वाराणसी:आज की सुनवाई पूरी हो गई है. कोर्ट ने आगे की सुनवाई के लिए कल की तिथि मुकर्रर की है. 2:00 बजे सुनवाई होगी. प्रथम वादी राखी सिंह के वकील शिवम गौड़ की तरफ से श्रृंगार गौरी की नियमित पूजा के अधिकार को लेकर दलीलें पेश की गई. श्री काशी विश्वनाथ एक्ट, वक्फ एक्ट और 1991 के प्लेसेस ऑफ वरशिप एक्ट के प्रावधान के लागू ना होने की बात कही गई. शिवम गौड़ का कहना है कि उन्होंने नियमित पूजा के अधिकार की मांग की है, श्रृंगार गौरी की पूजा नियमित हो, यह जरूरी है. इस आधार पर यह मुकदमा खारिज होने योग्य नहीं हैं, क्योंकि 1993 से यहां पूजा बंद हुई थी, यह स्थान देवता का था.वादी पक्ष के वकीलों की तरफ से 361 पन्ने के और रिटेन अर्ग्यूमेंट और 100 से ज्यादा जजमेंट इस प्रकरण के सपोर्ट में प्रस्तुत किए गए हैं, जो हाई कोर्ट सुप्रीम कोर्ट समेत अन्य न्यायालयों से जुड़े हैं.
लगभग 2 घंटे तक आज चली सुनवाई में राखी सिंह के वकील शिवम गौड़ ने न्यायालय के सामने कहा कि देश की आजादी के दिन से लेकर वर्ष 1993 तक मां श्रृंगार गौरी की नियमित पूजा होती थी. वहां का धार्मिक स्वरूप सनातन धर्म का ही था. वर्ष 1993 में सरकार ने अचानक बैरकेडिंग लगाकर नियमित दर्शन और पूजा बंद कराई. इसलिए प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट और वक्फ एक्ट या किसी अन्य एक्ट के प्रावधान श्रृंगार गौरी प्रकरण में लागू नहीं होते हैं. उन्होंने कहा कि हमारा ज्ञानवापी की किसी जमीन पर कोई दावा नहीं है. हमारा दावा सिर्फ श्रृंगार गौरी के नियमित दर्शन और पूजा के लिए है. अदालत ने शिवम गौड़ को बहस जारी रखने की अनुमति देते हुए सुनवाई की अगली तिथि 19 जुलाई नियत कर दी है.
इससे पहले मुस्लिम पक्ष यह दावा कर चुका है कि श्रृंगार गौरी का मुकदमा किसी भी तरह से सुनवाई योग्य नहीं है. वहीं, हिंदू पक्ष की चार वादिनी सीता साहू, मंजू व्यास, लक्ष्मी देवी और रेखा पाठक के अधिवक्ता यह दावा कर चुके हैं कि मुकदमा हर हाल में सुनवाई योग्य है.
बता दें, ज्ञानवापी परिसर को लेकर सोमवार को को सिविल जज सीनियर डिविजन की कोर्ट में एक और मुकदमा दाखिल हुआ. यह मुकदमा भगवान अविमुक्तेश्वर विराजमान के नाम से फाइल हुआ है. सुनवाई के दौरान 22 लोग अदालत में मौजूद रहे.
वादी पक्ष की 4 महिलाओं के वकील हरिशंकर जैन और विष्णु जैन की तरफ से अपनी दलीलें शुक्रवार को ही खत्म कर ली गई थीं. इस केस को लेकर राखी सिंह के पैरोकार जितेंद्र सिंह बिसेन ने बताया है कि ज्ञानवापी मामले में वाराणसी जिला जज की कोर्ट में वकील शिवम गौड़ राखी सिंह का पक्ष रखेंगे. कुल 367 पन्नों की (अब तक की हुई बहस से बिल्कुल विपरीत) आर्गुमेंट दाखिल करते हुए कोर्ट को बताएंगे कि राखी सिंह का वाद किसी भी कानून के तहत खारिज नहीं किया जा सकता है.
दरअसल ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर प्रकरण को सीनियर जस्टिस सिविल डिवीजन के न्यायालय से जिला जज अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत में ट्रांसफर का जिस पर सुनवाई शुरू की गई है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि 30 मई तक सुनवाई होने के बाद ग्रीष्मकालीन अवकाश की वजह से सुनवाई रोक दी गई थी, लेकिन 4 जुलाई से इस पर सुनवाई फिर से शुरू कोई है और 12 जुलाई तक इस मामले में अंजुमन इंतजामियां मस्जिद कमेटी की तरफ से उनके वकीलों ने वादी पक्ष की तरफ से दाखिल किए गए 52 पॉइंट का विश्लेषण करते हुए एक एक पॉइंट पर अपनी बातें रखी थी.
