लखनऊः कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव और यूपी प्रभारी प्रियंका गांधी ने जब-जब दम दिखाया तब-तब सरकार को अपने कदम पीछे खींचने को मजबूर कर दिया. लखीमपुर में मृतक किसानों के परिजनों से मुलाकात की जिद पर अड़ी प्रियंका ने जब रविवार रात बारिश में ही लखनऊ से कूच कर दिया तो सरकार को भी उम्मीद नहीं थी कि नतमस्तक होना पड़ जाएगा. यह कोई पहला मौका नहीं है, जब प्रियंका के दांव के आगे सरकार का कोई भी पेंच काम न आया हो. इससे पहले हाथरस, उन्नाव और सोनभद्र के उम्भा में सरकार को प्रियंका के आगे झुकना ही पड़ा था.
चार दिन पहले लखीमपुर में केंद्र सरकार में गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे पर ही आरोप लगा कि उसने किसानों के ऊपर गाड़ी चढ़ा दी. गाड़ी के नीचे आने से कई किसान कुचलकर मर गए. इसके बाद किसानों की तरफ से भी हमला किया गया और कई अन्य लोगों की भी मौत हो गई. इस हृदयविदारक घटना ने पूरी सियासत में खलबली मचा दी. वैसे तो दिल्ली से लखनऊ के लिए प्रियंका गांधी को सोमवार को आना था, लेकिन इस घटना के बाद रात में ही प्रियंका गांधी लखनऊ पहुंचीं और देर रात बारिश में ही लखीमपुर में किसान परिवारों से मिलने के लिए निकल पड़ीं. सरकार ने उन्हें रास्ते में रोकने का प्रयास जरूर किया लेकिन यह सारे प्रयास विफल हुए. सीतापुर में प्रियंका गांधी को रोकने में सरकार कामयाब हुई. पुलिस प्रशासन ने प्रियंका को हिरासत में ले लिया. इसके बाद मंगलवार को कई धाराएं लगाकर उन्हें अरेस्ट कर लिया. इससे कांग्रेसी कार्यकर्ता उग्र हो गए और यहां अपनी नेता के समर्थन में सरकार विरोधी नारेबाजी शुरू की. मृतक किसानों को श्रद्धांजलि देने के लिए कैंडल मार्च निकाला.
बहन की गिरफ्तारी होते ही नाराज हो गए राहुल गांधी
प्रियंका ने साफ कर दिया कि सरकार जब तक मुकदमे वापस नहीं लेती और लखीमपुर में किसानों के परिजनों से मिलने नहीं देती तब तक वह सीतापुर में ही रहेंगी. बिना मिले वापस नहीं लौटेंगी. प्रियंका ने उपवास भी रखा, अनशन भी शुरू किया, झाड़ू लगाकर श्रमदान भी किया. जब बहन की गिरफ्तारी हुई तो भाई राहुल गांधी भी नाराज हो गए और उन्होंने लखीमपुर जाने का फैसला ले लिया. सीतापुर में चार दिन हिरासत और अरेस्टिंग करने के बाद आखिरकार सरकार को प्रियंका की बात माननी ही पड़ी. बुधवार को लखनऊ होते हुए राहुल गांधी अपनी बहन प्रियंका से मिलने सीतापुर रवाना हुए और इसके बाद उन्हें साथ लेकर लखीमपुर भी गए.
सोनभद्र के उम्भा में भी हुई थी प्रियंका की जीत
सोनभद्र के उम्भा में आदिवासियों के बीच जमीन को लेकर हुए खूनी संघर्ष में कई लोगों की मौत हो गई थी. यह विवाद भी राजनीतिक गलियारों में छा गया. इसके बाद आदिवासियों को न्याय दिलाने के लिए प्रियंका गांधी सामने आईं. उन्होंने दिल्ली से सीधे सोनभद्र के उम्भा गांव जाने का फैसला लिया. सरकार ने उन्हें वहां जाने से रोकने के लिए लाख प्रयास किए, लेकिन प्रियंका वहां पर भी सड़क पर ही धरने पर बैठ गईं. पुलिस उन्हें डिटेन कर गेस्ट हाउस ले गई. प्रियंका ने साफ कर दिया था कि जब तक पीड़ित परिवारों से मुलाकात नहीं हो जाती उनसे बात नहीं कर लेतीं, उन्हें सांत्वना नहीं दे देतीं, तब तक किसी कीमत पर यहां से हिलेंगी नहीं. आखिरकार यहां पर भी सरकार और प्रशासन को प्रियंका की जिद के आगे झुकना ही पड़ा. जीत प्रियंका की हुई.
हाथरस में भाई-बहन की जोड़ी ने सरकार की सीमाएं तोड़ीं
हाथरस में एक दलित बेटी के साथ हुई बलात्कार की घटना और फिर रातों-रात उसे जला देने के कृत्य से पूरे प्रदेश में खलबली मच गई थी. तमाम नेताओं का पीड़ित परिवार से मिलने के लिए काफिला निकल पड़ा. यहां पर भी प्रियंका गांधी आगे आईं. भाई राहुल गांधी को भी अपने साथ लिया और सरकार की सभी सीमाओं को तोड़ते हुए भाई बहन की ये जोड़ी हाथरस में उस पीड़ित परिवार के घर पहुंचने में कामयाब हो गई. हालांकि सरकार ने उन्हें रोकने का लाख प्रयास किया था लेकिन प्रियंका और राहुल की जिद के आगे एक भी न चली. हाथरस जाते समय प्रियंका का एक और रूप सभी ने देखा. उन्होंने ड्राइविंग सीट खुद ही संभाली और हाथरस जाने वाली सभी पाबंदियों को तोड़ डाला.
इसे भी पढ़ें-लखीमपुर मामला : सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया