उत्तर प्रदेश

uttar pradesh

ETV Bharat / city

न्यूनतम समान पाठ्यक्रम का लखनऊ विश्वविद्यालय शिक्षक संघ ने किया विरोध, जानिए वजह

उत्तर प्रदेश के राज्य विश्वविद्यालयों में कॉमन मिनिमम सिलेबस का लखनऊ विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (लूटा) (Lucknow University Teachers Association) ने विरोध किया है. लूटा का कहना है कि अगर न्यूनतम समान पाठ्यक्रम लागू हो गया तो विश्वविद्यालय इंटर कॉलेज बन जाएंगे.

न्यूनतम समान पाठ्यक्रम का लखनऊ विश्वविद्यालय शिक्षक संघ ने किया विरोध
न्यूनतम समान पाठ्यक्रम का लखनऊ विश्वविद्यालय शिक्षक संघ ने किया विरोध

By

Published : Jul 17, 2021, 5:38 PM IST

लखनऊ:उत्तर प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. दिनेश शर्मा ने प्रदेश के सभी राज्य विश्वविद्यालयों के लिए कॉमन मिनिमम सिलेबस(Common Minimum Syllabus) तैयार कराया. उनका कहना है कि यह सर्वोत्तम सिलेबस है, जिसे पूरे राज्य में लागू किया जाएगा. लेकिन लखनऊ विश्वविद्यालय जहां से वह खुद प्रोफेसर हैं वहीं इसका विरोध हो रहा है. सरकार के दबाव में विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से तो सभी विभागों को जल्द से जल्द इस कॉमन मिनिमम सिलेबस को स्वीकार कर लागू करने की संस्कृति करने की हिदायत दे दी है, लेकिन शिक्षक इस मुद्दे पर टस से मस नहीं हो रहे हैं. लखनऊ विश्वविद्यालय शिक्षक संघ का कहना है कि किसी भी स्वरूप में इसे लागू नहीं होने दिया जाएगा.


लखनऊ विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (लूटा) (Lucknow University Teachers Association) का कहना है कि वह विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता और उच्च शिक्षा की गुणवत्ता से सरकार को खिलवाड़ नहीं करने देंगे. उसने प्रदेश व्यापी आंदोलन छेड़ने का ऐलान कर दिया है. इस पर रणनीति बनाने के लिए लूटा ने कार्यकारिणी की बैठक भी बुलाई.

इसलिए हो रहा है विरोध

  • लखनऊ विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (लूटा) के अध्यक्ष डॉ. विनीत कुमार वर्मा और महामंत्री ने डॉ. राजेन्द्र वर्मा ने कहा कि दुनिया में किसी भी विश्वविद्यालय का पाठ्यक्रम सरकार नहीं तय करती है. हर जगह विश्वविद्यालय को अपना पाठ्यक्रम चलाने की आजादी दी गई है.
  • प्रदेश सरकार ऐसा कर विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता खत्म कर उच्च शिक्षा की गुणवत्ता बर्बाद कर देना चाहती है. उन्होंने कहा कि जब एक बार लविवि के शिक्षकों ने इसे नाकार दिया है,तो सरकार और कुलपति शिक्षकों से जबरदस्ती क्यों कर रहे हैं.
  • अगर न्यूनतम समान पाठ्यक्रम लागू हो गया तो विश्वविद्यालय इंटर कॉलेज बन जाएंगे.
  • उत्तर प्रदेश राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम के अनुसार शैक्षणिक मामलों में सभी निर्णय लेने का अधिकार विश्वविद्यालयों की एकेडमिक काउंसिल को है.
  • अधिनियम, परिनियम और अध्यादेश में वर्णित व्यवस्था के अनुसार विश्वविद्यालय एवं संबद्ध महाविद्यालयों के लिए पाठ्यक्रम का निर्माण विश्वविद्यालयों के विभागों में विषय विशेष की बोर्ड ऑफ स्टडीज द्वारा किया जाता है. बोर्ड ऑफ स्टडीज में संबंधित विषय के आंतरिक एवं वाह्य विशेषज्ञों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व होता है.
  • विभाग विश्वविद्यालय तथा संबद्ध महाविद्यालयों की आधारभूत संरचना, संसाधनों की उपलब्धता, समय की मांग, शिक्षकों की विशेषज्ञता आदि के दृष्टिगत छात्रों के लिए पाठ्यक्रम का निर्माण करते हैं तथा आवश्यकतानुसार समय-समय पर इसे संशोधित भी करते हैं.

  • विश्वविद्यालय अधिनियम के प्रावधानों के विपरीत कॉमन मिनिमम सिलेबस राज्य सरकार द्वारा तैयार किया गया है और 70% की अनिवार्यता के साथ विश्वविद्यालयों से इसे लागू करने को कहा गया है. जो उचित नहीं है.
  • वर्ष 2020 में देश में शिक्षा के स्तर को उन्नत करने के लिए भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति - 2020 का निर्माण किया गया. राष्ट्रीय शिक्षा नीति के बिंदु 9.3 तथा 11.6 में स्पष्ट रूप से उल्लेखित है कि एनईपी - 2020 के तहत संकाय और संस्थागत स्वायत्तता को बढ़ावा दिया जाएगा. वहीं दूसरी तरफ कॉमन मिनिमम सिलेबस राष्ट्रीय शिक्षा नीति के विपरीत छात्रों के लिए पाठ्यक्रमों की उपलब्धता को सीमित कर देगा. कॉमन मिनिमम सिलेबस से पाठ्यक्रमों में नवाचार और नवसृजन समाप्त हो जायेगा.

  • उच्च शिक्षा विभाग द्वारा जारी पत्र के बिंदु- 4 के अनुसार क्रेडिट ट्रांसफर के लिए सभी विश्वविद्यालयों में सिलेबस समान होना चाहिए. ऐसा भ्रम फैलाया जा रहा है कि कॉमन सिलेबस के बिना राष्ट्रीय शिक्षा नीति को प्रदेश में लागू नहीं किया जा सकता. यहां यह समझना आवश्यक है कि कॉमन सिलेबस और क्रेडिट ट्रांसफर दोनों अलग-अलग विषय हैं. क्रेडिट ट्रांसफर के लिए सभी विश्वविद्यालयों में सिलेबस का समान होना बिल्कुल जरूरी नहीं है. राष्ट्रीय शिक्षा नीति में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है .


    इसे भी पढ़ें:बीएड काउंसलिंग में 32,535 अभ्यर्थियों को मिली सीट

जानिए पूरा मामला

प्रदेश के सभी विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों को आगामी सत्र 2021-2022 से स्नातक स्तर पर राज्य सरकार द्वारा उपलब्ध करवाए गए पाठ्यक्रम का न्यूनतम 70% राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के प्रावधानों के साथ लागू किए जाने के निर्देश शासन द्वारा दिए गए हैं. अब लगातार शिक्षकों और विश्वविद्यालयों पर इसे लागू करने के लिए दबाव बनाया जा रहा है. उप मुख्यमंत्री डॉक्टर दिनेश शर्मा पहले ही घोषणा कर चुके हैं कि नए सत्र से सभी राज्य विश्वविद्यालयों में इसे प्रभावी किया जाएगा. 13 जुलाई को लखनऊ विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से एक आदेश जारी कर इसे जल्द से जल्द विभागों के स्तर पर स्वीकार किए जाने की हिदायत दी गई. जिसके बाद से शिक्षक भड़के हुए हैं.

ABOUT THE AUTHOR

...view details