रहती है तो गर्भस्थ शिशु की ग्रोथ रुक जाती है. कम वजन के बच्चे पैदा होंगे.