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सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल सतरंगी चादर, जानें 1331 मीटर लंबाई का 'राज' - ताजमहल में चादरपोशी

सुलहकुल की नगरी आगरा में मुगल शहंशाह शाहजहां का 366 वां उर्स मनाया जा रहा है. उर्स के तीसरे दिन सतरंगी चादर पोशी के साथ ही दुनिया को सौहार्द और सद्भावना का संदेश दिया जाता है. इस बार शुक्रवार को सतरंगी चादर पोशी की जाएगी. खास बात यह है कि इस बार के चादर की लंबाई 1331 मीटर है.

शाहजहां के उर्स का चादर
शाहजहां के उर्स का चादर

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Published : Mar 12, 2021, 1:38 AM IST

आगराः मुगल शहंशाह शाहजहां का 366 वां उर्स मनाया जा रहा है. उर्स में इस बार 1331 मीटर (4366 फीट) की सतरंगी चादर चढ़ाई जाएगी. उर्स के तीसरे दिन सुलहकुल की नगरी में खुद्दाम-ए-रोजा कमेटी की ओर से चादर के चादर पोशी की जाएगी. सन् 1980 में इस सतरंगी चादर की शुरुआत ताहिरउद्दीन ताहिर ने की थी. 40 साल से लगातार इस चादर की लंबाई बढ़ रही है.

शाहजहां के उर्स का चादर हुआ 1331 मीटर लंबा.

गुरुवार को चादरपोशी की पूर्व संध्या पर सतरंगी चादर की विशेष तरीके से साफ-सफाई की गई. ईटीवी भारत से विशेष बातचीत में खुद्दाम-ए-रोजा कमेटी के प्रेसिडेंट ताहिरउद्दीन ताहिर ने बताया कि, सतरंगी चादर सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल है. इस चादर में हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी धर्म के लोगों की आस्था है. उनके दिए गए कपड़े से चादर को बनाया जाता है. शुक्रवार को सतरंगी चादर की चादरपोशी करके दुनिया को मोहब्बत की निशानी ताजमहल से प्रेम और सद्भावना का संदेश दिया जाएगा.

पहली चढ़ाई थी तिरंगा की चादर
खुद्दाम-ए-रोजा कमेटी के प्रेसिडेंट ताहिरउद्दीन ताहिर ने बताया कि, ताजमहल के मुख्य गुंबद के तहखाने में स्थित मुगल शहंशाह शाहजहां और मुमताज की मजार पर उर्स में चादर पोशी की पुरानी परंपरा है. मेरे पूर्वज लगातार चादर पोशी करते हैं. मेरे दादा के बाद पिता ने चादर चढ़ाई थी. जब मैं छात्र जीवन में था उस समय मैंने भी चादर पोशी की. मैंने साम्प्रदायिक सद्भावना की मिसाल के तौर पर सद्भावना की चादर चढ़ाई थी. इसके बाद देश में तिरंगे का जब अपमान हो रहा था. तब मैंने छात्र जीवन में ही 150 मीटर लंबी तिरंगा की चादर चढ़ाई थी. तिरंगे का सम्मान किया था.

सद्भावना से बनी सतरंगी चादर
खुद्दाम-ए-रोजा कमेटी के प्रेसिडेंट ताहिरउद्दीन ताहिर ने बताया कि, सन् 1980 में सद्भावना की चादर सतरंगी चादर में बदल गई. हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई आपस में सब भाई-भाई इसी को लेकर सतरंगी चादर की शुरुआत की गई. जब सतरंगी की चादर की शुरुआत की थी. उस दौरान हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध सहित तमाम धर्मों के प्रबुद्ध जन उसमें शामिल हुए थे. सभी ने उस चादर में अपना सहयोग दिया था. तभी से लगातार यह चादर चढ़ाई जा रही है.

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हर साल सहयोग से बढ़ रही चादर
ताहिरउद्दीन ताहिर ने बताया कि, सतरंगी चादर की लंबाई हर साल बढ़ रही है. लोग अपनी आस्था के चलते चादर चढ़ाने को लेकर मिलते हैं. चादर में सहयोग के लिए पैसे की बात करते हैं. उनसे यही कहा जाता है कि, पैसे नहीं हमें आप अपने चादर का कपड़ा दीजिए. इस तरह से हर साल लोग जुड़ते हैं. इससे चादर की लंबाई बढ़ती जा रही है. आज हमारा अंतिम दिन है. इस चादर को फाइनल टच दिया जा रहा है. हमारी फाइनल 1331 मीटर लंबी चादर हो गई है, जो शुक्रवार को दोपहर में उर्स के तीसरे दिन चढ़ाई जाएगी.

चादर की लंबाई का गणित अजब
खुद्दाम-ए-रोजा कमेटी के प्रेसिडेंट ताहिरउद्दीन ताहिर ने बताया कि, सतरंगी चादर की लंबाई का गणित भी अजब है. यह संयोग है. सन् 1918 में चादर की लंबाई 1111 मीटर थी. सन् 1919 में सतरंगी चादर की लंबाई 1221 मीटर हो गई थी. 2020 में कोरोना संक्रमण के चलते उर्स नहीं लगा. लेकिन, 2021 की बात करें तो इस बार सतरंगी चादर की लंबाई 1331 मीटर हो गई है. यह अंको का गणित भी संयोग बस हो रहा है. लोगों की मन्नत पूरी होने और आस्था बढ़ने से लगातार सतरंगी चादर की लंबाई बढ़ रही है.

गरीबों में बांट दी जाती है सतरंगी चादर
सतरंगी चादर की गुरुवार शाम को साफ-सफाई की गई. उसकी तह बनाई गई. शुक्रवार को दोपहर में सतरंगी चादर को लेकर खुद्दाम-ए-रोजा कमेटी के पदाधिकारी और सदस्यों के साथ तमाम स्थानीय लोग निकलेंगे. ताजमहल के साउथ गेट से सतरंगी चादर का एक छोर लेकर लोग ताजमहल के मुख्य गुंबद के तहखाने में स्थित शाहजहां और मुमताज की मजार पर ले जाएंगे. खुद्दाम-ए-रोजा कमेटी के पदाधिकारी का दावा है कि, चादर पोशी के बाद फिर सतरंगी चादर को गरीबों में बांट दिया जाता है.

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