लखनऊ:बसपा शासन में बड़े स्तर का स्मारक घोटाला हुआ था. लगभग 1400 करोड़ के हुए इस घोटाले का मामला हाई कोर्ट पहुंचा था, लेकिन मामले में जांच सुस्त रफ्तार से चल रही थी. इलाहाबाद हाईकोर्ट की सख्ती के बाद अब मामले की जांच तेज हो गयी है. मामले से जुड़े अफसरों से पूछताछ की कवायद शुरू हो गई है. उत्तर प्रदेश सतर्कता अधिष्ठान (विजिलेंस) ने बुधवार को राजकीय निर्माण निगम के एक रिटायर्ड अफसर समेत चार लोगों से पूछताछ की. विजिलेंस सिलसिलेवार 16 और अधिकरियों से पूछताछ करेगी. विभाग को चार सप्ताह में इस मामले में विवेचना पूरी करनी है.
हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा व न्यायमूर्ति सरोज यादव की खंडपीठ ने 1400 करोड़ रुपये के चर्चित स्मारक घोटाले में बसपा सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे बाबू सिंह कुशवाहा के मामले में दर्ज एफआईआर को रद्द करने से इंकार करते हुए मामले की विवेचना चार सप्ताह में पूरा करने के आदेश दिए हैं. बाबू सिंह कुशवाहा की ओर से दायर याचिका में स्मारक घोटाले में वर्ष 2014 में दर्ज एफआईआर को चुनौती दी गई थी. इस एफआईआर में याची के अधिवक्ता की दलील थी कि विवेचना पिछले लगभग सात सालों से चल रही है, लेकिन अब तक याची के खिलाफ कोई भी महत्वपूर्ण साक्ष्य नहीं मिला है.
कोर्ट ने याचिका निस्तारित कर दी. घोटाले की जांच कर रही विजिलेंस ने दो कैबिनेट मंत्री समेत 40 अफसरों को नोटिस दिया था. इनमें से हाल ही में तत्कालीन बसपा सरकार के दो कैबिनेट मंत्रियों नसीमुद्दीन सिद्दीकी और बाबू सिंह कुशवाहा समेत 20 अन्य अफसरों से पूछताछ कर चुकी है. हाईकोर्ट की सख्ती के बाद विजिलेंस ने बुधवार को राजकीय निर्माण निगम यूपीआरएनएन के एक रिटायर्ड अफसर समेत चार लोगों को दफ्तर बुलाकर 4 घंटे पूछताछ की.
विजिलेंस ने रिटायर्ड अफसर से पूछा कि मिर्जापुर से लाए गए पत्थरों को राजस्थान से लाए जाने का दावा करते हुए पत्थरों को दोगुने रेट में खरीदने की क्या मजबूरी थी? अफसरों ने पत्थर को लाने में प्रयुक्त परिवहन के फर्जी बिलों का भुगतान के बारे में पूछा. बीते 2007 को तत्कालीन खनन मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा ने अफसरों को मिर्जापुर सैंड स्टोन के गुलाबी पत्थरों को स्मारकों में लगाने के लिए निर्देश दिए थे. इनके रेट तय करने के लिए गठित क्रय समिति की बैठक हुई थी.