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पितृपक्ष की 11 सितंबर से शुरुआत, आज होगी पूर्णिमा की श्राद्ध

वाराणसी में पितृपक्ष (Pitra paksha in varanasi) की शुरुआत 11 सितंबर से हो रही है. शास्त्रों में मनुष्यों के लिए देव ऋण, ऋषि ऋण, पितृ ऋण बताए गए हैं. पितृपक्ष में श्राद्ध (Shradh in Varanasi Pitra Paksha) करने से इन ऋणों से मुक्ति मिल जाती है.

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Published : Sep 10, 2022, 10:04 AM IST

Updated : Sep 10, 2022, 10:15 AM IST

वाराणसी:सनातन धर्म में आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से अमावस्या तक के 15 दिन पूर्वजों के लिए समर्पित हैं. इन दिनों को पितृपक्ष (Pitra paksha in varanasi) कहा जाता है. शास्त्रों में मनुष्यों के लिए देव ऋण, ऋषि ऋण, पितृ ऋण बताए गए हैं. इसकी वजह है, कि जिन माता-पिता ने हमारी आयु-आरोग्यता, सुख-सौभाग्यादि की वृद्धि के लिए अनेक प्रयास किए हैं. उनके ऋण से मुक्त नहीं होने पर हमारा जन्म ग्रहण करना निरर्थक होता है. इसलिए हमारे पितरों के प्रति श्रद्धा समर्पित करने को पितृपक्ष (Shradh in Varanasi Pitra Paksha) महालया का प्राविधान किया गया है.

ज्योतिषाचार्य पंडित ऋषि द्विवेदी के मुताबिक इस बार (Pitra paksha in varanasi) पितृपक्ष 11 सितंबर से शुरू हो रहा है और समापन 25 सितंबर को पितृ विसर्जन के साथ होगा. अश्विन कृष्ण प्रतिपदा तिथि 10 सितंबर को दोपहर 3:46 पर लग रही है, जो कि 11 सितंबर को दोपहर 2:15 तक रहेगी. इसलिए पितृपक्ष का पहला श्राद्ध (Shradh in Varanasi Pitra Paksha) 11 सितंबर को करना होगा. महालया की शुरुआत भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा(Bhadrapada Shukla Purnima) इस बार 10 सितंबर से शुरू होकर अश्विन अमावस्या तक है. महालया का शाब्दिक अर्थ पितरों के आवाहन से पितरों के विसर्जन तक के 16 दिनों के समय को कहा जाता है.

काशी धर्म परिषद के महासचिव और ज्योतिषाचार्य पंडित ऋषि द्विवेदी के अनुसार स्त्री रोग अपने पुत्र आदि से श्राद्ध तर्पण की अपेक्षा करते हैं, यदि उन्हें यह उपलब्ध नहीं होता तो वह नाराज होकर श्राप देकर चले जाते हैं. इसलिए हर सनातनी को केवल वर्ष भर में उनकी मृत्यु तिथि को सर्व सुलभ जल, तिल, कुशा और पुष्प आदि से श्रद्धा अर्पित करनी चाहिए और गो ग्रास देकर 3 या 5 आदि ब्राह्मणों को भोजन करा देने से पितृ गण संतुष्ट हो जाते हैं और उनके इस ऋण से मुक्ति मिलती है.

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पितृ ऋण कार्य की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए. इसके लिए माता-पिता की मृत्यु महीने में जिस तिथि को हुई हो उस दिन को श्राद्ध तर्पण करते हुए ब्राह्मणों को भोजन अवश्य कराना चाहिए. इससे पितर प्रसन्न होते हैं और परिवार में सुख सौभाग्य और समृद्धि बनी रहती है. पंडित ऋषि द्विवेदी का कहना है, कि इस बार पितृपक्ष 15 दिनों का पूर्ण होगा. तिथि की कोई हानि और बढ़ोतरी नहीं हो रही है. अश्विन अमावस्या तिथि 24-25 सितंबर की रात्रि 2:54 पर लगेगी, जो 26 सितंबर की सुबह में 3:24 तक रहेगी. 26 सितंबर को ही प्रातः काल अश्विन शुक्ल प्रतिपदा तिथि मिलने से शारदीय नवरात्र भी शुरू मानी जाएगी.

पितृपक्ष के 15 दिन के इस दिवस पर कुछ विशेष तिथियां होती हैं. जिनमें 19 सितंबर को मातृ नवमी है. जिसमें माता की मृत्यु तिथि ज्ञात ना होने पर श्राद्ध करने का विधान है. अश्विन कृष्ण द्वादशी तिथि 22 सितंबर को है. इस दिन साधु, यति वैष्णव का श्राद्ध किया जाता है. आश्विन कृष्ण चतुर्दशी तिथि 24 सितंबर को है. इस दिन किसी दुर्घटना में मृत व्यक्तियों का श्राद्ध कर्म किया जाता है. सर्वपितृ अमावस्या 25 सितंबर को है. इस दिन अज्ञात तिथि जिसमें किसी मृतक की तिथि ज्ञात ना हो अन्याय कारणों से नियत तिथि पर श्राद्ध कर पाने के कारण तिथि विशेष पर श्राद्ध कर्म करने का विधान है. अंतिम तिथि यानी 25 सितंबर की रात में मुख्य द्वार पर दीपक जलाकर पितृ विसर्जन किया जाएगा, जो परंपरा के अनुरूप है.

किस तारीख को कौन सा श्राद्ध करें:

  • प्रतिपदा, रविवार 11 सितंबर
  • द्वितीया, सोमवार 12 सितंबर
  • तृतीया मंगलवार 13 सितंबर
  • चतुर्थी बुधवार 14 सितंबर
  • पंचमी गुरुवार 15 सितंबर
  • षष्टि शुक्रवार 16 सितंबर
  • सप्तमी शनिवार 17 सितंबर
  • अष्टमी रविवार 18 सितंबर
  • मातृ नवमी सोमवार 19 सितंबर
  • दशमी मंगलवार 20 सितंबर
  • एकादशी बुधवार 21 सितंबर, इसे इंदिरा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है.
  • द्वादशी गुरुवार 22 सितंबर
  • त्रयोदशी शुक्रवार 23 सितंबर
  • चतुर्दशी शनिवार 24 सितंबर
  • सर्वपितृ अमावस्या रविवार 25 सितंबर.

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Last Updated : Sep 10, 2022, 10:15 AM IST

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