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वाराणसी: रानी लक्ष्मीबाई के बलिदान दिवस पर लोगों ने किया नमन

झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के बलिदान दिवस के अवसर पर गुरुवार को वाराणसी में लोगों ने जन्मस्थली पर जाकर उन्हें श्रद्धांजलि दी. साथ ही उनके बलिदान और शौर्य को याद किया.

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Published : Jun 18, 2020, 5:09 PM IST

Updated : Jun 18, 2020, 5:18 PM IST

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रानी लक्ष्मी बाई बलिदान दिवस

वाराणसी:देश के स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं ने भी पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाया था. फिर चाहे वह युद्ध भूमि में साहस का परिचय देना हो या शत्रुओं से लोहा लेकर उन्हें परास्त करना हो. हर क्षेत्र में महिलाओं ने अपने साहस और वीरता का परिचय दिया है. इसी फेहरिस्त में सबसे अग्रणी रही हैं झांसी की रानी लक्ष्मीबाई. जिनकी जन्मभूमि काशी रही है. गुरुवार को लक्ष्मीबाई के बलिदान दिवस पर लोगों ने उनकी जन्मस्थली पर श्रद्धा-सुमन अर्पित किए और देश के लिए दिए गए उनके बलिदान को याद किया.

रानी लक्ष्मी बाई के बचपन का नाम था मनु
रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 1828 में काशी के अस्सी घाट के नजदीक हुआ. उनके पिता का नाम मोरोपंत तांबे और मां का नाम भागीरथी बाई था. घर में उनका नाम मणिकर्णिका रखा गया, मगर प्यार से उन्हें मनु कहा जाने लगा. मनु ने बचपन में ही तीर-तलवार और बन्दूक से निशाना लगाना सीखा. इस प्रकार मनु बाल्यावस्था में ही अस्त्र-शस्त्र चलाने में पारंगत हो गई थीं. अस्त्र-शस्त्र चलाना एवं घुड़सवारी करना मनु को काफी पसंद था.

14 वर्ष की आयु में हुआ विवाह
समय के साथ मनु बड़ी हुईं और उनका विवाह 1842 में मात्र 14 वर्ष की आयु में ही झांसी के राजा गंगाधर राव के साथ बड़े ही धूमधाम से सम्पन्न हुआ. विवाह के पश्चात मनु का नाम लक्ष्मीबाई रखा गया. रानी लक्ष्मीबाई गंगाधर राव की दूसरी पत्नी थी. इस प्रकार काशी की यह वीर कन्या मनु झांसी की रानी लक्ष्मीबाई बन गई.

पुत्र को लिया गोद
1851 में रानी लक्ष्मीबाई ने पुत्र रत्न को जन्म दिया. इससे पूरी झांसी खुशियों से झूम उठी, क्योंकि अंग्रेजों की शर्त के तहत राजा की मौत के बाद उनका अपना खून ही वारिस होगा, लेकिन यह खुशियां ज्यादा दिन न रह सकीं और रानी के पुत्र की मृत्यु हो गई. विरासत को बचाने की समस्या उत्पन्न हुई तो रानी ने दामोदर राव नाम के एक बच्चे को गोद लिया, लेकिन अपने बच्चे की मौत के सदमे से राजा गंगाधर उबर न पाए और उनकी मृत्यु हो गई.

अंग्रेज रानी की इस बात से खफा हो गए और झांसी के किले पर कब्जा करने का फरमान जारी किया. रानी लक्ष्मीबाई के पास अंग्रेजों का सामना करने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं था. जिसके बाद अंग्रेजी सेना और रानी लक्ष्मीबाई की सेना के बीच युद्ध छिड़ गया और यह युद्ध कई दिनों तक चला, लेकिन अंग्रेजों की सेना के आगे लक्ष्मीबाई की सेना हारने लगी. रानी ने अपने दत्तक पुत्र दामोदर राव को अपनी पीठ पर बांधा और 18 जून 1858 को अंग्रेजों की सेना से लोहा लेने के दौरान रानी ने अपना बलिदान दे दिया.

रानी लक्ष्मीबाई का बलिदान दिवस
गुरुवार को रानी लक्ष्मीबाई के बलिदान दिवस पर लोगों ने रानी लक्ष्मीबाई के साहस और बलिदान को याद किया. साथ ही उनकी जन्मस्थली पर पहुंचकर लोगों ने उन्हें माल्यार्पण कर श्रद्धा-सुमन अर्पित किए. वहीं देख-रेख में लगे लोगों ने बताया कि हम अपनी इच्छा और अपने मन से इस जन्मस्थली पर मौजूद हैं, जिससे आने वाली पीढ़ियां यह जान सकें कि रानी लक्ष्मीबाई ने किस तरह से अंग्रेजों से लोहा लेकर देश को आजादी के पथ पर आगे बढ़ाया.

Last Updated : Jun 18, 2020, 5:18 PM IST

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