आगरा:श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के बाद अब ताजनगरी में हर तरफ गणेश उत्सव की धूम है. जहां शहर गणेश उत्सव के रंग में सराबोर होने लगा है. लोग गणपति बप्पा के घर में बैठाने की तैयारी में लगे हुए हैं तो मूर्तिकार भी भगवान गणेशजी की अलग-अलग मुद्रा की मूर्ति बनाने में लगे हैं. मगर, ताजनगरी में दो मूर्तिकार भाई के साथ नागपुर के कारीगर शहर की सबसे ऊंची ईको फ्रेंडली मूर्ति बना रहे हैं. मूर्तिकार भाइयों की हर मूर्ति ईको फ्रेंडली है. लोगों के घर में विराजने पर जहां उनके सकल मनोरथ पूरे करेंगे तो विसर्जन के बाद हर ईको फ्रेंडली मूर्ति पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी देंगी.
जानकारी देते मूर्तिकार और संवाददाता. दरअसल, ताजनगरी में मूर्तिकार लोकेश राव थोरात और नीलेश राव थोरात कई साल से ईको फ्रेंडली मूर्ति बनाते हैं. क्योंकि, प्लास्टर आफ पेरिस से बनी मूर्तियां पर्यावरण के लिए बेहद हानिकारक हैं. जो न तो गलती हैं और प्रदूषण भी फैलाती हैं. इस बार मूर्तिकार लोकेश राव थोरात और नीलेश राव थोरात के साथ ही नागपुर के मूर्तिकार मिलकर सदर के नौलक्खा में 17 फीट की भगवान श्रीगणेश की मूर्ति बना रहे हैं. जो ईको फ्रेंडली है.
मूर्तिकार लोकेश राव थोरात ने बताया कि मूर्ति बनाने में पंचगव्य, मिट्टी, घास, फूस, लकड़ी और जूट की बोरी का उपयोग करके तैयार की जा रही है. इसके साथ ही मूर्ति में बनी रिद्धि और सिद्धि की मूर्ति में आम के बीज भी लगाए गए हैं. इसलिए आगरा के सबसे बड़ी भगवान गणेशजी की मूर्ति यानी बीज गणेश हैं. क्योंकि, ईको फ्रैंडली भगवान श्रीगणेशजी की मूर्ति को जब विसर्जित किया जाएगा तो वह पानी में घुल जाएगी. मूर्तिकार भाई अपनी हर मूर्ति में अलग-अलग पौधों के बीज भी लगाते हैं. जिससे विर्सजन के बाद यदि मिट्टी गमला या बगीचे में उपयोग की गई तो उसमें लगे आम के बीज से पौधे निकलेंगे.
नागपुर के मूर्तिकारों का भी है सहयोग
मूर्तिकार लोकेश राव थोरात ने बताया कि, जून 2022 से भगवान गणेश जी की मूर्ति बनाने में लगे हैं. मूर्ति में नागपुर के मूर्तिकार भी सहयोग कर रहे हैं. मूर्तिकार लोकेश राव थोरात ने बताया कि भगवान श्रीगणेशजी के मुकुट के ऊपर आदिशक्ति यानी दुर्गा मां है तो नीचे पैरों तले भी छोटी-छोटी मूर्तियां बनाईं हैं. और इसके अलावा भी राक्षस और देवी देवताओं की छोटी मूर्तियां बनाई जाएंगी. नागपुर के मूर्तिकार कमल प्रजापति ने बताया कि यह मूर्ति आर्डर पर तैयार की जा रही है. जो आगरा की सबसे ऊंची है. यह मूर्ति और पूरी तरह से ईको फ्रेंडली है.
हर मूर्ति में लगाते हैं बीज
मूर्तिकार लोकेश राव थोरात ने बताया कि, ईको फ्रेंडली मूर्ति बनाने का काम करते हैं. जो मिट्टी, घास, फूस की बनाते हैं. हर मूर्ति में रंग भी ईको फ्रेंडली उपयोग करते हैं. हर मूर्ति में अलग-अलग पौधों के बीज लगा देते हैं. जिससे विसर्जन के दौरान मूर्ति पानी मे घुल जाए. रंग भी पर्यावरण और नदी को नुकसान नहीं पहुचाएं. जब इन मूर्ति की मिट्टी को गमला या बगीचा में प्रयोग में लें तो उसमें लगे बीज अंकुरित होकर पौधे बनेंगे.
इसे भी पढे़ं-रायबरेली: कोरोना काल ने बदली भक्तों की डिमांड, बड़े नहीं छोटे आकार के 'बप्पा' बने भक्तों की पसंद