वाराणसी: भारतीय संस्कृति के हिंदू धर्म शास्त्र में प्रत्येक महीने की तिथियों एवं व्रत त्योहारों का अलग महत्व है. हर दिन ईश्वर के अलग स्वरूपों के लिए निर्धारित किया गया है. चातुर्मास में श्रावण महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को कामदा एकादशी के रूप में जाना जाता है. पुराणों के अनुसार कामदा एकादशी का व्रत करने से भगवान श्रीहरि विष्णु की कृपा से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. इस व्रत की महत्ता धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से जानी थी.
प्रख्यात ज्योतिषाचार्य विमल जैन ने बताया कि श्रावण महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को कामिका या कामदा एकादशी के नाम से जाना जाता है. इस बार श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 23 जुलाई शनिवार को प्रातः 11:28 से प्रारंभ होकर 24 जुलाई रविवार को दिन में 1:46 तक मान्य है. 24 जुलाई रविवार को इस व्रत को रखा जाएगा. एकादशी तिथि के व्रत का पारण द्वादशी तिथि में ही करना सर्वोपरि माना गया है. कामिका एकादशी का विशेष महत्व होता है, जैसा की तिथि के नाम से भी जाना जा रहा है कि तिथि विशेष के दिन संपूर्ण दिवस उपवास रखने से मनोकामनाओं की पूर्ति और समस्त पापों का नाश होता है.
वहीं, ज्योतिषाचार्य विमल जैन का कहना है कि व्रत के दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर अपने समस्त दैनिक कृतियों से निवृत्त होकर गंगा या किसी कुंड सरोवर में स्नान करना बताया गया है. स्नान करने के बाद अपने आराध्य देवी-देवता का पूजन अर्चन करने के पश्चात कामदा या कामिका एकादशी व्रत का संकल्प लेना चाहिए. संपूर्ण दिन निर्जल उपवास करना चाहिए. विशेष परिस्थितियों में दूध या फलाहार ग्रहण किया जा सकता है. व्रत के पूरे दिन चावल तथा अन्न ग्रहण करना विशेष रूप से निषेध बताया गया है.
भगवान श्री कृष्ण की विशेष अनुकंपा प्राप्ति के लिए श्री विष्णु के विशेष मंत्र ओम नमो नारायण या ओम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप मन में पूरे दिन करते रहना चाहिए. आज के दिन ब्राह्मण को यथा सामर्थ्य दक्षिणा के साथ दान करके इस दिवस का लाभ उठाना चाहिए. मन वचन कर्म में पूर्णरूपेण शुचिता बरतते हुए इस व्रत का पालन करना अति आवश्यक है. भगवान श्री विष्णु जी की श्रद्धा आस्था भक्ति भाव के साथ आराधना से पुण्य अर्जित करने के लिए यह व्रत सर्वोपरि है.
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विमल जैन के मुताबिक पौराणिक कथा के अनुसार एक गांव में एक पहलवान था. 1 दिन पहलवान के अति क्रोध की वजह से उसका एक ब्राह्मण से झगड़ा हो गया. क्रोध में वशीभूत होकर पहलवान ने ब्राह्मण की हत्या कर दी थी. इसलिए पहलवान पर ब्रह्म हत्या का पाप लगा था. इस दोष के कारण पहलवान को समाज से बहिष्कृत किया जाने लगा.