लखनऊ. चारबाग रेलवे स्टेशन (Charbagh railway station) पर बने पार्सल घर में सामान की बुकिंग तो हो रही है, लेकिन उसके लोडिंग व अनलोडिंग के लिए पोर्टर नहीं होने से परेशानियां खड़ी हो गई हैं. कुल 166 पदों पर पोर्टर होने चाहिए, लेकिन महज 61 पोर्टर काम कर रहे हैं. जिसमें 80 फीसद बुजुर्ग हो चुके हैं. ऐसे में रेलवे का काम प्रभावित हो रहा है और उन्हें प्राइवेट पोर्टरों से मनुहार कर काम करवाना पड़ रहा है.
चारबाग रेलवे स्टेशन (Charbagh railway station) पर बने पार्सल घर में बड़ी मात्रा में बुक किया हुआ सामान रखा है. पार्सल भेजने के लिए यहां पर बुकिंग हो चुकी है, लेकिन लोडिंग की समस्या है. लोडिंग और अनलोडिंग का काम पोर्टरों के कंधे पर होता है, लेकिन रेलवे पोर्टरों की बड़ी कमी से जूझ रहा है. ऐसे में स्टेशन पर सामान उतारने और चढ़ाने में भी बड़ी दिक्कतों का सामना रेलवे के जिम्मेदारों को करना पड़ रहा है. पार्सल आगत और निर्गत में बुकिंग का काफी सामान ट्रेनों में लोड करने और ट्रेनों से अनलोड होने के बाद रखा हुआ है. रेलवे के पास पोर्टर न होने से प्राइवेट पोर्टरों का सहारा लेकर किसी तरह काम चलाया जा रहा है. इससे लोगों को बुक किया हुआ सामान मिलने में भी देरी हो रही है.
जानकारी देते संवाददाता अखिल पांडेय 1994 के बाद से नहीं हुई भर्ती :1994 से रेलवे में पोर्टरों की भर्ती ही नहीं हुई है. उस समय कुल संख्या 166 थी धीरे-धीरे इनमें से पोर्टर रिटायर होते चले गए और अब तकरीबन 28 साल बाद पोर्टरों की संख्या सिर्फ 61 रह गई है. रेलवे के अधिकारी बताते हैं कि तमाम ऐसे भी पोर्टर हैं जो रेलवे में भर्ती हुए थे, लेकिन उन्हें निकाल दिया गया था. जिसके बाद वह कोर्ट चले गए और आज तक नौकरी में वापसी के लिए वह श्रम विभाग में मुकदमा लड़ रहे हैं.
कोई शुगर की समस्या से तो कोई ब्लड प्रेशर से ग्रसित :कुल मिलाकर जो पांच दर्जन पोर्टर हैं उनमें से अधिकतर पोर्टरों की उम्र 55 साल से ऊपर है. कोई शुगर का पेसेंट है तो कोई ब्लड प्रेशर की समस्या से जूझ रहा है. अन्य तरह की तमाम बीमारियां इन वोटरों को घेरे हुए हैं, आए दिन कुछ की तबीयत खराब हो जाती है तो समान लोड और अनलोड करने की समस्या और भी गंभीर हो जाती है. बीमारी से ग्रसित पोर्टरों से लोडिंग अनलोडिंग का काम भी सही से नहीं हो पा रहा है. दो से तीन पोर्टर एक ही सामान को उतारने और चढ़ाने के लिए लग जाते हैं, तब जाकर समाना लोड या अनलोड हो पाता है. अब इनमें से भी कई पोर्टर रिटायर होने के कगार पर हैं. लिहाजा, यह संख्या आने वाले दिनों में और भी कम हो जाएगी.
लीज पर दे दिया गया काम :रेलवे में वोटरों की समस्या है. लिहाजा, यह काम भी लीज पर दिया जा रहा है. प्राइवेट पोर्टरों के सहारे अब पार्सल बुकिंग का काम संपन्न कराया जा रहा है. कई ट्रेनों को लीज पर दिए जाने से प्राइवेट फर्मों ने पार्सल बुकिंग के लिए इन्हीं ट्रेनों में व्यवस्था कर रखी है. इससे रेलवे को थोड़ी राहत जरूर मिली है, लेकिन प्राइवेटाइजेशन लगातार हर क्षेत्र में बढ़ ही रहा है.
असम और भुवनेश्वर की ट्रेनों में ज्यादा दिक्कत :रेलवे के जिम्मेदार बताते हैं कि अन्य ट्रेनों में तो पार्सल सही समय पर पहुंचाने में कम समस्या आ रही है, लेकिन असम और उड़ीसा की तरफ जाने वाली ट्रेनों की संख्या काफी कम है, ऐसे में जो लोग यहां के लिए ट्रेनों के जरिए सामान भेजने की बुकिंग कराते हैं उस सामान को पहुंचाने में देरी होती है. कभी दो दिन तो कभी सप्ताह भर भी ज्यादा लग जाता है तब सामान पहुंच पाता है. खासकर डिब्रूगढ़ सामान भेजने के लिए आर्मीमैन बुकिंग कराते हैं, लेकिन ट्रेनों का संकट होने से सही समय पर पार्सल पहुंच नहीं पाता है.
पार्सल बुक कराने के बाद पहले जहां लोगों को अपना सामान कब तक आएगा यह पता करने के लिए बार-बार स्टेशन आना पड़ता था, लेकिन अब उनकी इस समस्या का समाधान जरूर हो गया है. अब जैसे ही सामान बुक होता है और अनलोड होता है वैसे ही संबंधित व्यक्ति के पास मैसेज पहुंच जाता है. उसके बाद सामान बुक कराने वाला व्यक्ति आकर अपना सामान रिसीव कर लेता है.
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उत्तर रेलवे लखनऊ मंडल के सीनियर डीसीएम (फ्रेट) राहुल का कहना है कि कई ट्रेनों को लीज पर दे दिया गया है. जिससे प्राइवेट पार्टीज भी सामान बुक करके भेजते हैं. हां ये जरूर है कि रेलवे में पोर्टरों की संख्या काफी कम हो गई है. इनमें से ज्यादातर बुजुर्ग भी हैं तो रेलवे के सामने सामान लोड अनलोड करने में समस्या आ रही है.
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