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सरकारी अस्पतालों में दवाओं का टोटा, बाहर से खरीदने को मजबूर हैं लोग

लखनऊ के सरकारी अस्पताल में एक रुपये का पर्चा जरूर बन रहा है, लेकिन दवा का खर्च हजारों रुपये का है. आजकल डेंगू का प्रकोप बढ़ रहा है. इन मरीजों को भी अस्पताल के बाहर मौजूद मेडिकल स्टोर से मजबूरन दवाएं खरीदनी पड़ रही हैं.

patients forced to buy medicines from outside medical stores at govt hospital in lucknow
patients forced to buy medicines from outside medical stores at govt hospital in lucknow

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Published : Sep 18, 2021, 4:19 AM IST

लखनऊ:राजधानी के सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर को दिखाने के लिए एक रुपये का पर्चा बनवाना होता है, लेकिन कई दवाएं बाहर के मेडिकल स्टोर से लेनी पड़ती हैं. अस्पताल में इलाज कराने आए कुछ लोगों से बातचीत के दौरान पता चला कि सरकारी अस्पताल में एक रुपये का पर्चा जरूर बन रहा है, लेकिन दवा का खर्च हजारों रुपये का है. ऐसे में गरीब वर्ग के लोगों के लिए समस्या खड़ी हो रही है. महिला अस्पतालों का भी यही हाल है. इन दिनों संचारी रोगों से सैकड़ों लोग परेशान हैं. ऐसे में डेंगू के मरीजों को मजबूरन बाहर की दवा लेनी पड़ रही है.

जानकारी देते सिविल अस्पताल के सीएमएस डॉ. एसके नंदा
प्रदेश के सरकारी अस्पताल दवाओं की कमी से जूझ रहे हैं. नॉर्मल सलाइन, एंटीबॉयोटिक, दिल की बीमारियों, कैल्शियम की दवाओं की भी कमी है. दवा काउंटर पर मरीजों को लंबी लाइन के बाद डॉक्टरों की लिखी आधी दवाएं ही मिल रही हैं. यूपी मेडिकल सप्लाई कॉर्पोरेशन दवाओं की आपूर्ति में फेल हो गया है. बावजूद इसके अस्पताल के सीएमएस को इसकी भनक तक नही रहती. सीएमएस का कहना होता है कि अस्पताल में सभी दवा उपलब्ध है. मरीजों का कहना होता है हर दवा अस्पताल में उपलब्ध नही है. हालांकि सिविल अस्पताल के सीएमएस डॉ एसके नंदा का कहना है कि अभी तक कभी किसी मरीज की दवा को लेकर शिकायत नही आई.



सरकारी अस्पताल में डेंगू के मरीज के तीमारदार नेहा तिवारी ने बताया कि अस्पताल से पैरासिटामाल मिल रही है. कुछ महंगी दवाएं बाहर से खरीद रहे हैं. डॉ का कहना है कि जो दवा अस्पताल से मिले उसे ले लें. बाकी दवा बाहर मेडिकल स्टोर से खरीद लें. नेहा ने बताया कि भाई को डेंगू हुआ है. प्लेटलेट्स बेहद कम थीं. दो दवाएं और ग्लूकोज अस्पताल से दिया गया. तीन दवाएं बाहर से खरीद कर लाए हैं. कुछ अन्य तीमारदारों का कहना है कि पर्चा लेकर दवा काउंटर पर जाते हैं. कुछ दवाइयां मिल जाती हैं और कुछ दवाइयां नहीं मिल पाती हैं, जिन्हें इमरजेंसी में हमें बाहर से ही खरीदना पड़ता है.

सिविल अस्पताल में मौजूद मरीज और तीमारदार



प्रदेश में 200 से अधिक छोटे-बड़े अस्पताल हैं. इन सभी अस्पतालों को पहले स्वास्थ्य महानिदेशालय के केंद्रीय औषधि भंडार (सीएमएसडी) से दवाओं की आपूर्ति होती थी. साल 2018 से केंद्रीय औषधि भंडार की जगह यूपी मेडिकल सप्लाइज कॉर्पोरेशन लिमिटेड बनाकर इसके माध्यम से दवाओं और उपकरणों की आपूर्ति की शुरुआत की गई, लेकिन दो साल बाद भी अस्पतालों में दवाओं की उपलब्धता में दिक्कतें बरकरार हैं.



सिविल अस्पताल के सीएमएस डॉ. एसके नंदा के मुताबिक इस समय संचारी रोग तेजी से फैला है. इसकी वजह से अधिक संख्या में मरीज भी अस्पताल में इलाज के लिए आ रहे हैं. अस्पताल में दवाइयों का संकट है. यह कहना गलत है, क्योंकि कुछ ही दवाएं ऐसी होती हैं, जो अस्पताल में उपलब्ध नहीं होतीं और मरीज को इमरजेंसी में देनी होती हैं. इसके लिए शायद डॉक्टर बाहर से दवा लिख देते होंगे. हालांकि अभी ऐसी कोई जानकारी या शिकायत नहीं मिली है.

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अगर ऐसी कोई शिकायत मिलती है, तो तुरंत इस पर कार्रवाई की जाएगी. इस बारे में हमें खबर इसलिए भी नहीं हो पाती है. क्योंकि अब यूपी मेडिकल सप्लाईज कॉरपोरेशन लिमिटेड अस्पतालों में दवा उपलब्ध कराता है. इसका स्वास्थ्य विभाग के सीएमओ और किसी भी अस्पताल के सीएमएस से कोई लेना नहीं है. इसलिए इसके बारे में अधिक जानकारी यूपी मेडिकल सप्लाईज कॉरपोरेशन लिमिटेड के अधिकारी ही दे सकते हैं. उन्होंने कहा कि ऐसे मुद्दे पर हम तभी कार्रवाई कर सकते हैं, जब कोई हमारे पास शिकायत आएगी.

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