लखनऊ : ठगी के मामलों में राजधानी की रफ्तार बढ़ती जा रही है. ठगों के निशाने पर बेरोजगार व जरूरतमंद लोग हैं. ठग अधिकारियों व राजनेताओं को भी नहीं छोड़ रहे हैं. रोजगार, पैसा व घर का सपना दिखाकर ठगी करने वालों पर रिपोर्ट तो दर्ज होती है, लेकिन पुलिसिया कार्रवाई कम हो रही है.
साल-2022 में जनवरी से लेकर जून (6 माह) तक में लखनऊ के 22 थानों में अलग-अलग अपराधों के कुल 6171 मामले दर्ज हुए हैं. इन सभी मामलों में मात्र 20 फीसदी मामले गंभीर क्राइम से संबंधित हैं, जबकि 80 प्रतिशत मामले किसी ना किसी तरह के फ्रॉड से जुड़े हैं. हर रोज लखनऊ में करीब 40 प्रतिशत एफआईआर ठगी से जुड़ी दर्ज होती हैं. राजधानी के दो थाने गाजीपुर व विकास नगर में मई और जून माह में टप्पेबाजी और ठगी के करीब एक दर्जन मामले दर्ज किए गए. कुछ ऐसे ही हालात हर थाने के हैं.
ऑफलाइन ठगी के सबसे ज्यादा मामले हजरतगंज, विभूतिखंड, गोमती नगर, गाजीपुर, सुशांत गोल्फ सिटी, ठाकुरगंज, मडियांव और चिनहट में दर्ज होते हैं. इन इलाकों में सबसे ज्यादा कॉरपोरेट सरकारी ऑफिस हैं, जिस कारण यहां सबसे ज्यादा ऑफलाइन ठगी हो रही है. इसमें नौकरी का झांसा देने, ठेका और कांट्रेक्टर दिलाने, पैसा दोगुना करने, जमीन खरीद फरोख्त के नाम पर ठगी के मामले सामने आ रहे हैं.
कुछ ऐसे होती है ऑफलाइन ठगी :3 जुलाई को गुडम्बा थाने में एक एफआईआर दर्ज हुई. जिसमें राजस्थान के उदयपुर में स्थित गीतांजलि विवि में एमबीबीएस में दाखिला दलाने के नाम पर जालसाजों ने सुनील कुमार से 31 लाख रुपये ठग लिए.
गोमती नगर थाने में बलिया के रहने वाले चंदन सिंह ने एफआईआर दर्ज कराई थी कि राम व्यास व आदित्य ने केजीएमयू व पीजीआई में नौकरी लगवाने के नाम पर 8 लाख रुपये लिये थे. फर्जी नियुक्ति पत्र भी थमा दिया था. ये ठग यूपी के एक कैबिनट मंत्री का नाम लेकर ठगी करते थे.
गोमती नगर में माउंटेन एलाएंस प्रा.लि. कंपनी के नाम से ऑफिस खोलकर विश्वनाथ प्रसाद निषाद ने 300 लोगों से मत्स्य पालन कराकर 14 महीनों में पैसा दोगुना करने का झांसा दिया. जिसके बाद 10 करोड़ लेकर फरार हो गया.
6 माह में कहां कितने दर्ज हुए ठगी के केस :चिनहट 536, विभूतिखंड 432, हजरतगंज 238, गोमती नगर 457, गाजीपुर 340, ठाकुरगंज 334, काकोरी 312, मोहनलालगंज 315, सुशांत गोल्फ सिटी 400, आशियाना 330, कृष्णानगर 325, सरोजनीनगर 319, पारा 318, मड़ियांव 378,
कैसे बच जाते हैं आरोपी :ऑफलाइन ठगी के मामलों में चार्जशीट दाखिल होने की दर बहुत कम होती है. ऐसे मामलों की विवेचना लंबी और कठिन होती है. साथ ही साक्ष्यों की कमी भी होती है. ठगी के मामलों में गवाह व सबूत बहुत कम परिस्थितियों में मिल पाते हैं. जिस कारण आरोपी बच जाते हैं. फ्रॉड होने की दशा में घटनास्थल से लेकर उसके उद्देश्य की स्थिति अहम होती है. कई बार केस दर्ज कराने के बाद वादी के मजबूत पैरवी न करने पर केस छूट जाता है.
ऑफलाइन फ्रॉड से कैसे बचें :बेरोजगारों को नौकरी दिलाने का झांसा देने वाले ठग लखनऊ को जानबूझ कर चुनते हैं. एक तो लखनऊ में बेरोजगार नौकरी की तलाश में घूमते रहते हैं. दूसरा ठग खुद को सचिवालयकर्मी बताकर भरोसा जीत लेते हैं. ऐसे लोगों से बचने के लिए ऑनलाइन विज्ञापन में भरोसा न करके खुद जांच पड़ताल करें. इसके अलावा मकान, जमीन व दुकान के मामले में राजस्व व कचहरी से ओरिजनल डॉक्यूमेंट्स की जरूरी पड़ताल करें. पैसा दोगुना करने वाली स्कीमों से बिल्कुल दूर रहना चाहिए.
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क्या कहते हैं जिम्मेदार :लखनऊ में बढ़ रही ऑफलाइन ठगी को देखते हुए पुलिस अधिकारी चिंतित हैं. हालांकि समय-समय पर पुलिस व एसटीएफ ऐसे ठगों को गिरफ्तार भी करती रहती है. लखनऊ पुलिस कमिश्नर डीके ठाकुर कहते हैं कि ऑफलाइन व ऑनलाइन किसी भी प्रकार की ठगी में मामला दर्ज कर उसकी विवेचना नियमानुसार की जाती है. कई मामले में कार्रवाई भी की गई है. लोगों को जागरूक भी किया जाता है कि जालसाजों से सावधान रहें.
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