लखनऊ: समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव (Samajwadi Party President Akhilesh Yadav) का गठबंधन टूट चुका है. अब उनके गठबंधन में सिर्फ राष्ट्रीय लोक दल ही बचा है. सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष वह अपने चाचा शिवपाल सिंह यादव को अखिलेश यादव (Rashtriya Lok Dal) ने स्वतंत्र कर दिया है और एक तरह से शिवपाल सिंह यादव और ओमप्रकाश राजभर अपनी नई सियासी राह की तलाश में आगे भी बढ़ चुके हैं.
ऐसे में अब सबसे बड़ा सियासी सवाल यह है कि, अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश में अपनी साइकिल को कैसे मजबूत करेंगे. अब कैसे अपनी सियासी राह पर आगे बढ़ेंगे. समाजवादी पार्टी इस समय अपना सदस्यता अभियान चला रही है. 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले साइकिल की डगर कैसे अखिलेश यादव मजबूत करेंगे?
राजनीतिक विश्लेषक दिलीप अग्निहोत्री अखिलेश फिलहाल राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष जयंत चौधरी को मुख्य रूप से साथ में लेकर अपना सियासी गठबंधन आगे बढ़ाते हुए नजर आ रहे हैं. उन्होंने खुद से कहा भी है कि फिलहाल वह रालोद और अन्य छोटी पार्टियों में शामिल जनवादी पार्टी सोशलिस्ट के साथ ही आगे बढ़ेंगे और अपनी समाजवादी पार्टी की चुनावी तैयारियों को आगे बढ़ाएंगे. समाजवादी पार्टी के सूत्र बताते हैं कि अखिलेश यादव अब अपनी सियासी जमीन मजबूत करने के लिए जल्द ही सड़क पर उतरने वाले हैं. समाजवादी पार्टी संगठन में तमाम स्तर पर बड़े अभियान चलाए जाने को लेकर अखिलेश यादव पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से बातचीत कर रहे हैं.
इसी क्रम में उन्होंने पिछले दिनों पार्टी के सदस्यता अभियान की शुरुआत भी की है और बड़े स्तर पर समाजवादी पार्टी के नेता कार्यकर्ता पदाधिकारियों की तरफ से समाज के सभी वर्गों को जोड़ने का काम किया जा रहा है. समाजवादी पार्टी के एक राष्ट्रीय पदाधिकारी ने नाम लिखने की शर्त पर बताया कि अखिलेश यादव जल्द ही सड़क पर संघर्ष करते हुए नजर आएंगे. उनको लेकर जो तमाम तरह की बातें कही गई हैं कि वह ट्विटर पर सक्रिय है और जमीन पर उतर कर काम नहीं कर रहे हैं. वह धारणा जल्द ही दूर हो जाएगी.
अखिलेश यादव खुलकर सड़क पर उतरेंगे. राज्य सरकार यानी योगी आदित्यनाथ सरकार की जनविरोधी नीतियों पर हमला बोलेंगे. इसके अलावा समाजवादी पार्टी का जो जातीयसमीकरण के आधार पर काम करने का तरीका है, उसे भी आगे बढ़ाएंगे और मुस्लिम यादव समीकरण को आगे लेकर चलेंगे. पिछड़ा वर्ग में पिछड़ी जातियों पर भी फोकस करते हुए समाजवादी पार्टी के पिछड़े नेताओं को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी देंगे.
इसे भी पढ़ेंःएनसीआर में यूपी के लोगों को नहीं देना होगा रोड टैक्स, कैबिनेट बैठक में 9 प्रस्तावों को मिली मंजूरी
भारतीय जनता पार्टी की सरकार से इस्तीफा देकर समाजवादी पार्टी में शामिल होने वाले पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य के बहाने वह पिछड़ी जातियों को समाजवादी पार्टी से जुड़ने की रणनीति बना रहे हैं. इसके अलावा मुस्लिम -यादव समीकरण और दलितों को साथ लेकर चलने को लेकर वह आने वाले कुछ दिनों में व्यापक स्तर पर अपनी रणनीति पर आगे बढ़ते हुए नजर आएंगे.
समाजवादी पार्टी के सूत्रों का कहना है कि केंद्र और राज्य सरकार की जन विरोधी नीतियों को उजागर करने का काम अखिलेश यादव जल्दी करेंगे और सड़क पर उतरते हुए ठीक से दिखाई देंगे. हर किसी मुद्दे को लेकर वह जनता के बीच जाएंगे और सरकार की सच्चाई जनता को बताएंगे.
2024 के लोकसभा चुनाव से पहले अखिलेश यादव की कोशिश है कि वह अपने स्तर पर समाजवादी पार्टी संगठन को हर स्तर पर मजबूत करें. कार्यकर्ताओं और पार्टी के समर्थकों के दम पर अपनी पूरी योजना बनाने का काम करेंगे और सदस्यता अभियान के माध्यम से समाज के सभी वर्गों को जोड़कर समाजवादी पार्टी सभी वर्ग के लोगों तक पहुंचाने के लिए समाजवादी पार्टी तमाम अन्य तरह के अभियान जल्द ही शुरू करने वाली है.
राजनीतिक विश्लेषक दिलीप अग्निहोत्री (Political analyst Dilip Agnihotri) ने बताया कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव का गठबंधन सम्मान के साथ शुरू होता है और बिडंबना यह कि सम्मान के नाम पर ही उसका समापन हो जाता है. विधानसभा चुनाव के पहले उन्होंने शिवपाल यादव और ओम प्रकाश राजभर को पूरा सम्मान देने का वादा किया था. चुनाव के चार महीने बाद इन दोनों सहयोगियों को पत्र लिखा गया कि जहां सम्मान मिले, वहां जाने के लिए स्वतंत्र हैं.
इसी प्रकार पहले कांग्रेस बाद में बसपा के साथ सम्मान जनक गठबन्धन किया था. बाद में यहीं असम्मान का कारण बना था. शिवपाल यादव को गठबंधन विधायक दल की पहली बैठक में नहीं बुलाया गया था. ओम प्रकाश राजभर को राष्ट्रपति निर्वाचन संबन्धी बैठक और पत्रकार वार्ता में आमंत्रित नहीं किया गया. कुछ समय पहले ओम प्रकाश राजभर ने अखिलेश को नसीहत दी थी.
उनका कहना था कि अखिलेश को वातानुकूलित कक्ष से बाहर निकलना चाहिए. शिवपाल यादव ने पुराने पेपर की कटिंग ट्वीट की. इसमें यशवन्त सिन्हा ने मुलायम सिंह को पाकिस्तानी गुप्तचर संस्था का एजेंट बताया था. शिवपाल ने कहा था कि मुलायम सिंह यादव का अपमान करने वाले को समर्थन देने पर अखिलेश को पुनर्विचार करना चाहिए. पार्टी के भीतर आजम खान ने भी तंज कसा.
उन्होंने कहा कि अखिलेश को कभी धूप में खड़े नहीं देखा. यह सब प्रसंग अखिलेश के लिए अप्रिय है. कहते हैं कि जयन्त चौधरी को राज्यसभा में भेजा गया. अन्यथा वह भी इस रास्ते पर जा सकते थे. यह बातें इसलिए अधिक महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि दो वर्ष बाद लोकसभा चुनाव होने है. इसमें अखिलेश को कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है. उन्हें एक बेहतर रणनीति बनाकर संगठन को मजबूत करके काम करना होगा.
ऐसी ही जरूरी और विश्वसनीय खबरों के लिए डाउनलोड करें ईटीवी भारत ऐप