लखनऊ:उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत नियामक आयोग (Uttar Pradesh Electricity Regulatory Commission) के चेयरमैन आरपी सिंह, सदस्य कौशल किशोर शर्मा और वीके श्रीवास्तव ने उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन (Uttar Pradesh Power Corporation Limited) की तरफ से आठ मार्च को दाखिल वार्षिक राजस्व आवश्यकता (ARR) को बिना टैरिफ प्रस्ताव के स्वीकार कर लिया.
ट्रांसमिशन और नोएडा पावर कंपनी का भी एआरआर (ARR) स्वीकार किया गया है. अब प्रदेश में बिजली दर पर सुनवाई बहुत जल्द शुरू होगी. सबसे पहले आयोग के आदेशानुसार बिजली कंपनियों को वार्षिक राजस्व आवश्यकता (ARR) संबंधित सभी आंकड़े तीन दिन में समाचार पत्रों में प्रकाशित कराने होंगे.
इसके बाद प्रदेश के सभी विद्युत उपभोक्ताओं और पक्षों को उस पर 15 दिन में आपत्तियां और सुझाव दाखिल करने का समय दिया जाएगा. इसके बाद विद्युत नियामक आयोग के आदेश पर बिजली दर की सुनवाई शुरू हो जाएगी. दरअसल, विद्युत अधिनियम 2003 के प्रावधानों के अनुसार विद्युत नियामक आयोग के वार्षिक राजस्व आवश्यकता से स्वीकार किए जाने के अधिकतम 120 दिन के अंदर नई बिजली दर घोषित करना होता है.
इस बार बिजली कंपनियों ने कुल वितरण हानियां लगभग 17 प्रतिशत हैं. सभी बिजली कंपनियों का वार्षिक राजस्व आवश्यकता (ARR) लगभग 85,500 करोड़ रुपये है. बिजली कंपनियों का गैप लगभग 6700 करोड़ दिखाया गया है. उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा है कि अब पूरी तरह से सिद्ध हो गया है कि प्रदेश की बिजली कंपनियां उपभोक्ता परिषद की बिजली दरों में कमी की याचिका पर कोई जवाब नहीं देंगी, इसलिए विद्युत नियामक आयोग की जिम्मेदारी बनती है कि वह प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओं का बिजली कंपनियों पर निकल रहे 20,596 करोड़ रुपए के एवज में बिजली दरों को कम करें.
उपभोक्ता परिषद पूरी तैयारी और विधिक सवालों के साथ सभी बिजली कंपनियों से अपनी विधिक लड़ाई जारी रखने के लिए तैयार है. आने वाले समय में उपभोक्ता परिषद साक्ष्यों और सबूतों के आधार पर बिजली कंपनियों की पोल खोलते हुए वह सभी दस्तावेज पेश करेगा. इससे अपने आप साबित हो जाएगा कि प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओं की बिजली दरों में आयोग को बिना देरी के कमी करके प्रदेश की जनता को उसका हक दिलाना चाहिए.
उपभोक्ता परिषद अध्यक्ष ने कहा कि परिषद बहुत जल्द ही वार्षिक राजस्व आवश्यकता और सभी मापदंडों का अध्ययन करने के बाद अपनी संवैधानिक लडाई को आगे बढ़ाएगा. वह दिन दूर नहीं जब उपभोक्ता परिषद की दलीलों के सामने बिजली कंपनियों की चलने वाली नहीं है.
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सबसे बड़ा चौंकाने वाला मामला यह रहा कि अभी तक बार-बार हस्तक्षेप करने की मांग करने के बावजूद उत्तर प्रदेश सरकार प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओं के पक्ष में नहीं खड़ी हुई. अब भी समय है प्रदेश के मुख्यमंत्री को प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओं की बिजली दरों में कमी कराने के लिए विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 108 के तहत विद्युत नियामक आयोग को निर्देश देकर बिजली दरों में कमी कराने का रास्ता साफ करना चाहिए.
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