लखनऊ : उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम (Uttar Pradesh State Road Transport Corporation) की एसी बसें आईं तो थीं सड़क पर चलकर यात्रियों को सुविधा देने के लिए, लेकिन मरम्मत के अभाव में यह बसें डिपो के अंदर ही सड़ रही हैं. लखनऊ का अवध डिपो वातानुकूलित बसों का हब है, लेकिन यहां पर दर्जनों एसी बसें पुर्जे न होने के चलते ठीक ही नहीं हो पा रही हैं. यह बसें ठीक हों तो यात्रियों को सफर में सुविधा मिले. ऐसा ही हाल प्रदेशभर के अलग-अलग डिपो का है. मेंटेनेंस के अभाव में डिपो के अंदर खड़ी बसों से रोडवेज को करोड़ों का नुकसान झेलना पड़ रहा है. हालांकि अब मरम्मत के अभाव में वर्कशॉप में खड़ी ये बसें दुरुस्त होकर सड़क पर संचालित हो सकें, इसके लिए परिवहन निगम के प्रबंध निदेशक ने सभी परिक्षेत्रों का सर्वे कराकर ढाई करोड़ रुपए एकमुश्त भेजने का फैसला लिया है.
गर्मी भर यात्रियों को रोडवेज की एसी बसों के बजाय साधारण बसों में सफर करने के लिए इसलिए मजबूर होना पड़ा क्योंकि एसी बसें खराब होने के बाद डिपो के अंदर ही खड़ी हो गईं. अवध डिपो में दर्जनों की संख्या में खराब खड़ी एसी जनरथ बसें अपनी ही कहानी बयां कर रही हैं. किसी बस का एसी खराब है तो वह महीनों से डिपो के अंदर खड़ी है, किसी के पहिए तो किसी के अन्य कोई पार्ट्स में खराबी आई हुई है. जिससे सड़क पर संचालित होने लायक ही नहीं बची हैं. कई बसें तो ऐसी हैं जो महीनों से मरम्मत कार्य न हो पाने के चलते डिपो के बाहर नहीं जा सकी हैं. परिवहन निगम के सूत्र बताते हैं कि तकरीबन अवध डिपो में ही अकेले करीब तीन दर्जन वातानुकूलित बसें हैं जो कई दिन या कई महीनों से कार्यशाला के अंदर खड़ी हैं और यह धीरे-धीरे कंडम हो रही हैं. काम इस तरह से चलाया जा रहा है कि जो एसी बस खराब होकर डिपो में खड़ी हो रही हैं उन्हीं के पार्ट्स निकालकर दूसरी बस में लगाकर उसे रूट पर रवाना किया जा रहा है. इसका नतीजा यह होता है कि यह बसें बीच रास्ते में ही खराब होने के बाद यात्रियों को आधे मार्ग में छोड़कर वापस कार्यशाला लौट आती हैं. पुर्जों के अभाव में मरम्मत कार्य ठप पड़ा है.
जानकारी देते संवाददाता अखिल पांडेय
हर माह करोड़ों का नुकसान :बसों के डिपो में खड़े होने से हो रहे नुकसान का अंदाजा लगाया जाए तो वातानुकूलित बसें लंबे रूट पर संचालित होती हैं और अच्छी कमाई करती हैं. लखनऊ से दिल्ली गोरखपुर, प्रयागराज और आगरा जैसे रूटों पर इन बसों का संचालन होता है. कोई बस एक दिन में ₹50000 तो किसी की इनकम 40000 रहती ही है. अगर औसत निकाला जाए तो हर बस तकरीबन ₹30,000 हर दिन कमाई करती है. ऐसे में अगर सिर्फ अवध डिपो में ही तकरीबन तीन दर्जन एसी बसें खराब खड़ी हैं तो निश्चित तौर पर प्रतिदिन लाखों और हर महीने कई करोड़ का नुकसान परिवहन निगम को उठाना पड़ रहा है.
क्या कहते हैं एमडी :उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम के प्रबंध निदेशक संजय कुमार कहते हैं कि जितनी ऑफ रूट बसों की संख्या पूरे प्रदेश में है उसका आंकलन किया गया है. नि:संदेह ये मानक से ज्यादा है. मानक तकरीबन 5 परसेंट के आसपास है, लेकिन कई डिपो में यह परसेंटेज आठ से नौ परसेंट है. हमने सारे एआरएम, आरएम और स्टेशन मैनेजर को ताकीद किया है कि वह सर्वोच्च प्राथमिकता पर अभियान चलाकर जितनी ऑफ रूट बसें हैं उनको ऑन रूट लाने की व्यवस्था करें. इसके लिए जब मैंने वीडियो कांफ्रेंसिंग की तो यह बात सामने आई कि जो रेगुलर बजट मेंटेनेंस का होता है उसके अतिरिक्त एकमुश्त बजट मिल जाए. हमने सर्वे कराकर सारे रीजन और एआरएम से डाटा मंगाकर एकमुश्त तकरीबन ढाई करोड़ रुपए का बजट एलॉट किया है. धीरे-धीरे अपने लेवल पर पार्ट्स खरीदकर बसों को दुरुस्त कराया जा रहा है.
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हमारा लक्ष्य है कि इस माह के अंत तक न्यूनतम हर रीजन में किसी भी हाल में तीन चार या पांच परसेंट के अंदर-अंदर ही गाड़ियां ऑफ रूट हों, इससे ज्यादा नहीं. जहां तक एसी बस के बारे में बताना चाहूंगा क्योंकि स्पेशलाइज वेंडर्स इनके पार्ट्स बनाते हैं तो टेंडर प्रक्रिया में कुछ जटिलता थी वह भी मैंने सही कर दिया है. अब सारे स्टेशन मैनेजर अपने लेवल से पार्ट्स ले सकेंगे. जिससे जल्द ही सभी बसें दुरुस्त हो सकेंगी और यात्रियों को सफर में सुविधा प्रदान करती हुई नजर आएंगी.
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