लखनऊ : उत्तर प्रदेश में भूगर्भ जल स्तर लगातार गिर रहा है और जल शक्ति विभाग केवल आंकड़े ही प्रस्तुत कर रहा है. भूगर्भ जल दोहन को लेकर केंद्र सरकार की सिफारिशों का पालन नहीं किया जा रहा है. घरेलू स्तर पर की जा रही बोरिंग को लेकर अब तक कोई कड़े नियम नहीं बनाए गए हैं. जिसकी वजह से लगातार जल दोहन हो रहा है.
जल शक्ति विभाग की ओर से दावा किया गया है कि अब कम्प्यूटर की स्क्रीन बताएगी कि आपके इलाके में कितना पानी का दोहन हो रहा है. आप जिस क्षेत्र में रहते हैं वहां का भूजल स्तर क्या है. विभाग भूजल को संजोने के लिए नई तकनीक अपना रहा है. इसके कारगर परिणाम सामने आए हैं. किसी भी समय किसी भी इलाके के भूजल स्तर की जानकारी आसानी से मिल रही है. यह तकनीक डिजिटल वाटर लेवल रिकार्डर से जुड़ी है. जो विकासखंडों में बोरिंग करके लगाए गये पीजोमीटर (पानी नापने का यंत्र) के साथ जोड़े गये हैं. यह पहला मौका है जब यूपी में भूजल की स्थिति को संभालने के लिए तकनीक का इस्तेमाल तेजी से अपनाया जा रहा है.
डिजिटल वाटर लेवल रिकार्डर स्थापित :भूगर्भ जल विभाग प्रदेश भर में अभी तक 1320 डिजिटल वाटर लेवल रिकार्डर स्थापित कर चुका है. प्रदेश सरकार की 100 दिनों की कार्ययोजना को पूरा करते हुए 50 और नए यंत्र यूपी में लगाए जा रहे हैं. बुंदेलखंड और विंध्य क्षेत्र पर अधिक फोकस है. यहां जल जीवन मिशन की योजना से शुद्ध पेयजल आपूर्ति की जा रही है. बूंद-बूंद भूजल को संजोने के अभियान भी चल रहे हैं. डिजिटल वाटर लेवल रिकार्डर के आंकड़ों के आधार पर विभाग विकासखंडों को अति दोहित, क्रिटिकल, सेमी क्रिटिकल और सुरक्षित श्रेणी में बांटेगा. भविष्य में होने वाले पानी संकट को संभालने के लिए प्रभावी योजनाएं बनाएगा.
चलाया जा रहा अभियान :डिजिटल वाटर लेवल रिकार्डर प्रेशर सेंसर तकनीक पर आधारित है. यह तकनीक भूजल स्तर के दबाब को उसकी गहराई में परिवर्तित करके आंकड़े देती है. मशीन में लगी चिप से ऑनलाइन वाटर लेवल की जानकारी सीधे कम्प्यूटर पर देखी जा सकती है. अमृत सरोवर योजना, तालाब, कुंए, जलाशयों का पुनरुद्धार, नदियों का संरक्षण, रेन वाटर हार्वेस्टिंग जैसी तमाम उपयोगी योजनाओं को जन-जन से जोड़ने का अभियान चलाया जा रहा है.
यह है सच्चाई :प्रदेश के ग्रामीण एवं नगरीय क्षेत्रों में स्थापित 5795 हाइड्रोग्राफ स्टेशन (निरीक्षण कूप एवं पीजोमीटर) पर प्रत्येक वर्ष प्री एवं पोस्ट मानसून सहित कुल 6 बार जल स्तर मापन का कार्य किया जाता है. प्रदेश में विभिन्न स्थलों पर जल स्तर में सामान्यत काफी भिन्नता पायी गयी है और यह जलस्तर 2 मी. से 30 मी. अथवा अधिक गहराई पर भूतल से नीचे निरीक्षित किया जाता रहा है. शारदा सहायक कैनाल कमांड क्षेत्र में जलस्तर 2 मी से भी कम निरीक्षित किया गया है, जबकि गंगा के किनारे प्राकृतिक तटबंधी वाले क्षेत्रों में जलस्तर 20 मी. गहराई पर पाया गया है.
सबसे अधिक गहराई वाला जलस्तर बेतवा और यमुना नदी की घाटियों में पाया गया है. जिनमें आगरा, इटावा, हमीरपुर, जालौन, बांदा, इलाहाबाद और झांसी जनपद सम्मिलित हैं. यमुना नदी के किनारे जलस्तर सबसे अधिक गहराई भूतल से 40 मी तक मापी गयी है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बड़े भूभाग में जलस्तर अपेक्षाकृत अधिक गहराई पर उपलब्ध है. प्रदेश के कुल 75 जनपदों में 69 जनपदों के 456 विकास खंडों में वर्ष 1991 के सापेक्ष वर्ष 2005 में प्री-मानसून अवधि के भूजल स्तर आकड़ों का तुलनात्मक अध्ययन किया गया. इस अध्ययन के निष्कर्षों के आधार पर 1 से 70 सेमी. प्रतिवर्ष तक की भूजल स्तर गिरावट दर्ज हुयी है. लखनऊ से लेकर बुंदेलखंड तक भूगर्भ जल स्तर लगातार गिर रहा है और विभाग केवल नए आंकड़े प्रस्तुत करने भर तक ही सीमित है.