आगराः मुगल शहंशाह शाहजहां का 366 वां उर्स मनाया जा रहा है. उर्स में इस बार 1331 मीटर (4366 फीट) की सतरंगी चादर चढ़ाई जाएगी. उर्स के तीसरे दिन सुलहकुल की नगरी में खुद्दाम-ए-रोजा कमेटी की ओर से चादर के चादर पोशी की जाएगी. सन् 1980 में इस सतरंगी चादर की शुरुआत ताहिरउद्दीन ताहिर ने की थी. 40 साल से लगातार इस चादर की लंबाई बढ़ रही है.
गुरुवार को चादरपोशी की पूर्व संध्या पर सतरंगी चादर की विशेष तरीके से साफ-सफाई की गई. ईटीवी भारत से विशेष बातचीत में खुद्दाम-ए-रोजा कमेटी के प्रेसिडेंट ताहिरउद्दीन ताहिर ने बताया कि, सतरंगी चादर सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल है. इस चादर में हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी धर्म के लोगों की आस्था है. उनके दिए गए कपड़े से चादर को बनाया जाता है. शुक्रवार को सतरंगी चादर की चादरपोशी करके दुनिया को मोहब्बत की निशानी ताजमहल से प्रेम और सद्भावना का संदेश दिया जाएगा.
पहली चढ़ाई थी तिरंगा की चादर
खुद्दाम-ए-रोजा कमेटी के प्रेसिडेंट ताहिरउद्दीन ताहिर ने बताया कि, ताजमहल के मुख्य गुंबद के तहखाने में स्थित मुगल शहंशाह शाहजहां और मुमताज की मजार पर उर्स में चादर पोशी की पुरानी परंपरा है. मेरे पूर्वज लगातार चादर पोशी करते हैं. मेरे दादा के बाद पिता ने चादर चढ़ाई थी. जब मैं छात्र जीवन में था उस समय मैंने भी चादर पोशी की. मैंने साम्प्रदायिक सद्भावना की मिसाल के तौर पर सद्भावना की चादर चढ़ाई थी. इसके बाद देश में तिरंगे का जब अपमान हो रहा था. तब मैंने छात्र जीवन में ही 150 मीटर लंबी तिरंगा की चादर चढ़ाई थी. तिरंगे का सम्मान किया था.
सद्भावना से बनी सतरंगी चादर
खुद्दाम-ए-रोजा कमेटी के प्रेसिडेंट ताहिरउद्दीन ताहिर ने बताया कि, सन् 1980 में सद्भावना की चादर सतरंगी चादर में बदल गई. हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई आपस में सब भाई-भाई इसी को लेकर सतरंगी चादर की शुरुआत की गई. जब सतरंगी की चादर की शुरुआत की थी. उस दौरान हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध सहित तमाम धर्मों के प्रबुद्ध जन उसमें शामिल हुए थे. सभी ने उस चादर में अपना सहयोग दिया था. तभी से लगातार यह चादर चढ़ाई जा रही है.