लखनऊ : पारिवारिक न्यायालय में रोजाना करीब 50 केस दर्ज होते हैं जबकि सुनवाई या मामले का फैसला एक भी केस का नहीं होता है. तारीखें बदलती रहतीं हैं. केस सालों चलता है. इससे परेशान वादी साफ कहते हैं कि हमें परिवारिक न्यायालय में तलाक के लिए नहीं आना चाहिए था. लाखों की संख्या में केस पेंडिंग हैं.
फैमिली कोर्ट में ज्यादातर केस तलाक, बच्चे की कस्टडी, गुजारा भत्ता, घरेलू हिंसा से संबंधित आते हैं. इनमें से ज्यादातर न्यूली मैरिड कपल होते हैं या फिर जिन्होंने एक साथ 30 साल बिता लिए है, उनके तलाक के केस आते हैं. दोनों ही बातों में काफी अंतर है. वकीलों का कहना है कि जो रिश्ते टूट रहे हैं, उनके पीछे वजह बहुत छोटी होती है. आजकल ज्यादातर तलाक के कारणों में इंटरनेट की बड़ी भूमिका है.
कोरोना की तीसरी लहर आने के बाद कोर्ट दो महीने से बंद था. ऑनलाइन कोर्ट चल रहे थे. अब कोर्ट खुल चुके हैं. वकील सिद्धांत कुमार ने बताया कि फैमिली कोर्ट में जो मामले आते हैं, उनमें कोई समानता नहीं होती. वहीं वरिष्ठ वकील घनश्याम बताते हैं कि वैसे तो पारिवारिक न्यायालय में तमाम तरीके के केस हैं. बच्चे की कस्टडी का केस, गुजारा भत्ते का केस और तलाक का केस. इनमें अजीबोगरीब केस तलाक से जुड़े हुए ही आते हैं. इसकी वजह सुनकर हम खुद हैरान हो जाते हैं. बताया कि फरवरी में उनके पास 6 केस आ चुके हैं. कुछ मामले वह हैं जो लव मैरिज के होते हैं. इनमें एक महीने बाद ही डाइवोर्स के लिए फाइल कर दिया गया. इसके पीछे की प्रमुख वजह ईगो है. न लड़का झुकना चाहता है और न लड़की. फरवरी में लगभग 700 से अधिक केस फाइल हुए हैं.
अधिवक्ता घनश्याम बताते हैं कि साल 2018 से पहले सिर्फ दो कोर्ट परिवारिक न्यायालय में थे लेकिन कोविड से पहले नौ पारिवारिक कोर्ट और बने. वर्तमान में फैमिली कोर्ट में 11 कोर्ट हैं. इसमें से केवल सात कोर्ट चल रहीं हैं. फिलहाल सारे केस पेंडिंग हैं. तारीखें बदलती रहतीं हैं. उनके पास कई केस करीब नौ सालों से चल रहे हैं जिसका फैसला आज तक नहीं हुआ है. वकील सिद्धांत कुमार बताते हैं कि 30 सालों के अनुभव में ज्यादातर कोशिश रही कि पति-पत्नी का समझौता करा दिया जाए. जब बात ज्यादा बिगड़ जाती है या आपसी मतभेद ज्यादा हो जाता है. कोरोना काल में घरेलू हिंसा के मामले ज्यादा दर्ज हुए हैं. इस काल में जब पति-पत्नियों ने घर पर ज्यादा समय बिताया, उसी बीच छोटी-छोटी बातों पर नोकझोंक होने से ऐसे मामले सामने आए. कोर्ट खुलते ही तलाक के लिए लोग आने लगे हैं. समझौते की जगह लोगों ने तलाक को ज्यादा प्राथमिकता दी है.