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शुरुआत के छह माह में इलाज से ठीक हो सकते हैं सीजोफ्रीनिया से पीड़ित मरीज - awareness program

डॉ. प्रांजल अग्रवाल ने कहा कि सीजोफ्रीनिया गंभीर मानसिक रोग है. राहत की बात यह है कि बीमारी की शुरुआत में इलाज कराने से मर्ज पूरी तरह से ठीक हो सकता है. यह इलाज छह माह चलता है.

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन

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Published : May 25, 2022, 4:39 PM IST

लखनऊ : शक, गंदगी जैसे लक्षण किसी में पनप आएं तो इसे गंभीरता से लें. यह गंभीर मानसिक रोग के शुरुआती लक्षण हो सकते हैं. मानसिक बीमारी सीजोफ्रीनिया का समय पर इलाज कराएं. मर्ज पूरी तरह से ठीक हो सकता है. मरीज सामान्य जीवन जी सकता है. मानसिक रोग विशेषज्ञ की सलाह पर इलाज शुरू कर देना चाहिए. यह जानकारी इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के वरिष्ठ सदस्य व मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रांजल अग्रवाल ने दी. वह मंगलवार को सीजोफ्रीनिया दिवस पर रिवर बैंक कॉलोनी स्थित आईएमए भवन में जागरुकता कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे.

डॉ. प्रांजल अग्रवाल ने कहा कि सीजोफ्रीनिया गंभीर मानसिक रोग है. राहत की बात यह है कि बीमारी की शुरुआत में इलाज कराने से मर्ज पूरी तरह से ठीक हो सकता है. यह इलाज छह माह चलता है. इलाज में देरी से मर्ज गंभीर हो जाता है. 50 से 60 प्रतिशत मरीजों को दो साल तक दवाएं खानी पड़ती हैं. यदि बीमारी बहुत पुरानी हो गई है तो मरीज को उम्र भर दवा खानी पड़ सकती है. दवाओं संग मरीज एकदम सामान्य जीवन जी सकता है. उन्होंने बताया कि सीजोफ्रीनिया में मरीज को भ्रम होता है. 70 से 80 फीसदी मरीजों को तरह-तरह की आवाजें सुनाईं देतीं हैं. पृथ्वी पर ऐलियन आ गए हैं जो मुझे नुकसान पहुंचा सकते हैं. ऐसे लक्षण नजर आने पर तुरंत इलाज शुरू कर देना चाहिए.

प्रसूताओं को घेर लेता है मानसिक रोग : डॉ. शाश्वत सक्सेना ने कहा कि इलाज संग योग, ध्यान भी जरूरी है. इससे मरीज में दोबारा बीमारी के पनपने का खतरा कम हो जाता है. उन्होंने बताया कि प्रसव के बाद महिलाओं में बीमारी पनप आती है. इसे पोस्टपार्टम सीजोफ्रीनिया कहते हैं. इससे प्रसूता को लगता है बच्चे की वजह से वह परेशानी में पड़ गई है. उसका पति अब उस पर ध्यान नहीं देगा. इन विचारों के बीच प्रसूता अपने शिशु की सेहत का ख्याल नहीं रखती है. दवाओं से इसका सटीक इलाज संभव है.

दीवार पर कान लगाकर सुनें तो संजीदा हो जाएं : डॉ. दीपतांसु ने कहा कि कुछ मरीज दीवार में कान लगाकर सुनते हैं. उन्हें लगता है कि दीवार के पीछे लोग उनकी बात कर रहे हैं. यह बीमारी की गंभीर अवस्था होती है. इलाज से काबू में आ सकती है. कार्यक्रम में आईएमए लखनऊ के अध्यक्ष डॉ. मनीष टंडन और सचिव डॉ. संजय सक्सेना मौजूद रहे.

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एरा मेडिकल कॉलेज में थायराइड पर कार्यशाला :थायराइड पर काबू पाने के लिए जीवनशैली में सुधार लाएं. सुबह पैदल टहलें. खान-पान में भी तब्दीली करें. डॉक्टर की सलाह पर भोजन लें. यह सलाह केजीएमयू फिजियोलॉजी विभाग के अध्यक्ष डॉ. नरसिंह वर्मा ने दी. वह मंगलवार को एरा मेडिकल कॉलेज में थायराइड दिवस से पूर्व आयोजित कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे.

डॉ. नरसिंह वर्मा ने कहा कि गले में पिट्यूरिटी ग्रंथि होती है. जो थायराइड हार्मोन के स्राव को काबू में रखती है. व्यक्ति के सोने, जागने और दिन की गतिविधियों के आधार पर थॉयराइड हार्मोन निकलते हैं. यदि व्यक्ति उचित दिनचर्या, सही खाना व शारीरिक श्रम करे तो यह बीमारी आसानी से काबू में आ सकती है. कॉलेज की कुलपति डॉ. फरजाना मेंहदी ने कहा कि थायराइड मरीज शाम सात बजे तक भोजन कर लें. इससे काफी हद तक समस्या काबू में आ सकती है. मेडिसिन विभाग की अध्यक्ष डॉ. जलीज फातिमा ने हाइपरथाइरॉडिज्म एण्ड पल्मोनरी हाइपरटेंशन एंड अनकॉमन प्रेजेन्टेशन विषय पर जानकारी साझा की.

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