लखनऊ: उत्तर प्रदेश की बिजली कंपनियों की तरफ से दाखिल वार्षिक राजस्व आवश्यकता वर्ष 2022-23 स्लैब परिवर्तन को लेकर बैठक की गई. पश्चिमांचल दक्षिणांचल व केस्को कानपुर की बिजली दर संबंधी सार्वजनिक सुनवाई मंगलवार को वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए संपन्न हुई. इस दौरान विद्युत नियामक आयोग के चेयरमैन आरपी सिंह, सदस्य कौशलराज शर्मा व वीके श्रीवास्तव मौजूद रहे. बैठक में सभी बिजली कंपनियों के प्रबंध निदेशक, पावर काॅरपोरेशन के प्रबंध निदेशक सहित सैकड़ों विद्युत उपभोक्ता भी शामिल हुए.
इस दौरान सभी बिजली कंपनियों के प्रबंध निदेशकों ने अपनी-अपनी बिजली कंपनी का प्रस्तुतीकरण वार्षिक राजस्व आवश्यकता पर किया. इसके बाद पावर काॅरपोरेशन की तरफ से स्लैब परिवर्तन का जैसे ही प्रस्तुतीकरण शुरू हुआ विद्युत नियामक आयोग के चेयरमैन आरपी सिंह ने तल्ख टिप्पणी करते हुए उसे रोक दिया. उन्होंने कहा जब समाचार पत्रों में इसका विज्ञापन नहीं है, इसमें दरें नहीं भरी गई हैं तो इसको दिखाने का क्या मतलब? इस पर उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि इससे यह साबित हो गया कि विद्युत नियामक आयोग किसी भी असंवैधानिक कार्रवाई को आगे नहीं बढ़ने देगा.
दरों में होनी चाहिए कमी:इस दौरान उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष व राज्य सलाहकार समिति के सदस्य अवधेश कुमार वर्मा ने वर्ष 2022-23 के वार्षिक राजस्व आवश्यकता (annual revenue requirement) पर कहा कि बिजली कंपनियों द्वारा जो कुल एआरआर दाखिल किया गया है वह लगभग 84526 करोड़ का है. गैप लगभग 6762 करोड़ का दिखाया गया है. बिजनेस प्लान में विद्युत नियामक आयोग ने 10.67 प्रतिशत वितरण हानियां वर्ष 2022-23 के लिए तय कीं, लेकिन उसके विपरीत बिजली कंपनियों ने कुल वितरण हानियां 17.5 प्रतिशत दिखाई हैं जो गलत है. वर्तमान में बिजली कंपनियों पर प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओं का लगभग 22045 करोड़ रुपए निकल रहा है. ऐसे में दरों में कमी होनी चाहिए.
खारिज की जानी चाहिए मांग : उपभोक्ता परिषद ने आयोग के सामने सुप्रीम कोर्ट की रूलिंग अजीत कुमार वर्सेस स्टेट ऑफ उड़ीसा और कमलेश कुमार वर्सेस मायावती के केस का हवाला देते हुए कहा कि विद्युत नियामक आयोग जो पहले फैसला सुना चुका है ऐसे में वह स्वयं अपने ही निर्णय पर पुनर्विचार नहीं कर सकता. सुप्रीम कोर्ट ने इन दोनों मामलों में केवल किसी मिस्टेक या टाइपिंग गलती पर ही पुनर्विचार की बात कही है. ऐसे में बिजली कंपनियों का रेगुलेटरी असेट पर पुनर्विचार की मांग करना सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था के विपरीत है, जिसे खारिज किया जाना चाहिए. उपभोक्ता परिषद ने बिजली कंपनियों की तरफ से दाखिल स्लैब परिवर्तन पर बात रखते हुए कहा कि जिस व्यवस्था को विद्युत नियामक आयोग और राज्य सलाहकार समिति द्वारा दो बार खारिज किया जा चुका है और कुछ निर्देश के साथ समाचार पत्रों में विज्ञापन के बाद ही सुनवाई की बात कही है, ऐसे में बिना समाचार पत्रों में विज्ञापन की इस मुद्दे पर सुनवाई की बात करना आयोग की अवमानना का मामला बनता है.