12 जुलाई को लगभग 45 मिनट तक हिंदू पक्ष के वकील विष्णु जैन ने अपनी दलीलें पेश की थी और उसके बाद लगभग 3 दिनों तक अपनी दलीलें पेश करके शुक्रवार को हिंदू पक्ष के वकील हरिशंकर जैन और विष्णु जैन ने अपनी बातें कोर्ट के सामने खत्म की थी. अब आज राखी सिंह के वकील अपनी बातें रखेंगे और इसके बाद माना जा रहा है कि काउंटर के तौर पर मुस्लिम पक्ष अपनी दलीलें पेश कर सकता है.
फिलहाल मामले की पोषणीयता यानी प्रकरण सुनवाई योग्य है या नहीं इसे लेकर जिला जज न्यायालय में अभी मामला चल रहा है. हिंदू पक्ष ने मामले के स्वीकृत होने के बाद ज्ञानवापी परिसर की एएसआई सर्वे और अंदर मिले शिवलिंग की कार्बन डेटिंग कराने की मांग की की भी तैयारी कर ली है. फिलहाल इस मामले में हरिशंकर जैन की तरफ से वेद पुराण उपनिषद और अन्य हिंदू शास्त्रों के आधार पर दलीलें पेश की गई हैं कि ज्ञानवापी परिसर पर मुस्लिम पक्ष का अधिकार है ही नहीं और सिर्फ नमाज पढ़ने से ही कोई जगह मस्जिद की नहीं हो जाती है. वह जगह देवता की है और देवता की संपत्ति पर किसी का अधिकार हो ही नहीं सकता. इस प्रकरण में हिंदू पक्ष के वकीलों की तरफ से वक्फ बोर्ड एक्ट को भी चैलेंज दिया जा रहा है और विश्वनाथ एक्ट की महत्ता को भी बताया गया है.
कोर्ट में पेश हो चुकीं कई दलीलें
ज्ञानवापी के श्रृंगार गौरी मामले में अब तक हुई बहस में हिंदू पक्ष की तरफ से कई दलीलें पेश की गई हैं जिसमें वादी नंबर 2 से लेकर 5 तक के तरफ से वकील हरि शंकर जैन और विष्णु जैन ने कोर्ट से कहा था कि ज्ञानवापी देवता की संपत्ति है और यह नष्ट नहीं होती है. मंदिर टूट जाने से उसका अस्तित्व समाप्त नहीं होगा और आध्यात्मिक स्वरूप बरकरार रहेगा. वर्ष 1937 में बीएचयू के प्रोफेसर एएस अलटेकर ने अपनी पुस्तक में ज्ञानवापी स्थित मंदिर टूट जाने के बाद इस तथ्य का जिक्र किया है कि वहां क्या क्या बचा है और कहां पूजा हो रही है. वर्ष 1937 के दीन मोहम्मद केस का फैसला आया था, वह सभी पर बाध्यकारी नहीं है, क्योंकि उसमें हिंदू पक्षकार कोई नहीं था.
वर्ष 1993 में व्यास जी पूजा किया करते थे, जो अब बैरिकेडिंग कर सील कर दिया गया. हिंदू लॉ में अप्रत्यक्ष देवता भी मान्य हैं. देवता को हटा दिए जाने से भी उनका स्थान वही रहता है. मुस्लिम लॉ में स्पष्ट है कि जो प्रॉपर्टी वक्फ को दी जाती है वह मालिक द्वारा ही दी जा सकती है. ज्ञानवापी के संबंध में कोई वक्फ डीड नहीं है, न कोई सबूत कोर्ट में पेश किया गया है कि यह वक्फ की संपत्ति है. ज्ञानवापी परिसर में वर्ष 1993 तक जैसे दर्शन-पूजन होता था. वैसे ही व्यवस्था फिर से लागू की जाए.
वहीं मुस्लिम पक्ष ने अपनी दलीलों में कहा था कि ज्ञानवापी परिसर में प्लॉट नंबर-9130 पर लगभग 600 वर्ष से ज्यादा समय से मस्जिद कायम है. वहां वाराणसी और आस-पास के मुस्लिम 5 वक्त की नमाज अदा करते हैं. संसद ने वर्ष 1991 में दी प्लेसेज आफ वर्शिप (स्पेशल प्रॉविजन) एक्ट 1991 बनाया. उसमें इस बात का प्रावधान है कि जो धार्मिक स्थल 15 अगस्त 1947 को जिस हालत में थे, वह उसी हालत में बने रहेंगे.
वर्ष 1983 में उत्तर प्रदेश सरकार ने श्रीकाशी विश्वनाथ अधिनियम 1983 बनाया गया. जिससे संपूर्ण काशी विश्वनाथ परिसर की देखरेख के लिए बोर्ड ऑफ ट्रस्टी बनाने का प्रॉविजन है. बोर्ड ऑफ ट्रस्टी को ही श्री काशी विश्वनाथ मंदिर और उसके परिसर के देवी-देवताओं के प्रबंध का अधिकार मिला है. ज्ञानवापी मस्जिद वक्फ की संपत्ति है. इससे संबंधित अधिकार यूपी सुन्नी सेंट्रल बोर्ड ऑफ वक्फ लखनऊ को हैं. ऐसे में इस अदालत को सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं है.
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