लखनऊ: हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने बलरामपुर में कोरोना जांच के लिए आरटी-पीसीआर की स्थानीय स्तर पर सुविधा व स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर करने की मांग को लेकर दाखिल एक जनहित याचिका को खारिज कर दिया है. न्यायालय ने पाया कि उक्त याचिका महज आरोप लगाते हुए दाखिल कर दी गई है. याची को जो जरूरी आंकड़े देने चाहिए थे, वे याचिका में नहीं दिये गए हैं.
यह आदेश न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा व न्यायमूर्ति जसप्रीत सिंह की खंडपीठ ने बलरामपुर निवासी सैयद वकार हुसैन रिजवी की याचिका पर दिया. याची का कहना था कि बलरामपुर और आस-पास के जनपदों में कोविड-19 के जांच की कोई व्यवस्था नहीं है. आरटी-पीसीआर जांच के लिए सैंपल लेने के बाद उन्हें लखनऊ व अन्य बड़े शहरों में भेजा जाता है. ऐसे में जांच रिपोर्ट आने में एक सप्ताह या अधिक का समय लग जाता है, जो मरीजों के लिए ठीक नहीं होता.
याचिका में यह भी कहा गया कि बलरामपुर के उतरौला में कोविड-19 की संभावित तीसरी लहर के लिए चिकित्सा व स्वास्थ्य सुविधाएं नाकाफी हैं. ऐसे में राज्य सरकार को आदेश दिया जाए कि वह इस सम्बंध में सुविधाओं को बेहतर करने के लिए कदम उठाए. याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने याची के अधिवक्ता से पूछा कि याचिका में असुविधाओं की जो बात कही गई है. उसका कोई विश्वसनीय आंकड़ा उनके पास उपलब्ध है, जिस पर न्यायालय भी भरोसा कर सकें.
हालांकि याची के अधिवक्ता इसका जवाब न दे सकें. न्यायालय ने जिला अस्पताल व प्राथमिक तथा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों के बाबत पूछा, लेकिन इस प्रश्न का भी उत्तर न मिलने पर न्यायालय ने कहा कि याचिका पूरी तरह अस्पष्ट है. न्यायालय के रुख को देखते हुए, अधिवक्ता ने याचिका वापस लेने की अनुमति देने का अनुरोध किया, जिसे मंजूर करते हुए न्यायालय ने याचिका को खारिज कर दिया.
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