लखनऊः उत्तर प्रदेश विधान परिषद सदन में विपक्ष सरकार को घेर नहीं पाएगा और न ही कठघरे में खड़ा कर पाएगा. दरअसल, विधान परिषद सदन में एक तरफ जहां कांग्रेस पार्टी, बहुजन समाज पार्टी के सदस्यों की संख्या शून्य हो चुकी है, वहीं सपा अपने नेता प्रतिपक्ष का भी पद बचाने के लायक नहीं बची है.
करीब 130 साल बाद फिर ऐसी स्थिति बनी है कि कांग्रेस जो देश की सबसे पुरानी पार्टी कही जाती है, उसका एक भी सदस्य विधान परिषद में नहीं बचा है. विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद कांग्रेस पार्टी के सिर्फ दो विधानसभा सदस्य निर्वाचित हुए थे. ऐसे में विधान परिषद में कांग्रेस पार्टी अपने सदस्य भेजने की स्थिति में नहीं रही. कांग्रेस पार्टी के विधान परिषद सदस्य दीपक सिंह का कार्यकाल भी 26 मई को समाप्त हो चुका है.
जानकारी देते संवाददाता धीरज त्रिपाठी वहीं, बहुजन समाजवादी पार्टी विधानसभा चुनाव में करारी हार का स्वाद चख चुकी है. चुनाव में बसपा का भी सिर्फ एक ही विधायक चुना गया. ऐसी स्थिति में विधान परिषद सदन में भी बसपा की स्थिति शून्य हो गई है. विधान परिषद सदन में समाजवादी पार्टी के नेता प्रतिपक्ष का पद भी समाप्त हो गया है. सपा नेता प्रतिपक्ष संजय लाठर का कार्यकाल समाप्त हो गया है. विधान परिषद में अब सपा के सदस्यों की संख्या भी 10 से कम पहुंच चुकी है. नेता प्रतिपक्ष पद के लिए सदन में 10 सदस्य होना जरूरी है. जिसके चलते अब समाजवादी पार्टी नेता प्रतिपक्ष के पद पर किसी को आसीन नहीं करा पाएगी.
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राजनीतिक विश्लेषक श्रीधर अग्निहोत्री कहते हैं कि विधान परिषद सदन में कांग्रेस और बसपा के सदस्यों की संख्या शून्य हो गई है. जनता के प्रति इन दलों के उपेक्षात्मक रवैया के चलते ही इनका यह हाल हुआ है. सदन में समाजवादी पार्टी के सदस्यों की संख्या भी दस से कम हो गई है. जिससे नेता प्रतिपक्ष का पद भी समाजवादी पार्टी से छिन गया है. ऐसी स्थिति को स्वस्थ लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं माना जाता है. सदन में सत्ता पक्ष के साथ-साथ विपक्षी पार्टियों के सदस्यों की संख्या ठीक होने से जनहित से जुड़े मुद्दों पर बेहतर ढंग से चर्चा और बहस होती है. लेकिन राजनीतिक दलों की अपनी करनी और कथनी के चलते जनता ने इन्हें इस हालत में पहुंचा दिया है.
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