वाराणसी:कोरोना काल में आयुर्वेद ने हमें नई उम्मीदें दीं. इस उम्मीद ने हमें एलोपैथ के अलावा भी इलाज का विकल्प दिखाया. लोगों का भारतीय आयुर्वेद पर विश्वास जमाता गया. सरकार ने आयुष मंत्रालय पर लोगों के विश्वास को और मजबूत करने के लिए कई कदम उठाए. हालांकि दवाओं की आपूर्ति ठीक से न होने से अस्पतालों में आने वाले मरीजों को मायूसी हाथ लगी. एक रिपोर्ट..
दवाओं की किल्लत से जूझ रहा है आयुर्वेद अस्पताल आयुर्वेदिक अस्पतालों में है दवाओं का अभाव, 200 की है जरूरत तो मौजूद हैं केवल 40 दवाएं :बनारस के आयुर्वेद अस्पताल (Ayurveda Hospital) में सुविधाएं तो तमाम हैं लेकिन बीमारियों को ठीक करने के लिए दवाएं कम है. ETV Bharat की टीम जब इन आरोपों की हकीकत जानने बनारस के आयुर्वेद चिकित्सालय पहुंची तो जो तस्वीर दिखाई दी वो बिल्कुल हैरान करने वाली थी.
दवाओं की किल्लत से जूझ रहा है आयुर्वेद अस्पताल इसे भी पढ़ेंःलखनऊ: आयुर्वेदिक डिस्पेंसरी में 320 डॉक्टरों की तैनाती, 544 की नियुक्ति भी जल्द
आयुर्वेद अस्पताल में सुविधाओं के नाम पर तमाम आधुनिक व्यवस्थाएं कराई जा रही हैं लेकिन बीमारियों से जंग लड़ने के लिए दवाओं का बीते कई दशकों से यहां अभाव चल रहा है. यह हम नहीं यहां के रेजिडेंट डाॅक्टर और वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी कह रहे हैं. उनका कहना है कि समय के साथ आयुर्वेद में तमाम नई चीजों को जोड़ा गया और धीरे-धीरे अस्पतालों को भी आधुनिक बनाया जा रहा है. लेकिन एक समस्या अनवरत बनी हुई है. वह है अस्पताल में दवाओं की.
उन्होंने बताया कि वर्तमान में राज्य सरकार की ओर से महज 40 दवाएं मिलती हैं. इसके साथ कुछ दवाएं रॉ औषधियों के जरिए खुद अस्पताल में तैयार की जाती है. उन्होंने बताया कि और कुछ दवाओं को कभी-कभी केंद्र सरकार द्वारा भी मुहैया कराया जाता है. हालांकि यहां लगभग 200 दवाओं की जरूरत है. दवाओं के अभाव में डॉक्टर मरीज दोनों को समस्याएं हो रही है.
दशकों से चल रही दवाओं के अपग्रेडेशन की हैं जरूरत :आयुर्वेदिक अस्पताल में विभिन्न बीमारियों के लिए दी जा रहीं दवाएं आज भी उन्हीं बीमारियों के लिए बदस्तूर दी जा रहीं है. समय बदलने के साथ रोगों की प्रकृति भी बदली है और दवाओं का प्रभाव भी कम हुआ है. लेकिन नई दवाओं को यहां लाने और मरीजों के लिए आधुनिक चिकित्सा सुविधा को शुरू करने में अस्पताल आज भी पीछे दिखाई देता है.
1991 से जो दवाएं दी जा रहीं है, उनमें कोई बदलाव नहीं किया गया है जबकि बीमारियों का स्वरूप बदल गया है. मजबूरी में पुरानी दवाओं से ही काम चलाना पड़ता है. दूसरा कोई सप्लीमेंट्री विकल्प भी नहीं होता. यदि किसी को यदि चूर्ण पसंद नहीं है तो उसे टैबलेट दे दिया जाए. इस तरीके के भी अपग्रेडेशन की बेहद जरूरत है.
बाहर की दवाओं से चलाना पड़ रहा है काम :अन्य रेजिडेंट डाॅक्टरों ने बताया कि दवाओं के अभाव में उन्हें मजबूरन बाहर की दवाएं लिखनी पड़तीं है क्योंकि इन दवाओं से सभी तरीके की बीमारियों का इलाज नहीं हो सकता. बताया कि सरकार को बीमारियों के अनुसार दवाओं को उपलब्ध कराना चाहिए ताकि ज्यादा से ज्यादा संख्या में दवाएं अस्पताल में मौजूद हों और मरीजों का बेहतर इलाज (better treatment of patients) हो सके.
ऐसे में एक बड़ा सवाल यह उठता है कि दवाओं के अभाव में अस्पतालों को हाईटेक कैसे बनाया जा सकता है. जिस आयुर्वेद को बेहतर बनाने का सरकार दंभ भर रही है, यदि उनमें ऐसे ही दवाओं की किल्लत होती रही तो मरीजों को कैसे बेहतर इलाज मिल सकेगा.
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